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अपराधियों का पीछा करती कृत्रिम बुद्धि

एमजे/आईबी२० मई २०१६

जरा सोचिये कि भीड़ में किसी एक शख्स को खोजना हो तो, ऐसे में पसीने छूट जाते हैं, लेकिन अब तकनीक की मदद से अपराधियों या संदिग्ध सामान को आसानी से खोजा जा सकेगा.

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तस्वीर: Colourbox

बर्लिन की अंडरग्राउंड मेट्रो. यहां हर दिन हिंसा के 15 मामले होते हैं. मेढ़क जैसी आंखें, हाई डिफिनिशन और जूम होने वाले कैमरे. उनकी सब पर नजर होती है. कहीं कोई चोरी तो नहीं कर है या फिर किसी के साथ हाथापाई तो नहीं कर रहा. बर्लिन के मेट्रो स्टेशन किसी बड़ी सी भूल भुलैया जैसे हैं. और अपराधी इसी का फायदा उठाते हैं. भीड़ में पहचाना जाना आसान नहीं होता.

हर दिन 15 लाख लोग बर्लिन मेट्रो का इस्तेमाल करते हैं. किसी को खुद को फिल्माया जाना पसंद नहीं लेकिन वे इसे फिर भी स्वीकारते हैं क्योंकि यहां मामला सुरक्षा का है.

मौजूदा सुरक्षा तंत्र

सिर्फ कैमरे लगा भर देने से काम नहीं चलता. कैमरों का पर्सपेक्टिव टेस्ट करना होगा. उन्हें सही सही एडजस्ट करना होगा. अगर ऐसा न किया गया तो अपराधी कैमरे की जद में न आने वाले इलाके को वारदात के लिए चुन सकते हैं. कैमरे इस तरह लगाए जाते हैं कि स्टेशन के चप्पे चप्पे पर नजर रहे.

बर्लिन मेट्रो के सिक्योरिटी कंट्रोल रूम की लोकेशन गोपनीय है ताकि इसे अपराधियों से बचा कर रखा जा सके. सुरक्षा प्रमुख और उनके कर्मचारी 2300 कैमरों की मदद से पूरे नेटवर्क पर नजर रखते हैं. कोई भी अपराध उनकी नजरों से बच कर नहीं निकल पाता. उनके प्रयासों से अब तक कई अपराध रोके जा सके हैं और यात्रियों को बचाया जा सका है.

शहर के परिवहन सुरक्षा प्रमुख इंगो टेडेरान के मुताबिक, "जब दो या दो से ज्यादा लोगों के बीच गंभीर झगड़ा हो जाता है, तब हमारे सहकर्मी यहां तय करते हैं कि क्या तुरंत पुलिस भेजने की जरूरत है या कोई गश्ती दल पास में है जो फौरन वहां जा सकता है. एकदम नहीं कहा जा सकता है लेकिन मामले को देखकर सहकर्मी यहां फैसला करते हैं कि क्या करना चाहिए."

Belgien Terroranschläge in Brüssel Fahndung Verdächtige El Bakraoui
कैमरे में कैद हुआ फ्रांस और बेल्जियम का एक मुख्य हमलावरतस्वीर: picture-alliance/epa/Belgian Federal Police

इंटेलिजेंट सुरक्षा तंत्र

म्यूनिख हवाई अड्डे पर ऐसी तकनीक लगी है जो यात्रियों पर नजर रखने के अलावा भी बहुत कुछ कर सकती है. कैमरे संदिग्ध चीजों और लोगों की भी सूचना देते हैं. अलेक्जांडर चीप इस तकनीक के विशेषज्ञ हैं. वे अपनी कंपनी में इसके लिए हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर बनाते हैं. इन मॉडलों की कीमत 1000 से 1500 यूरो है. चीप के मुताबिक उनका सिस्टम इतना इंटेलिजेंट है कि कैमरों को प्रोग्रामिंग के जरिए खोज अभियान में लगाया जा सकता है. यह तकनीक कद के लिहाज से बच्चों और बड़ों में अंतर कर सकती है.

अलेक्जांडर चीप दिखाते हैं कि यह कैसे होता है. वह एक सर्च प्रोग्राम करते हैं और कैमरे को 1 मीटर 75 सेंटीमीटर लंबे व्यक्ति को खोजने का निर्देश देते हैं. कैमरे ने वाकई में ब्योरे के अनुसार दिख रहे शख्स को खोज लिया. और इसकी जानकारी एक सिग्नल के जरिये दी. इतना ही नहीं ये सिस्टम किसी आकार के सूटकेस, बैग या बक्से को भी खोज सकता है.

Deutschland Frankfurt am Main Bundespolizist patroulliert mit Maschinenpistole
रेलवे स्टेशनों और एयरपोर्टों पर बढ़ती चौकसीतस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Dedert

बुद्धिमान होती मशीनें

सुरक्षा तकनीशियन अलेक्जांडर चीप इसे बड़ी छलांग मानते हैं, "हम इस हालत में हैं कि चीजों को लंबाई, चौड़ाई और आकार के हिसाब से बांट सकते हैं. हम कह सकते हैं कि सिर्फ सूटकेस खोजो, व्यक्ति को नहीं, या फिर सिर्फ उस इंसान को ढूंढो, सूटकेस नहीं."

म्यूनिख हवाई अड्डे के चेक इन काउंटर पर हर यात्री का आईडेंटी कार्ड स्कैन किया जाता है. अब अगर सिक्यूरिटी किसी को खोजना चाहे, तो तस्वीर की मदद से हवाई अड्डे पर लगे कैमरों को सर्च के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है.

निगरानी की तकनीक बेहतर होती जा रही है. जैसे जैसे अपराध बढ़ रहे हैं, वैसे वैसे लोगों में नई सुरक्षा तकनीक के प्रति स्वीकार्यता भी बढ़ रही है.