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अमीरों के सामने गुरुदेव

१७ दिसम्बर २०१३

अंतरराष्ट्रीय नीलामी घर क्रिस्टीज की नजर भारतीय रईसों की तरफ घूमी है. नीलामी घर ऐसे भारतीय फनकारों के काम को सामने ला रहा है जिसे पैसे वाले लोग अपने ड्राइंग रूम में सजाना पसंद करेंगे.

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Rabindranath Tagore
तस्वीर: picture-alliance/dpa

गुरुवार को मुंबई में क्रिस्टीज एमएफ हुसैन, रबींद्रनाथ टैगोर और अमृता शेरगिल की कृतियां नीलाम करने जा रहा है. नीलामी पांचसितारा होटल ताजमहल पैलेस में होगी. क्रिस्टीज को उम्मीद है कि चीन के बाद वो भारतीय अमीरों को भी खरीदार बना पाएगा. कंपनी के एशियन आर्ट्स के निदेशक हूगो वाइहे कहते हैं, "अच्छी कला की समझ रखने वालों के साथ बाजार बहुत बढ़िया तरह से फला फूला है. लोग बेहतरीन चीजें चाहते हैं और उनके लिए कीमत चुकाने को भी तैयार हैं."

कुछ बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी लड़खड़ा रही है, ऐसे में क्रिस्टीज को मुंबई में ज्यादा कुछ नहीं मिलेगा. वहीं नीलामी घर को लगता है कि मुंबई में चल रहे उनके दफ्तर की वजह से परिवहन का झंझट खत्म हुआ है और उनका नाम ब्रांड वैल्यू भी हासिल कर चुका है.

Auktionshaus Christie's Logo Aussenansicht
नीलामी घर क्रिस्टीजतस्वीर: Getty Images

मेड इन इंडिया

वाइहे कहते हैं, "भारत में बेची जाने वाली चीजों का स्रोत भारत में ही है. ये लोगों में उत्साह जगाने वाली रणनीति है." भारत में फनकारों को भले ही बुढ़ापे में पहचान मिलती हो लेकिन अंतरराष्ट्रीय नीलामी घर उनके काम को काफी पहले ही सूंघ लेते हैं.

1983 में सैयद हैदर रजा ने 'सौराष्ट्र' नाम की पेंटिंग बनाई थी. क्रिस्टीज ने 2010 में लंदन में इसकी नीलामी की और पेंटिंग 36 लाख डॉलर में बिकी. मॉर्डन इंडियन आर्ट के लिहाज से सबसे ज्यादा दाम है.

2011 में तैयब मेहता की पेंटिंग 'महिषासुर' 32 लाख डॉलर में बिकी. तस्वीर में हिंदू देवी दुर्गा को बैल के रूप में आए राक्षस से लड़ते हुए दिखाया गया. पहले ऐसी पेंटिंग को धार्मिक कहकर किनारे कर दिया जाता था.

Gemälde Berliner Straßenszene von Ernst Ludwig Kirchner - Ausschnitt
निवेश बनती कलातस्वीर: picture-alliance/dpa/Ausschnitt

हुनर से कमाई

कला का कारोबार करने वाली कंपनी आर्ट टैक्टिक के मुताबिक 18 महीने के चढ़ाव के बाद इस साल भारतीय कला बाजार 13.6 फीसदी नीचे गिरा है. मुंबई में आर्ट गैलरी चलाने वाली प्रिया झावेरी कहती हैं कि खरीदारों की ताकत भले ही बढ़ी हो लेकिन "बाजार अब भी सीमित दायरे में" है.

एक दूसरी वजह कला में निवेश है. झावेरी कहती हैं, "हर जगह लोग कीमत को लेकर सावधान हो रहे हैं. वे जानना चाहते हैं कि अगले 10 या 20 साल में युवा कलाकार कहां हैं. वो सावधानी में कम चीजें जमा कर रहे हैं." नीलामी घर या गैलरियां प्रतिभाशाली युवा कलाकारों की कृतियां खरीद रही हैं और 10, 20 साल बाद उन्हें सामने ला रही हैं. 2008 में शुरू हुई विश्वव्यापी मंदी के बाद कला निवेश का सबसे सुरक्षित ठिकाना मानी जा रही है.

इन चुनौतियों के बीच क्रिस्टीज को लगता है कि उसकी राह में ज्यादा बाधा नहीं है. सितंबर में नीलामी घर ने चीन में ढाई करोड़ डॉलर जुटाए. उसे उम्मीद है कि चीन के बाद एशिया का दूसरा बड़ा बाजार भी उसे निराश नहीं करेगा.

ओएसजे/एजेए (एएफपी)

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