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अब ऑनलाइन ही होगी दार्जिलिंग चाय की नीलामी

प्रभाकर२३ जून २०१६

दुनिया भर में मशहूर दार्जिलिंग चाय बीते कोई डेढ़ सौ साल से सामान्य नीलामी प्रक्रिया के जरिए बेची जाती थी. लेकिन इस हफ्ते से यह परपंरा बंद हो गई है. अब ऑनलाइन होगी नीलामी.

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तस्वीर: DW

टी बोर्ड ने 23 जून से दार्जिलिंग चाय को ऑनलाइन नीलामी के जरिए बेचने का फैसला किया है. इस फैसले का जहां स्वागत हुआ है वहां पुरानी परंपरा के प्रेमी भी कम नहीं हैं. चाय उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि तकनीक को अपनाना अच्छा है, लेकिन वे इस मैनुअल नीलामी की परंपरा को मिस करेंगे. इसमें लगने वाली बोलियों और नीलामी के आखिर में गूंजने वाली हथौड़े की आवाज अब हमेशा के लिए खामोश हो गई है.

देश की सबसे बेहतरीन और महंगी दार्जिलिंग चाय भी बृहस्पतिवार से ऑनलाइन नीलामी के जरिए ही बिक रही है. पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग की पहाड़ियों पर पसरे सौ से ज्यादा बागानों में पैदा होने वाली यह चाय अब तक पारंपरिक नीलामी के जरिए बिकती थी. लेकिन अब टी बोर्ड ने अब इसे भी ऑनलाइन नीलामी में शामिल कर लिया है. इससे पारंपरिक नीलामी के डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुरानी प्रक्रिया पर अब विराम लग गया है. चाय की ऑनलाइन नीलामी मंगलवार को ही शुरू होनी थी. लेकिन कुछ तकनीकी दिक्कतों के चलते और चाय की बिक्री के बाद लेन-देन की कुछ समस्याओं को सुलझाने के लिए टी बोर्ड ने यह नीलामी दो दिनों के लिए टाल दी थी.

चुस्की लेता यूरोप

वैसे तो दार्जिलिंग के अलावा देश के बाकी हिस्सों में पैदा होने वाली चाय की बिक्री के लिए ऑनलाइन नीलामी की प्रक्रिया आठ साल पहले ही शुरू कर दी गई थी, लेकिन दुनिया की सबसे पुरानी और बड़ी नीलामी कंपनी जे.थॉमस एंड कंपनी अब तक इस चाय को पारंपरिक तरीके से होने वाली नीलामी के जरिए ही बेच रही थी. दूसरी चायों के साथ दार्जिलिंग चाय को ऑनलाइन बेचना एक महंगा सौदा होने की वजह से इसे पारंपरिक नीलामी के जरिए ही बेचने का फैसला किया गया था. आर.थॉमस एंड कंपनी ने 27 दिसंबर, 1861 को पहली बार यहां चाय की नीलामी आयोजित की थी. अब उस कमरे में बोली लगाने वालों की आवाजें, कागजों की सरसराहट, पेंसिल गिरने की आवाजें और आखिर में लकड़ी के हथौड़े की आवाज कभी नहीं सुनाई देगी.

आशंका और उत्साह

अब इस ऑनलाइन नीलामी को लेकर कहीं आशंकाएं हैं तो कहीं उत्साह. चाय उद्योग का मानना है कि ई-नीलामी के जरिए बेहद कम समय में दार्जिलिंग चाय की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को संभालना बेहद मुश्किल है. दार्जिलिंग के एक चाय बागान मालिक जे. गोयल कहते हैं, ‘दार्जिलिंग चाय की कई किस्में हैं. उन सबकी खासियत अलग-अलग है.' उनका सवाल है कि ऑनलाइन नीलामी में एक सेकेंड में उनकी कीमतें कैसे तय की जा सकती हैं?

लेकिन दूसरी ओर, लघु चाय उत्पादकों, जिनके चाय बागान तो हैं लेकिन उनमें चाय बनाने वाली फैक्टरी नहीं हैं, ने इस फैसले पर प्रसन्नता जताई है. नेशनल फेडरेशन ऑफ स्माल टी ग्रोअर्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष समीर रे कहते हैं, ‘आधुनिकीकरण के मौजूदा दौर में यह सही फैसला है. इससे नीलामी पर नियंत्रण करने वाले गुटों का एकाधिकार तो खत्म होगा ही, लघु उत्पादकों को उनके उत्पाद की बेहतर कीमत भी मिल सकेगी.' दार्जिलिंग टी एसोसिएशन के अध्यक्ष एस.एस.बागड़िया भी ऐसा ही मानते हैं. उनको भरोसा है कि इससे कीमतों में सुधार होगा.

ब्रिटिश प्रभाव

जे. थॉमस के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक कृष्ण कटियाल कहते हैं, ‘उत्पादकों के विदेशी खरीदारों से सीधे संपर्क करने की वजह से बीते एक दशक के दौरान नीलामी में पहुंचने वाली चाय की मात्रा में गिरावट आई है. बावजूद इसके नीलामी हॉल का माहौल जस का तस था.' आखिरी नीलामी के दिन तक इस पर ब्रिटिश प्रभाव साफ देखने को मिला था. आर्य बताते हैं, नीलामीकर्ता सूट और टाई पहन कर यानी एकदम औपचारिक पहनावे में आते थे. खरीदार भी पश्चिमी या भारतीय पहनावे में मौजूद रहते थे. वह बताते हैं कि उन्होंने कभी किसी को चप्पल पहन कर नीलामी में आते नहीं देखा है.

सुबह साढ़े आठ से लेकर शाम साढ़े छह बजे तक चलने के बावजूद नीलामी हॉल का माहौल कभी उबाऊ नहीं रहा. साठ के दशक तक व्यापारियों और खरीरारों को शाम के समय शराब भी परोसी जाती थी. दोपहर का भोजन मुहैया कराने की परंपरा तो सत्तर के दशक तक जारी थी. नीलामी से जुड़े तमाम लोगों का कहना है कि ऑनलाइन नीलामी के फायदे के बावजूद वह लोग नीलामी कक्ष के आत्मीय माहौल को मिस करेंगे.

टी बोर्ड की ओर से देश के सात पंजीकृत नीलामी केंद्रों में ऑनलाइन नीलामी के जरिए फिलहाल 53.4 करोड़ किलो चाय बेची जाती है. चाय विपणन नियंत्रण आदेश के मुताबिक किसी भी कंपनी के लिए अपने कुल उत्पाद का 50 फीसद नीलामी के जरिए बेचना अनिवार्य है. अब नई प्रणाली के तहत एकल पंजीकरण के जरिए किसी भी नीलामी केंद्र का सदस्य देश में कहीं भी नीलामी की प्रक्रिया में हिस्सा ले सकता है. बंदरगाह की सुविधा होने और तमाम निर्यातकों के दफ्तर होने की वजह से दार्जिलिंग चाय पारंपरिक तौर पर कोलकाता में ही बिकती रही है.