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अपना घर देख रोते इराकी

१६ मार्च २०१३

अपने घर में ही अपनी सुरक्षा पर शक हो तो क्या करें. यासमीन भी ऐसे ही हालात से जूझ रहे इराकियों में से हैं जो अब सुरक्षित महसूस नहीं करतीं,और कहीं चली जाना चाहती हैं. सुरक्षित भविष्य से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है.

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तस्वीर: picture alliance/AP Photo

10 साल से चली आ रही हिंसा के बीच यासमीन का विश्वास इस बात पर से भी उठ गया है कि इराक में दोबारा शांति होगी और उनका भविष्य बेहतर होगा. 2003 में अमेरिका के इराक में सैन्य कार्यवाई शुरू करने के बाद से हालात बद से बदतर ही होते गए हैं. यासमीन आज भी उस दिन को याद करके दहल जाती हैं जब उनके शहर बगदाद में सद्दाम हुसैन की गिरफ्तारी के समय बमबारी हो रही थी. यासमीन कहती हैं, "मैं माता-पिता और बहन के साथ कमरे में बैठी कुरान पढ़ रही थी. हम बहुत डरे हुए थे और लगातार प्रार्थना कर रहे थे. वह बहुत कठिन समय था. लगातार बमबारी हो रही थी, एक दिन, एक साल जितना बड़ा लग रहा था." यासमीन को हर घड़ी यही लग रहा था कि यह पल उनकी जिंदगी के अंतिम पल हो सकते हैं.

यासमीन इस समय सरकारी अधिकारी हैं. वह कहती हैं कि इराक के लिए सबसे कठिन समय सद्दाम हुसैन के पतन के बाद आया. उन्होंने कहा, "यह वह समय था जब नियम और कानून के नाम पर कुछ नहीं रह गया था. सुरक्षा जैसी चीज तो खत्म ही हो गई थी और जीवन का कोई महत्व ही नहीं रह गया था." अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप के पहले वह खुद अपने देश में ही रहना चाहती थीं और बड़े होकर देश की तरक्की के लिए काम करना चाहती थीं. यासमीन ने कहा, "अब मेरा मकसद बस इस देश से कहीं बाहर चले जाने का है ताकि मैं सुरक्षित स्थायी महसूस कर सकूं. मैं इस चिंताजनक परिस्थिति से बाहर निकल कर अपने लिए बेहतर भविष्य चाहती हूं."

Anti-Terror-Konferenz in Riad
तस्वीर: picture-alliance/dpa

23 साल के जमाल जब्बार का राजधानी बगदाद में कैफे है. जब्बार का सपना डॉक्टर या इंजीनियर बनने का था. लेकिन खराब हालात में उनके सपने चूर हो गए. उन्होंने बताया, "मैं अच्छा छात्र था लेकिन इस काम में आने के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर कुछ टूट सा गया. मैं हमेशा डॉक्टर या फिर आर्किटेक्ट बनना चाहता था लेकिन इन हालात में, मैं अपनी पढ़ाई आगे जारी नहीं रख पाया. आज मैं बस इसी दुकान के सहारे अपने परिवार का पेट भर रहा हूं." यासमीन और जब्बार जैसे ज्यादातर युवा इन हालात में खुश नहीं हैं और पलायन के जरिए जीवन के लिए दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं.

अमेरिकी कार्रवाई के बाद गठबंधन सेनाओं ने भी विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई छेड़ी. इसके बाद 2006 में सुन्नी और शिया समुदायों के बीच सांप्रदायिक हिंसा का दौर शुरू हो गया. 2010 में अमेरिकी सेना इराक से निकल गई, हिंसा में भी कुछ कमी आई लेकिन अभी भी आए दिन कुछ न कुछ लगा ही रहता है. युवा इराकी इससे निराश हैं. 

अकूत तेल संपदा के बावजूद इराक में बेरोजगारी समस्या बनी हुई है. सरकार के मुताबिक 10 फीसदी युवा बेरोजगार हैं, जबकि निजी संस्थाएं कहती हैं कि 100 में से 35 युवा बिना नौकरी के हैं. इन परिस्थितियों में कई युवा अपने बेहतर भविष्य की खातिर विदेश जाकर बस रहे हैं. मानवाधिकार और नागरिक विकास के बाबिल सेंटर की 2011 में छपी रिपोर्ट के अनुसार 30 वर्ष से कम आयु के 89 फीसदी युवा देश छोड़ कर जाना चाहते हैं. अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप को 10 साल भले ही बीत गए हों लेकिन अभी भी देश में पानी और बिजली जैसी मूलभूत चीजों की आपूर्ति की समस्या बनी हुई है.

एसएफ/एएम (एएफपी)

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