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असम पर जलवायु परिवर्तन की मार

प्रभाकर मणि तिवारी
४ नवम्बर २०१७

लंबे अरसे से जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे पूर्वोत्तर राज्य असम में अब राज्य कार्य योजना (स्टेट एक्शन प्लान आन क्लाइमेट चेंज) के जरिए इसके असर पर अंकुश लगाने की पहल हो रही है.

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Indien | Überflutungen in Assam
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Nath

असम सरकार ने अब सौर ऊर्जा नीति बनाने का भी फैसला किया है ताकि बिजली संयंत्रों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में कटौती की जा सके. पारिस्थितिकी जैवविविधता वाला क्षेत्र होने की वजह असम जलवायु में होने वाले बदलावों के प्रति बेहद संवेदनशील है.

जलवायु परिवर्तन की वजह से 1950 से 2010 के बीच राज्य का औसत तापमान सालाना 0.01 डिग्री सेल्शियस की दर से बढ़ा है जबकि बारिश घटी है. विशेषज्ञों का कहना है कि संयुक्त उपायों के जरिए इस पर अंकुश लगाना संभव है. विकास एजेंसी एक्शन ऑन क्लाइमेट टूडे (एसीटी) भी इस मामले में सरकार की सहायता कर रही है.

जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझता बंगाल

राज्य में बीते छह दशकों के दौरान सालाना बारिश में 0.96 मिमी की गिरावट दर्ज की गयी है. इसके साथ ही साल भर के दौरान बारिश के दिन कम हुए हैं और 24 घंटों में अधिकतम बारिश की मात्रा भी घटी है. असम के प्रिंसिपल कन्जर्वेटर ऑफ फारेस्ट्स (बायो-डाइवर्सिटी एंड क्लाइमेट चेंज) एके जौहरी कहते हैं, "मानसून के बाद और जाड़ों के सीजन में तापमान में वृद्धि ज्यादा स्पष्ट नजर आती है." वह कहते हैं कि शोध, समुचित तकनीक, क्षमता में वृद्धि और दक्ष शासन के जरिए जलवायु परिवर्तन के असर पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है.


संयुक्त उपाय जरूरी

विशेषज्ञों का कहना है कि इन उपायों से जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों पर पूरी तरह अंकुश लगाना भले संभव नहीं हो, लेकिन उन्हें काफी हद तक कम जरूर किया जा सकता है. इसी तरह कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए हरित उर्जा पर निर्भरता बढ़ानी होगी. जलवायु परिवर्तन के संदर्भ ने उसके असर के अध्ययन और उस पर अंकुश लगाने के लिए एसएपीसीसी ने फिलहाल राज्य में छह इलाकों पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है. इनमें रोजी-रोटी की निरंतर उपलब्धता के अलावा प्राकृतिक आपदा, स्वास्थ्य, जल संसाधन, शहरी योजना और उर्जा शामिल हैं. जोहरी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से दो तरीकों से निपटा जा सकता है. इनमें पहला है एडॉप्शन यानी रूपातंरण. इसका मतलब है कि अगर जलवायु परिवर्तन हो रहा है तो इससे निपटने के लिए हमें क्या करना होगा. दूसरा तरीका है मिटीगेशन यानी शमन. इसका मतलब जलवायु परिवर्तन की वजहों को दूर करने का प्रयास करना है. वृक्षारोपण इसका सबसे बेहतर तरीका है.

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विकास एजेंसी एक्शन ऑन क्लाइमेट टूडे (एसीटी) की असम टीम के प्रमुख रिजवान उज-जम्मान कहते हैं, "मौजूदा दौर में जलवायुजनित परिस्थितियों में होने वाले बदलावों के मुताबिक तालमेल बिठा कर आगे बढ़ना जरूरी है ताकि इसके असर को कम करते हुए इस मौके का बेहतर इस्तेमाल किया जा सके." वह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर निचले स्तर के लोगों पर होता है. कम आय वर्ग के लोग इस मामले में संवेदनशील होते हैं क्योंकि इसका सीधा असर उनकी आजीविका पर पड़ता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि जागरूकता के अभाव और गरीबी के चलते जलवायु में होने वाले किसी भी बदलाव के प्रति ऐसे लोगों की संवेदनशीलता बढ़ जाती है. इसके लिए जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए किसी भी योजना की शुरुआत प्रशासन के स्थानीय स्तर से की जानी चाहिए. ऐसे लोगों के पारंपरिक ज्ञान व अनुभवों इस मुद्दे पर ठोस योजना बनाने में अहम सहयाता मिल सकती है.

रिजवान कहते हैं कि महज शीर्ष स्तर पर योजना बनाने और उनको लागू करने से कोई फायदा नहीं होगा. इससे मुद्दे से असरदार तरीके से निपटने के लिए ऐसी किसी भी योजना की शुरूआत जमीनी स्तर से करनी होगी.

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सौर ऊर्जा नीति

असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने हाल में बिजली विभाग की बैठक में सौर ऊर्जा के दोहन के लिए एक ठोस नीति बनाने का निर्देश दिया है. वह कहते हैं, "सौर ऊर्जा में निवेश के कई प्रस्ताव मिल रहे हैं. लेकिन किसी ठोस नीति के अभाव में इन पर काम नहीं हो पा रहा है." उनका कहना है कि सौर ऊर्जा से जहां राज्य में बिजली की बढ़ती जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा वहीं इससे पारंपरिक बिजली केंद्रों से पैदा होने वाले कार्बन उत्सर्जन पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा. विशेषज्ञों ने सरकार के इस फैसले को देर आयद दुरुस्त आयद करार दिया है.

मछुआरों से ज्ञान साझा करते वैज्ञानिक

राज्य के विज्ञान व तकनीक मंत्री केशव महंत कहते हैं, "असम ऊर्जा विकास एजेंसी सौर ऊर्जा के दोहन के लिए जल्दी ही छतों पर सौर ऊर्जा पैनल लगाने की एक योजना शुरू करेगी. इसके तहत सरकारी सब्सिडी देकर कम खर्च में छतों पर सौर ऊर्जा पैनल लगाए जाएंगे." उनका कहना है कि बाढ़ के दौरान बिजली के खंभे टूट व डूब जाने से सप्लाई बहाल करने में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. सौर ऊर्जा से यह समस्या खत्म हो जाएगी. ध्यान रहे कि इस साल राज्य में आयी बाढ़ में बिजली की तारों के टूटने की कई घटनाएं हुई थीं. दर्जनों लोग पानी में बिजली फैलने की वजह से मारे गये.

राज्य सरकार व जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि असम को हर साल भारी बाढ़ और सूखे जैसी हालत का सामना करना पड़ता है. एसएपीसीसी के जरिए जलवायु परिवर्तन के असर को कम कर ग्रामीण इलाकों का आर्थिक विकास सुनिश्चित किया जा सकता है. लेकिन साथ ही विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इन योजनाओं के लिए सरकार को भी गंभीर इच्छाशक्ति दिखानी होगी. जमीनी स्तर पर ठोस ढंग से इन योजनाओं को लागू किये बिना जलवायु परिवर्तन के असर पर काबू पाना संभव नहीं होगा.