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अमेरिकी चुनाव में अपना हित चुनने की बेचैनी

५ नवम्बर २०१२

अमेरिका अपने लिए राष्ट्रपति चुन रहा है तो अफगान और पाकिस्तानी लोग अपना हित देख कर पक्ष ले रहे हैं. हालांकि पूरी एहतियात बरतने के बाद भी उनके मन में आशंकाएं घुमड़ रही हैं, क्या अमेरिकी विदेश नीति बदलेगी?

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अफगानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व में चल रही लड़ाई का यह 12वां साल है. 2001 में ही काबुल से बाहर कर दिए जाने के बावजूद तालिबान मजबूत दुश्मन बना हुआ है. यह हालत तब है जब अरबों डॉलर झोंके जा चुके हैं और हजारों लोगों की जान गई है. राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनके प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी ने कहा है कि वो अफगानिस्तान से 2014 के अंत तक 67,000 अमेरिकी सेना को वापस बुला लेंगे. इस एलान को छोड़ दें तो इस जंग के बारे में दोनों महारथियों ने बहुत कम ही बात की है.

अफगान राजनीतिक विश्लेषक सुलेमान लायक कहते हैं कि अमेरिकी विदेश नीति को लागू करने का तौर तरीका दोनों उम्मीदवारों के बीच अंतर बताता है. मिट रोमनी और रिपब्लिकन पार्टी के बारे में उम्मीद की जा रही है कि वो एक नई जंग छेड़ सकते हैं जो शायद ईरान के खिलाफ हो. लायक ने कहा, "हालांकि मैं इस बारे में निश्चिंत हूं कि चाहे रिपब्लिकन चुनाव जीतें या डेमोक्रेट अमेरिकी विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं होगा. हां रोमनी ईरान के खिलाफ और सख्त रवैया अपनाना चाहते हैं जबकि डेमोक्रेट इस मामले में थोड़े नरम हैं."

रोमनी ने ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से ना रोक पाने के लिए ओबामा की कई बार आलोचना भी की है. अफगान सांसद सैयद इशाक गिलानी का भी कहना है कि अगर रोमनी जीते, "ईरान के खिलाफ उनके सख्त रूख के कारण अफगानों को भी मुश्किल झेलनी होगी." गिलानी का कहना है कि ईरान में रहने वाले 20 लाख से ज्यादा अफगान शरणार्थियों पर इसका असर होगा और दुनिया का ध्यान भी अफगानिस्तान की तरफ से हट जाएगा,"ठीक वैसे ही जैसे कि जॉर्ज बुश ने जंग का रुख यहां से इराक की तरफ मोड़ दिया था."

कई राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि ओबामा ने राष्ट्रपति हामिद करजई के साथ बीते सालों में अपने रिश्ते बेहतर किये हैं. 2008 में चुनाव अभियान के दौरान दो बार ओबामा अफगानिस्तान दो बार आए थे लेकिन रोमनी अब तक एक बार भी वहां नहीं गए हैं. हालांकि अफगानिस्तान के अलग अलग इलाकों के लोगों की राय भी अलग है. बहुत से लोग यह भी मानते है कि अफगान लोगों को एक बेहतर जीवन देने का अमेरिकी वादा पूरा नहीं हुआ और देश में अब भी हिंसा, अस्थिरता, गरीबी और अशांति का बोलबाला है. इन अधूरे वादों के कारण ओबामा से खफा लोगों की तादाद कम नहीं.

Britische Soldaten in Afghanistan ISAF 2012
तस्वीर: picture-alliance/dpa

पाकिस्तान अपने देश में बढ़ते आतंकवाद से परेशान है. जानकारों की राय में पाकिस्तान के ज्यादातर लोग मानते हैं कि रिपब्लिकन राष्ट्रपति ओबामा प्रशासन की तुलना में उनके लिए बेहतर होगा. रक्षा मामलों की जानकार मारिया सुल्तान के मुताबिक अगर रिपब्लिकन पार्टी जीती तो अमेरिकी विदेशी नीति का ध्यान आपसी रिश्तों पर ज्यादा होगा. उनके मुताबिक डेमोक्रेटिक पार्टी के शासन में खुफिया एजेंसियों के जरिए सुरक्षा की भूमिका जरूरत से ज्यादा बढ़ गई है. 2008 में राष्ट्रपति बनने के बाद ओबामा ने सीआईए के नेतृत्व में आतंकवादी गुटों के ड्रोन खिलाफ हमले बढ़ा दिए. पाकिस्तान का कहना है कि ड्रोन हमले उसकी संप्रभुता का तो उल्लंघन करते ही है साथ ही इन हमलों में कई निर्दोष लोग भी मारे जाते हैं इसकी वजह से देश में अमेरिका विरोधी भावनाएं मजबूत हो रही हैं. मारिया कहती हैं, "ड्रोन हमला निश्चित रूप से पाकिस्तान अमेरिका के रिश्तों में एक बड़ा मसला होगा." हालांकि सुरक्षा मामलों के ही एक और विश्लेषक रसूल बक्स रईस मानते हैं कि कोई भी जीते ड्रोन हमले होते रहेंगे. वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि अभी कुछ दिन यह जारी रहेंगे...जब तक कि पाकिस्तान में कोई अलग तरह की सरकार नहीं बन जाती."

हाल ही में हुए एक रिसर्च में पता चला कि पाकिस्तान के केवल 8 फीसदी लोग ही अमेरिका को दोस्त मानते हैं जबकि 74 फीसदी लोग उसे किसी दुश्मन देश की तरह ही देखते हैं. इसी तरह से केवल सात फीसदी लोगों की ओबामा के बारे में राय अच्छी है जिन्होंने पिछले साल बिना बताए पाकिस्तान में घुस कर ओसामा बिन लादेन को मारने का आदेश दिया था. आमतौर पर लोगों का मानना है कि चाहे ओबामा हो या रोमनी पाकिस्तान की हालत में तुरंत कोई बदलाव नहीं होगा हां रोमनी को लेकर एक हल्की उम्मीद जरूर है कि शायद आपसी रिश्ते थोड़े बेहतर हो जाएं.

एनआर/एमजे (डीपीए)

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