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अरुधंति भी लौटाएंगी सम्मान

५ नवम्बर २०१५

जानी मानी लेखिका अरुंधति रॉय ने अपने राष्ट्रीय पुरस्कार को लौटाने का एलान किया. भारत के मौजूदा माहौल को उन्होंने "वैचारिक क्रूरता" और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खतरा बताया.

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तस्वीर: AP

1989 में एक फिल्म के लिए बेस्ट स्क्रीनप्ले राइटिंग का नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली अरुधंति रॉय ने पुरस्कार लौटाने को गर्व का एक लम्हा करार दिया, "मैं बहुत खुश हूं कि मेरे पास एक नेशनल अवॉर्ड है जिसे मैं वापस कर सकती हूं क्योंकि ऐसा करने से मैं देश के लेखकों, फिल्मकारों और शिक्षाविदों द्वारा शुरू की गई राजनीतिक मुहिम का हिस्सा बन पाऊंगी, जो वैचारिक क्रूरता और हमारे सामूहिक चेतना पर हमले के खिलाफ खड़े हुए हैं. अगर हम अभी इसके खिलाफ खड़े नहीं हुए तो ये हमें विभाजित और गहरे दफन कर देगा."

अरुधंति रॉय ने भारतीय अखबार इंडियन एक्सप्रेस में अपनी भावनाएं लिखी हैं. अपने उपन्यास गॉड ऑफ स्माल थिंग्स के लिए बुकर पुरस्कार जीतने वाली रॉय ने भारत में बढ़ती असहिष्णुता पर गहरी नाराजगी जताते हुए लिखा, "जो कुछ आज देश में हो रहा है उससे मैं बेहद शर्मिंदा हूं. मैंने 2005 में कांग्रेस की सरकार के समय भी साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया था. लिहाजा कृपया मुझे कांग्रेस बनाम बीजेपी की पुरानी बहस में न घसीटें."

55 साल की लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता ने असहिष्णुता या असहनशीलता शब्द के इस्तेमाल पर भी एतराज जताया है, "पीट पीटकर हत्या करना, गोली मारना, जला देना और साथी इंसानों के जनसंहार के लिए सबसे पहले तो 'असहनशीलता' शब्द ही गलत है. दूसरी बात कि हमें पहले ही संकेत मिल जाते हैं कि आगे क्या होने वाला है, लिहाजा मैं यह दावा नहीं कर सकती कि इस सरकार के भारी बहुमत से सत्ता में आने के बाद जो कुछ हो रहा है उससे मैं हैरान हूं. तीसरी बात, बर्बर हत्याएं बहुत गहरी बीमारी के सिर्फ संकेत हैं. जिंदा लोगों के लिए जीवन नर्क की तरह है. पूरी आबादी, करोड़ों दलितों, आदिवासियों, मुस्लिमों और ईसाइयों को आतंक में रहने को मजबूर किया जा रहा है, उन्हें पता नहीं है कि हिंसा कब और कहां से आएगी."

इस बीच "जाने भी दो यारो" जैसी सदाबहार कॉमेडी फिल्म के निर्देशक कुंदन शाह ने भी एफटीआईआई विवाद और बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में अपना पुरस्कार लौटाने का एलान किया. शाह ने कहा, "अगर बीजेपी की सरकार सत्ता में होती तो जाने भी दो यारो जैसी फिल्म को अनुमति ही नहीं मिलती."

भारत में इस वक्त "बढ़ती असहिष्णुता" की बहस केंद्र में है. तर्कशास्त्री एमएम कालबुर्गी की हत्या, गोमांस की अफवाह में मुस्लिम व्यक्ति की पीट पीटकर हत्या और दलितों बच्चों की हत्या के मामले सामने आने के बाद यह बहस दो पक्षों में बंट रही है. एक तरफ असहिष्णुता बढ़ने के आरोप लग रहे हैं तो दूसरी तरफ छद्म धर्मनिरपेक्षता के.

लेकिन यह बहस सकारात्मक बदलाव की तरफ बढ़ती नहीं दिख रही है. मोदी सरकार के मंत्री और बीजेपी ने नेता विरोध को प्रायोजित करार दे रहे हैं. लेकिन बीजेपी खुद को अपने नेताओं की नफरत भरी बयानबाजी से अलग भी कर रही है. पार्टी कहीं न कहीं मान रही है कि उसके नेता नफरत भरी बयानबाजी कर रहे हैं. लेकिन "सबका साथ, सबका विकास" का नारा देकर सत्ता में आई बीजेपी इसे रोकने के लिए अब तक एक सख्त कदम नहीं उठा सकी है.

भारत में जारी इस बहस पर आपकी क्या राय है, सबसे नीचे लिखें अपनी राय.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी