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अरुंधति का दूसरा उपन्यास!

१४ मई २०१०

काफ़ी समय से अटकलें हैं कि अरुंधति रॉय एक और उपन्यास लिख रही हैं. रॉय ने 1997 में "द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स" की चमत्कारिक सफलता के बाद सिर्फ लेख लिखे हैं. अब चर्चा है कि वह दूसरा उपन्यास लिख रही हैं.

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अरुंधति रॉय की नक्सलियों को लेकर अपीलतस्वीर: AP

वर्षों तक वह नर्मदा घाटी में बडे बांधों को बनाने की योजना के खिलाफ आंदोलन में भी शामिल रहीं. जर्मनी के सबसे महत्वपूर्ण दैनिकों में से एक फ्रांकफुर्टर आलगेमाइने साइटुंग का कहना है.

"अरुंधति रॉय ने अभी अभी एक बहुत ही लंबा लेख पेश किया है. यह लेख उनकी यात्राओं पर आधारित है और बहुत ही स्पष्ट तरीके से निजी अनुभवों को संजोता है. यह मध्य भारत के उन इलाकों का वर्णन करता है जो आर्थिक रूप से पिछडे हुए माने जा सकते हैं. लेकिन वहां बहुत से प्राकृतिक संसाधन भी पाए गए हैं, जिन्हें बड़ी कंपनियां सरकार के समर्थन से पाना चाहती हैं. इसका मतलब यह है कि बहुत से इलाके नष्ट हो जाएंगे और वहां रह रहे लोग भी अपनी ज़मीन खो बैठेंगे. इस सबके खिलाफ संघर्ष कर रहे लड़ाके नक्सली या माओवादियों के नाम से जाने जाते हैं. माओवादियों ने अब तक संगठन के बाहर के बहुत ही कम लोगों को आमंत्रित किया कि वह उनके साथ इन वनों में घूमें. एक ऐसी महिला थीं अरुंधति रॉय. अब वह वर्णन करती हैं कि महत्वपूर्ण लडाकों के साथ उनकी क्या बातें हुई हैं और आंदोलन का इतिहास क्या रहा है. इसके बाद अरुंधति रॉय को कई बार भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया और हर कहीं उन्होने सत्तारूढ़ वर्ग से संवाद स्थापित करने की अपील की. अरूंधति रॉय ने अपना एक नया अभियान शुरू किया. ऐसे में क्या वह कभी अपना दूसरा उपन्यास पूरा कर पाएंगी?"

Arundhati Roy
अरुंधति रॉय पर देश-विदेश में चर्चातस्वीर: AP

बहुत वर्षों तक भारत के आईटी सर्विस कंपनियां महंगे जर्मन कर्मचारियों को नौकरी देने से हिचकिचाते रहे हैं. लेकिन अब उन्हें ऐसा लग रहा है कि बड़े ऑर्डर सिर्फ देसी स्टॉफ के साथ पाए जा सकते हैं. जर्मनी के बिज़नेस अखबार हांडेल्सब्लाट का कहना है कि इस स्थिति को देखते हुए आईटी सेवा यानी कंप्यूटर सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियां बडे पैमाने पर जर्मन विशेषज्ञों को काम करने के लिए बुला रहे हैं. अख़बार का कहना है.

"सिर्फ भारत के बाज़ार में सबसे अग्रणी टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज यानी टीसीएस को देखा जाए, तो वह आनेवाले तीन सालों में जर्मनी में 400 नए जॉब तैयार करना चाहती है. इसके साथ टीसीएस जर्मन कंपनियों के बीच ज़्यादा लोकप्रिय आईबीएम, अक्सेंटुएर या टी-सिस्टम्स का मुकाबला ही नहीं करना चाहती है. वह इस बात को भी दर्शाता है कि भारत की कंपनियां पश्चिम में आपस में किस तरह की प्रतिस्पर्धा में फंसी हुई हैं. भाषा में सुलभता के कारण अब तक भारतीय कंपनियों का ध्यान अमेरिका या ब्रिटेन पर ही केंद्रित था. लेकिन विशेषज्ञ मानने लगे हैं कि यूरोप में ही बाज़ार सबसे तेज़ी से बढेगा."

Tata Group Vorsitzender Ratan Tata bei Pressekonferenz zu Übernahme von Landrover und Jaguar
रतन टाटा की महत्वकांक्षी योजनाएंतस्वीर: AP

ऐसा लगता है कि पाकिस्तान में जर्मनी का एक और इस्लामी उग्रपंथी मारा गया है. बर्लिन के 21 साल के दानी आर 2 सितंबर 2009 को कुछ साथियों के साथ इस्तांबुल से होकर पाकिस्तान पहुंचा था और वह उग्रवादियों के एक समूह के सदस्य बन गया. जर्मन अधिकारियों की सूचना के अनुसार वह कुछ दिन पहले वज़ीरिस्तान यानी अफगान पाकिस्तान सीमा के निकट मारा गया है. साप्ताहिक पत्रिका डेर स्पीगल का कहना है.

"बर्लिन में जन्मे इस युवा ने इस्लाम धर्म अपनाने के बाद अपना नाम इलियास रखा. वह एक उग्र इस्लामपंथी संगठन में शामिल हुआ और बर्लिन छोड़कर जिहाद के लिए निकल पड़ा. अधिकारी जांच कर रहे हैं कि क्या अप्रैल के अंत में दानी आर के साथ जर्मनी के सारलैंड राज्य में जन्मे एरिक ब्राइनिंगर और साल्त्सगिटर शहर में जन्मे अहमत एम भी मारे गए हैं. साथियों के मुताबिक कुल चार जिहादी अपनी कार के साथ पाकिस्तानी शहर मीर अली के रास्ते पर थे, जब सैनिकों ने उनकी कार को रोका और उसके बाद गोलीबारी में वे मारे गए. वैसे बर्लिन से ही पिछले सितंबर में दानी आर और उसकी पत्नी के साथ दो और दंपति भी वज़ीरिस्तान पहुंचे थे. ऐसे में पिछले वर्षों में जर्मनी से आए छह इस्लामी उग्रपंथी हिंदुकुश इलाके में मारे गए हैं."

और अब रुख करते हैं नेपाल का.

पिछले हफ्ते नेपाल में स्कूलें और दुकानें बंद रहीं और सडकों को ब्लॉक किया गया. पूरे देश में हड़ताल घोषित करने के साथ माओवादी सरकार को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर करना चाहते थे. ज्यूरिख के नोए ज्यूरिखर साइटुंग अखबार का कहना है कि नेपाल के नागरिक भी राजनीतिक जोड़ तोड़ से ऊब चुके हैं.

"देश में हड़ताल की वजह से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा है. और इस पर नज़र डालते हुए कि इस बार हज़ारों विदेशी पर्यटक नेपाल नहीं जा पाए, देश की आमदनी के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों मे से एक पर्यटन उद्योग भी प्रभावित हुआ है. एक अखबार का कहना था कि एक बार फिर देश का राजनीतिक वर्ग सत्ता की लड़ाई अपने नागरिकों की पीठ पर लड़ रहा है. और वाकई में माओवादी, साम्यवादी और नेपाली कांग्रेस पार्टी राजा के हटने के बाद से सिर्फ एक दूसरे से झगड़ते नज़र आ रहीं हैं. उदाहरण के लिए नए संविधान पर फैसला या 20,000 पूर्व माओवादी लडाकों को सेना में शामिल करने पर निर्णय, इन सब बातों पर गतिरोध बना हुआ है. अगर नेपाल की सभी पार्टियां एक दूसरे के साथ मिलजुल कर काम नहीं करेंगी और सभी पक्षों के लिए किसी स्वीकार्य समाधान पर राज़ी नहीं होंगी, तो शांति प्रक्रिया वाकई में खतरे में होगी."

Generalstreik Nepal Maoisten
नेपाल में माओवादियों ने हड़ताल घोषित किया थातस्वीर: AP

संकलनः प्रिया एसेलबॉर्न

संपादनः ए जमाल