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अमेरिका और इटली तथ्यों पर सबसे पीछे

एएम/एमजे (रॉयटर्स)३० अक्टूबर २०१४

मुद्दा आप्रवासियों की संख्या का हो या फिर मुसलमानों का या किशोर लड़कियों के गर्भवती होने का आंकड़ा हो, अमेरिका और इटली में इन मुद्दों पर सबसे गलत अनुमान लगाया जाता है.

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तस्वीर: NICOLAS ASFOURI/AFP/Getty Images

इस मामले में स्वीडन और जर्मनी सबसे अच्छे हैं, हालांकि एक सर्वे के अनुसार वहां भी तथ्यों को अक्सर गलत आंका जाता है. यह सर्वे 14 विकसित देशों में किया गया. बुधवार को जारी मार्केट रिसर्च संगठन इप्सोस मोरी की रिपोर्ट दिखाती है कि कैसे कई अहम मुद्दों पर तथ्य सच्चाई से बहुत दूर होते हैं.

ऐसा ही एक विषय है आप्रवासन जो कई विकसित देशों में ज्वलंत विषय है. इसके आंकड़ों के बारे में अक्सर हर कहीं सबसे ज्यादा अनुमान लगाए जाते हैं लेकिन अमेरिका की हालत सबसे खराब है. वहां औसत लोग दावा करते हैं कि जनसंख्या का 32 फीसदी प्रवासी हैं जबकि सही आंकड़ा 13 प्रतिशत है. इटली सच्चाई से और दूर जाता है. वहां औसत दावा 30 फीसदी लोगों के प्रवासी होने का है जबकि असल में यह सिर्फ सात प्रतिशत है.

समाज में बूढ़े लोगों की संख्या पर भी इटली में गलत अमुमान लगाया जाता है. इटली के लोग समझते हैं कि 48 फीसदी आबादी 65 साल से ऊपर है जबकि जनसंख्या का पांचवां हिस्सा ही यह उम्र पार कर चुका है. हालांकि यह संख्या काफी ज्यादा है, लेकिन जर्मनी से ज्यादा नहीं है.

कम उम्र की लड़कियों के गर्भवती होने का मुद्दा भी एक ऐसा ही है जिसके बारे में हमेशा गलत अनुमान लगाया जाता है. अमेरिका के लोगों को लगता कि 15 से 19 साल के बीच की 24 फीसदी लड़कियां हर साल बच्चों को जन्म देती हैं. जबकि असल आंकड़ा सिर्फ तीन फीसदी ही है. इस मामले में स्विस भी बुरी स्थिति में हैं. उन्हें लगता है कि उनके यहां आठ फीसदी लड़कियां इतनी कम उम्र में मां बन जाती हैं जबकि असल में यह 0.7 प्रतिशत है.

इप्सोस सोशल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैश्विक निदेशक बॉबी डफी कहते हैं, "लोग सिर्फ गणित में ही बुरे नहीं होते उन्हें बहुत बड़ी या बहुत छोटी संख्या का अंदाज लगाना भी नहीं आता. लोग तथ्यों के बारे में तरह तरह के किस्से याद रखते हैं." यह सर्वे 14 देशों में 11,000 लोगों पर किया गया.

धार्मिक विभाजन

किसी समाज में किसी धर्म के कितने लोग रहते हैं इस पर भी लोग भ्रांति का शिकार होते हैं. दूसरे विवादित विषयों की तरह इस पर मीडिया कवरेज अहम भूमिका निभाता है. लोग अक्सर अपने देश में रहने वाले मुसलमानों की संख्या को ज्यादा आंकते हैं. फ्रांस में यह आंकड़ा 31 फीसदी बताया जाता है जबकि असली संख्या सिर्फ आठ प्रतिशत है. ब्रिटेन में यह संख्या 21 प्रतिशत बताई जाती है जबकि सच में यह संख्या सिर्फ पांच फीसदी है. यही हाल अमेरिका का भी है जहां 15 फीसदी जनसंख्या मुस्लिम मानी जाती है जबकि आंकड़े यह संख्या सिर्फ एक प्रतिशत दिखाते हैं.

हंगरी, पोलैंड, दक्षिण कोरिया और जापान में भी यह आंकड़ा ज्यादा माना जाता है. जबकि है नहीं. इसके विपरीत इसाइयों की संख्या हमेशा कम आंकी जाती है जबकि वह इन देशों में बहुमत में हैं.

सर्वे में पाया गया कि चुनावों में मतदान का आंकड़ा भी लोग सही तरह से नहीं आंक पाते. डफी को लगता है कि लोग इस तरीके से अपनी चिंता जाहिर करते हैं. हालांकि आंकड़ों को गलत देखने या समझने के दो कारण हो सकते हैं. हो सकता है कि चिंता के कारण लोग कोई तथ्य गलत आंके या गलत आंकने के कारण हमारी चिंता में बढ़ोत्तरी हो.