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अस्पतालों की मनमानी पर नकेल की पहल

प्रभाकर मणि तिवारी
२७ फ़रवरी २०१७

इलाज में कोताही और मरीजों से भरी-भरकम बिल वसूलने के कई आरोप सामने आने के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने अब राज्य में निजी व कारपोरेट अस्पतालों की मनमानी पर नकेल कसने की पहल की है.

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Indien Hepatitis-Patientin im Krankenhaus
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky

इस पहल के तहत मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने, जो स्वास्थ्य मंत्री भी हैं, तमाम अस्पतालों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक में उनकी जमकर क्लास लेते हुए उनसे महज मुनाफा कमाने की बजाय मानवीय चेहरा दिखाने को कहा है. हाल में कई अस्पतालों में मरीजों से लाखों रुपए के बिल वसूलने और इलाज में लापरवाही के आरोपों की वजह से मरीजों के मौत के बाद विभिन्न निजी अस्पतालों में तोड़-फोड़ की कई घटनाएं हुई हैं. एक ताजा सर्वेक्षण में इसका खुलासा हुआ है कि बंगाल के अस्पतालों में इलाज का खर्च राष्ट्रीय औसत के मुकाबले ज्यादा है.

आरोपों की भरमार

हाल के वर्षों में निजी अस्पतालों की बाढ़ आ गई है. इनके खिलाफ अक्सर गैरजरूरी टेस्ट कराने, मोटी रकम वसूलने और इलाज में कोताही के आरोप लगते रहे हैं. यूं तो राज्य के निजी अस्पतालों पर पहले भी भारी-भरकम बिल देने और उसका भुगतान नहीं करने तक मरीज का शव परिजनों को नहीं देने के आरोप लगते रहे हैं. लेकिन बीते दिनों महानगर में बिड़ला समूह के प्रतिष्ठित अस्पताल कलकत्ता मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमआरआई) में हुई एक घटना के बाद सरकार की नींद टूटी थी.

इस अस्पताल में एक किशोरी को पेट में दर्द की शिकायत के साथ दाखिल किया गया था. परिजनों का आरोप है कि अस्पताल में पहले ही डेढ़ लाख रुपए जमा कराने को कहा. परिजनों ने किसी तरह इंतजाम कर 70 हजार रुपए जमा कराए. लेकिन आरोप है कि पूरे पैसे नहीं मिलने की वजह से अस्पताल ने उस किशोरी का इलाज ही शुरू नहीं किया. नतीजतन अगले दिन सुबह उसकी मौत हो गई. इस पर किशोरी के परिजनों ने अस्पताल में जमकर तोड़फोड़ की और कर्मचारियों के साथ भी मारपीट की. इस घटना के बाद ही मुख्यमंत्री ने तमाम अपतालों के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाने का फैसला किया.

Indien Regierung Maßnahmen
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जीतस्वीर: DW/P. Tewari

अस्पताल प्रबंधन की क्लास

पश्चिम बंगाल के निजी अस्पतालों के खिलाफ इलाज के लिए मरीजों के परिजनों से अनैतिक तरीके से मोटी रकम वसूलने के बढ़ते आरोपों को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य के एक दर्जन से ज्यादा निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम के प्रतिनिधियों की जमकर क्लास ली थी. उन्होंने तमाम अस्पतालों से अनैतिक तरीके से धन कमाने की मौजूदा प्रवृत्ति पर अंकुश लगा कर मानवीय चेहरा सामने लाने की अपील की थी. मुख्यमंत्री ने निजी अस्पतालों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए एक सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य नियामक आयोग के गठन का भी एलान किया है. यह आयोग निजी अस्पातालों के कामकाज और उनके खिलाफ आने वाली शिकायतों पर नजर रखेगा. विधानसभा में इससे संबंधित विधेयक तीन मार्च को पेश किया जाएगा. ममता ने अस्पतालों के इस अनैतिक कामकाज पर अंकुश लगाने का संकल्प दोहराया है.

पश्चिम बंगाल सरकार की एक चिंता यह भी है कि अस्पतालों का यह बर्ताव मेडिकल चिकित्सा के कारोबार को भी प्रभावित कर रही है. मुख्यमंत्री कहती हैं, "इलाज के भारी-भरकम खर्च के चलते अब बांग्लादेश, नेपाल व भूटान के मरीज इलाज के लिए महानगर के निजी अस्पतालों में आने से कतरा रहे हैं. मुझे बांग्लादेश से इस आशय की कई शिकायतें मिली हैं." उन्होंने इस मामले में अपोलो अस्पताल के सीओओ राणा दासगुप्ता को भी हड़काया. इसी तरह एक अस्पताल के प्रतिनिधि से ममता ने पूछ लिया कि क्या आपके अस्पताल में किडनी रैकेट अब भी चलता है? इससे हक्का-बक्का उस प्रतिनिधि को इस सवाल का कोई जवाब नहीं सूझा.

बैठक में ममता का कहना था कि अस्पतालों में तोड़फोड़ की घटनाएं निंदनीय हैं. लेकिन अस्पताल प्रबंधन को समझना चाहिए कि उनका मुख्य मकसद आम लोगों की सेवा है. लेकिन ज्यादातर मामलों में इलाज के लिए मोटी रकम वसूली जाती है. मामूली मर्ज के लिए गैर-जरूरी महंगे टेस्ट कराए जाते हैं और जरूरत नहीं होने पर भी मरीज को आईसीयू में दाखिल कर दिया जाता है. उन्होंने कहा कि इसमें डाक्टरों का कोई दोष नहीं होता. उन पर प्रबंधन का भारी दबाव रहता है. इसके अलावा इमरजेंसी में पहुंचने वाले मरीजों को दाखिला नहीं दिया जाता.

बैठक में ममता ने अपने साथ एक निजी अस्पताल में हुई घटना का भी जिक्र किया. एक मामूली मर्ज के इलाज के लिए अस्पताल पहुंची ममता के तमाम महंगे टेस्ट कराए गए. लेकिन बाद में एक दूसरे डाक्टर ने इन तमाम परीक्षणों को गैर-जरूरी करार दिया.

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अस्पताल में तोड़फोड़तस्वीर: DW/P. Tewari

विधायकों को भी नहीं बख्शा

महानगर के निजी अस्पतालों ने मोटी रकम वसूलने में मंत्रियों व विधायकों से भी कोई रियायत नहीं की है. इन मंत्रियों व विधायकों के बिलों का भुगतान राज्य सरकार करती है. तमाम विधायक अपने इलाज का बिल विधानसभा अध्यक्ष को सौंपते हैं. उसके बाद सरकार इनका भुगतान करती है. ममता कहती हैं, "विधायकों के इलाज का भारी-भरकम बिल देख कर होश गुम हो जाते हैं. कई अस्पतालों में एक दिन के बेड का किराया ही 15 से 25 हजार तक है. इसके अलावा तमाम तरह के महंगे परीक्षण कराए जाते हैं." हाल में कुछ विधायकों ने सरकार को मामूली मर्ज के इलाज के लिए 10 से 15 लाख तक के बिल जमा किए थे. इसी तरह एक विधायक की आंखों की जांच और चश्मे का बिल ही एक लाख रुपए आया था. इसे ध्यान में रखते हुए सरकार पहले ही इन अस्पतालों के कामकाज की जांच का मन बना रही थी. लेकिन सीएमआरआई की घटना ने उसे एक बहाना दे दिया.

हालांकि ममता की चेतावनी के बाद भी अस्पतालों के रवैये में कोई खास फर्क नहीं आया है. महानगर के अपोलो अस्पताल ने सड़क हादसे में घायल एक मरीज को सरकारी अस्पताल में दाखिल करने की तब तक अनुमति नहीं दी जब तक उसे साढ़े सात लाख रुपए का बिल नहीं मिल गया. इलाज में देरी की वजह से उस मरीज की मौत हो जाने के बाद उसके परिजनों ने थाने में अस्पताल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है. राज्य सरकार ने भी अपने स्तर पर इस मामले की जांच शुरू की है. बाद में तृणमूल कांग्रेस के एक दबंग नेता मदन मित्र के धमकाने पर अस्पताल ने मानवीय आधार पर पूरी रकम लौटाने का फैसला किया है. लेकिन अब भी राज्य के विभिन्न हिस्सों से ऐसे आरोप सामने आ रहे हैं.

एक अस्पताल के वरिष्ठ डाक्टर नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, "अस्पताल प्रबंधन की ओर से उन पर मरीजों के महंगे टेस्ट की सिफारिश करने और कारोबार बढ़ाने का दबाव होता है. नतीजतन कई मामलों में जरूरत नहीं होने पर भी आपरेशन करने या मरीज की हालत गंभीर बता कर आईसीयू में भर्ती करने की सलाह दे दी जाती है." स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि दरअसल बरसों से बेलगाम रहने की वजह से इन अस्पतालों के मुंह में खून लग गया है. इनका मकसद मरीजों की सेवा नहीं बल्कि उनसे येन-केन-प्रकारेण मोटी रकम चूसना है. अब शायद सरकार की पहल से उनके इस रवैए पर कुछ हद तक अंकुश लगे.