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अबु धाबी बना फिल्मों का अड्डा

१४ जून २०१४

सीरिया में संकट, मिस्र में क्रांति, इराक में हिंसा और ईरान में तनाव. अगर अरब विश्व में फिल्म बने तो कहां. आईए, अबु धाबी फिल्म बनाने के लिए आपका स्वागत करता है.

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SHAMS1 thermische Solarkraftwerk in Abu Dhabi
तस्वीर: Shams Power Company

संयुक्त अरब अमीरात में मीडिया हब की प्रमुख एक महिला हैं और वह अबु धाबी को एक सुरक्षित ठिकाना बताती हैं. नूरा अल काबी का कहना है, "ऐसे वक्त में जब दूसरे क्षेत्र अपनी गतिविधियां कम कर रहे हैं, अबु धाबी तेजी से बढ़ रहा है और कह रहा है कि यह अरब की प्रतिभा को आगे बढ़ाने का अच्छा मौका है." उनका कहना है, "इससे अबु धाबी को फायदा हो रहा है लेकिन अरब को भी फायदा पहुंच रहा है."

पिछले साल संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी ने कई विदेशी फिल्मों को आकर्षित किया था, जिसमें सोनी पिक्चर्स इंटरटेनमेंट की डिलिवर अस फ्रॉम ईविल और यूनिवर्सल पिक्चर की फास्ट एंड फ्यूरियस 7 भी शामिल थी. इसके अलावा हिन्दी फिल्म बैंग बैंग ने भी यहां शूट किया.

VAE Abu Dhabi Hafen Khalifa
फिल्म उद्योग में बढ़ता अबु धाबीतस्वीर: KARIM SAHIB/AFP/GettyImages

हालांकि अबु धाबी इस उद्योग के लिए नया चेहरा है. मिस्र को "पूरब का हॉलीवुड" कहते हैं. वहां एक सदी से ज्यादा वक्त से फिल्में बन रही हैं और आम तौर पर विदेशी फिल्मकार खाड़ी के देशों की जगह उत्तरी अफ्रीका के देशों में फिल्मों की शूटिंग करना चाहते हैं.

अबु धाबी का मीडिया हब 2008 में बना और वहां ट्रेनिंग से लेकर फिल्म बनाने में अमीरात के नागरिकों की मदद तक की जाती है. टूफोर54 भी इस उद्योग में अहम भूमिका निभा रहा है. यह विदेशी फिल्मकारों को यहां तक खींच रहा है और उन्हें रियायद दिला रहा है. डील होने के बाद यह प्रोडक्शन सर्विस अमीरात के अंदर सुविधाएं मुहैया कराता है. अबु धाबी में रहते हुए विदेशी फिल्मकार जितना खर्च करते हैं, उसका 30 फीसदी इसी सर्विस की वजह से उन्हें वापस मिलता है. चाहे खर्च प्रोडक्शन में हुआ हो या फिर रहने सहने में.

हालांकि अल काबी का कहना है कि सिर्फ यह छूट ही सब कुछ नहीं है, "सवाल यह है कि आप लोगों को किस तरह सुविधा मुहैया कराते हैं. अबु धाबी के दूसरे इदारे भी हमारी मदद कर रहे हैं. चाहे वह पर्यटन का विभाग हो या फिर सांस्कृतिक विभाग."

मुंबई से अबु धाबी पहुंचने में सिर्फ तीन घंटे लगते हैं, जो बॉलीवुड के लिए अलग तरह का फायदा है. अल काबी का कहना है, "ऐसा लगता है मानो वे भारत के अंदर ही यात्रा कर रहे हैं."

लेकिन सिर्फ हॉलीवुड और बॉलीवुड ही अबु धाबी नहीं पहुंच रहे हैं. सीरिया जैसे देशों के फिल्मकार भी यहां पहुंच रहे हैं. अल काबी कहती हैं, "हमारे यहां दो सीरियाई प्रोडेक्शन हाउस आए हैं और हम सीरियाई निर्देशकों और प्रोड्यूसरों से भी बात कर रहे हैं ताकि अरब टेलीविजन ड्रामा का भी काम किया जा सके." एक सीरियाई प्रोडक्शन हाउस क्लैकेट मीडिया अबु धाबी में काम कर रहा है. उसने मिस्र, सीरिया, अल्जीरिया और लेबनान के लोगों को "अल इखवा" नाम के सीरियल में शामिल किया है. यह सीरियल कई अरब देशों में एक साथ प्रसारित होता है.

अल काबी का कहना है कि विदेशी फिल्मों को हरी झंडी दिखाने से पहले उनकी स्क्रिप्ट पढ़ी जाती है ताकि तय किया जा सके कि वे स्थानीय संस्कृति या राजनीति को कोई खतरा न पहुंचा रहे हों, "हमें अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा करनी है लेकिन इस पर कभी आंच नहीं आई."

एजेए/एमजी (रॉयटर्स)