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असम हमलों में मासूमों को भी नहीं बख्शा

२४ दिसम्बर २०१४

असम में हुए उग्रवादी हमलों में कम से कम 65 लोग मारे गए हैं. क्रमिक हमलों में उग्रवादियों ने महिलाओं और बच्चों समेत गांववालों को घरों से बाहर निकाला और गोलियों का निशाना बनाया.

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तस्वीर: STR/AFP/Getty Images

पुलिस ने सोनितपुर और कोकराझार जिले में हुए हमलों के लिए प्रतिबंधित संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोड़ोलैंड (एनडीएफबी) को जिम्मेदार ठहराया है. यह संगठन पिछले कई दशक से भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में बोड़ो आदिवासी समुदाय के लिए एक अलग राज्य की मांग कर रहा है. असम की 3.3 करोड़ की आबादी में उनका हिस्सा दस फीसदी है.

मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने हमलों की निंदा करते हुए कहा, "यह हाल के दिनों में अब तक का सबसे बर्बर हमला है जिसमें हमलावरों ने मासूमों को भी नहीं बख्शा." प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमले की कड़ी आलोचना करते हुए इसे "कायरता" बताया. उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृहमंत्री असम जाकर हालात का जायजा लेंगे. पुलिस का मानना है कि हमले की वजह हाल में सरकार और एनडीएफबी के एक गुट के बीच बातचीत की कोशिश रही हो. संगठन के कट्टरपंथी तबके बातचीत का विरोध कर रहे हैं.

भूटान और बांग्लादेश सीमा से लगे असम में जातीय हिंसा और बढ़ता अलगाववाद काफी समय से समस्या बना हुआ है. यहां का स्थानीय बोड़ो उग्रवादी समूह मुसलमानों और स्थानीय आदिवासियों को हमलों का निशाना बनाता रहा है. स्थानीय मुसलमान और आदिवासी बोड़ो संगठन की अलग राज्य की मांग का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि राज्य के कई हिस्सों में उनकी बड़ी आबादी बसती है.

हमले का निशाना बने ज्यादातर लोग आदिवासी हैं जो स्थानीय चाय के बागानों में काम करते थे. पुलिस इंस्पेक्टर जनरल एलआर बिश्नोई ने बताया कि कोकराझार जिले में 25 लाशें बरामद की गई हैं जबकि सोनितपुर में 36 लाशें मिली हैं. कम से कम 20 गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती हैं. पुलिस अंदरूनी इलाकों में भी मृत या जख्मी लोगों की खोज कर रही है. पुलिस के मुताबिक हमलों में 12 बच्चे मारे गए. संवेदनशील इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है. बुधवार को कुछ स्थानों पर आदिवासियों ने भी जवाबी हमले किए. आदिवासी उग्रवादियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने की मांग कर रहे हैं.

एक गांव वाले ने बताया कि उसने हमलावरों को देखा. उनके पास राइफलें थीं. अनिल मुर्मू ने बताया, "मैंने अपनी बीवी और दो बच्चों को अपनी आंखों के सामने मारे जाते देखा." 40 साल के मुर्मू हमले के समय अपने गांव फुलबारी में मौजूद थे जहां 30 लोगों को मार दिया गया. उन्होंने बताया कि वह हमले के समय बिस्तर के नीचे छिप गए, और ऐसे उनकी जान बची.

पिछले कुछ समय में बोड़ो संगठन ने मुसलमानों और आदिवासियों को अपने गुरिल्ला हमलों का निशाना बनाया. साल की शुरुआत में सीमा विवाद के चलते हुई हिंसा में 45 लोगों के मारे गए और करीब 10,000 लोग अपने घरों को छोड़ कर भाग खड़े हुए. इसी तरह 2012 में हुई जातीय हिंसा में 100 से ज्यादा लोग मारे गए और करीब 400,00 लोग विस्थापित हुए.

एसएफ/एमजे (एएफपी)