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अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन

२० जुलाई २०१०

अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में आज 60 देशों और संगठनों के प्रतिनिधियों का एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हो रहा है जिसमें अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य पर चर्चा होगी.

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अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजईतस्वीर: AP Photo

सम्मेलन के केंद्र में सुरक्षा की ज़िम्मेदारी अफ़ग़ान सरकार को सौंपने तथा पश्चिमी देशों के सैनिकों की वापसी का मुद्दा है. इसके अलावा भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ संघर्ष और विद्रोही तालिबान लड़ाकों को मुख्य धारा में जोड़ने के सवाल पर भी चर्चा होगी. अफ़ग़ानिस्तान में तीन दशक बाद पहली बार इस पैमाने का अंतरराष्ट्रीय संगठन हो रहा है, जिसमें 40 देशों के विदेश मंत्री और 70 उच्च पदस्थ राजनीतिज्ञ और अधिकारी भाग ले रहे हैं. भारी सुरक्षा के बीच हो रहे सम्मेलन में भाग ले रहे प्रतिनिधियों में जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले, भारतीय विदेश मंत्री एस एम कृष्णा और अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन शामिल हैं.

सम्मेलन की अध्यक्षता राष्ट्रपति हामिद करज़ई के साथ संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून करेंगे. बान की मून ने सम्मेलन से पहले कहा, "हम राष्ट्रपति करज़ई और उनकी सरकार से सुशासन बढ़ाने, सहमेल को प्रोत्साहन देने और सुरक्षा की स्थिति बेहतर बनाने पर ठोस योजना की उम्मीद करते हैं." करज़ई इस सम्मेलन में तालिबान लड़ाकों के हथियार छोड़ने के लिए 60 करोड़ यूरो के एक कार्यक्रम की घोषणा कर सकते हैं.

सम्मेलन के दो महत्वपूर्ण मुद्दों में तालिबान के साथ समझौता और अगले साल से अंतरराष्ट्रीय सैनिकों की वापसी की शुरुआत है. भारत के लिए ये दोनों ही मुद्दे महत्वपूर्ण हैं. भारत तालिबान के पुराने व्यवहार के कारण उसे शक की निगाहों से देखता है. पाकिस्तान के साथ तालिबान के निकट संबंधों के कारण भारत को लगता है कि तालिबान के साथ कोई भी समझौता उसके हितों के ख़िलाफ़ होगा. भारत अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण मदद कर रहा है. उसे डर है कि तालिबान के साथ समझौता उसके हितों के ख़िलाफ़ जाएगा.

जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले ने 2014 तक अफ़ग़ानिस्तान से सैनिकों के बड़े हिस्से की वापसी का पक्ष लिया है और कहा है कि तब तक अफ़ग़ानिस्तान सरकार को देश में सुरक्षा की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से ले लेनी चाहिए. वेस्टरवेले ने साथ ही कहा, अफ़ग़ान सरकार को सुरक्षा ज़िम्मेदारी सौंपने का मतलब न तो सैनिकों की तुरंत वापसी है और न ही हमारी सक्रियता की समाप्ति. जर्मन विदेश मंत्री ने कहा कि सुरक्षा ज़िम्मेदारी सौंपे जाने के बाद भी अफ़ग़ानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सैनिक, असैनिक सहायक और पुलिसकर्मी तैनात रहेंगे.

सोमवार को नाटो के महासचिव आंदर्स फ़ो रासमुसेन ने कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान को दूरगामी रूप से नाटो की मदद की ज़रूरत होगी. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय तालिबान को हराने और अफ़ग़ानिस्तान का पुनर्निर्माण करने की मुश्किलों को समझ पाने में विफल रहा है. उन्होंने कहा, इसीलिए अफ़ग़ानों को देश के पुनर्निर्माण और शांति तथा स्थिरता के लिए पर्याप्त क्षमता विकसित करने में मदद देने में समय लग रहा है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: वी कुमार