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सबक सीखा: कुणाल

८ मार्च २०१४

अभिनेता कुणाल कपूर ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत सहायक निर्देशक के तौर पर की थी. उनका कहना है कि लेखन उनकी पहली पसंद है.

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Kunal Kapoor
तस्वीर: Strdel/AFP/Getty Images

अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म अक्श में सहायक निर्देशक के तौर पर फिल्मी सफर शुरू करने वाले कुणाल कपूर ने मकबूल फिदा हुसैन की फिल्म मीनाक्षी-ए टेल आफ थ्री सिटीज में तब्बू के साथ अभिनय की शुरूआत की थी. उसके बाद उन्होंने रंग दे बसंती, डॉन 2 और लव शव ते चिकेन खुराना में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. कुणाल फिलहाल लेखन और फिल्म निर्माण में हाथ आजमाने की तैयारी कर रहे हैं. एक कार्यक्रम के सिलसिले में कोलकाता पहुंचे अभिनेता ने डॉयचे वेले के कुछ सवालों के जवाब दिए. पेश हैं उसके मुख्य अंश:

फिल्मोद्योग में लंबा अरसा बीत जाने के बावजूद आपने ज्यादा फिल्में नहीं की हैं. इसकी वजह?

दरअसल, मैं शुरू से ही फिल्मों के चयन के मामले में जरा चूजी रहा हूं. सही फैसला नहीं करने की वजह से कुछ फिल्में छोड़ भी दीं. बाद में उनको देख कर अफसोस हुआ. लेकिन यह सब तो चलता ही रहता है.

फिल्मों का चयन कैसे करते हैं?

हर फिल्म के चयन की प्रक्रिया भिन्न होती है. इसमें पटकथा की अहमियत सबसे ज्यादा है. मैं अलग-अलग किस्म के चरित्र की तलाश में रहता हूं. अपना जीवन तो सब जीते हैं. लेकिन एक अभिनेता को कई तरह का जीवन जीना होता है. मैं उनमें से ही दिलचस्प किरदार तलाशता हूं. ऐसा जो मेरे जीवन से एकदम अलग हो.

अलग-अलग भूमिकाएं तलाशने की वजह?

पहली बात तो यह कि इससे अभिनय क्षमता दिखाने का मौका मिलता है. इसके अलावा किसी खास इमेज में बंध कर रह जाने का खतरा नहीं होता. रंग दे बसंती के बाद मुझे कवि या आतंकवादी की भूमिकाओं के प्रस्ताव मिलते रहे. इसी तरह लव शव..के बाद पंजाब दा पुत्तर के किरदार निभाने के कम से कम दस प्रस्ताव मिल चुके हैं. लेकिन मैं हमेशा नएपन की तलाश में रहता हूं. ज्यादा फिल्में नहीं कर पाने की यह भी एक वजह है.

क्या फिल्मों में कामयाबी के लिए कोई गॉडफादर होना जरूरी है?

यह बेहद जरूरी है. ऐसे लोग आपको सही-गलत की सलाह देते हैं. दूसरों से परिचय कराते हैं और आपके लिए फिल्में भी बनाते हैं. लेकिन मैंने अपना अब तक का सफर खुद ही तय किया है.

आपको चूजी अभिनेता कहा जाता है?

यह सही है. लेकिन कोई फिल्म करते वक्त मैं उसी में डूब जाता हूं. कोई भी फैसला काफी ठोक-बजा कर करता हूं ताकि बाद में यह अफसोस नहीं हो कि मैंने यह फिल्म हाथ में क्यों ली. महज काम के लिहाज से करना होता तो मैं कोई भी काम कर रहा होता. लेकिन मैं अभिनय में डूब जाना चाहता हूं. मैं इसे काम नहीं समझता. हालांकि ज्यादा ठोक-बजा कर फिल्में चुनने के चक्कर में कई फिल्में हाथ से निकल भी गई हैं. उनका मुझे आज तक अफसोस है. लेकिन गलतियों से सीख कर ही करियर में आगे बढ़ा जा सकता है.

लव शव..के बाद आगे क्या कर रहे हैं?

फिलहाल दो फिल्मों की पटकथाएं लिख रहा हूं. कुछ अन्य पटकथाओं के लिए लेखकों और निर्देशकों के साथ भी बातचीत चल रही है. जल्दी ही चीजें हकीकत में बदलेंगी. अभिनय के साथ लेखन एक मुश्किल काम है. लेकिन यह मेरा पहला प्यार है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: महेश झा

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