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अस्पतालों में कीटाणुओं से सावधान

२९ अक्टूबर २०१५

अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है कीटाणुओं और वायरस का मुकाबला करना, खासकर उनका जो एंटीबायटिक प्रतिरोधी हो गए हैं. ये कीटाणु मरीज के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं.

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तस्वीर: Colourbox

दुनिया भर में करीब सात लाख लोग अस्पतालों में हुए संक्रमण की वजह से जान गंवाते हैं. यह समस्या जर्मनी में भी है. जर्मन शहर येना के मेडिकल कॉलेज ने अब इस तरह के संक्रमण के अध्ययन के लिए एक विभाग खोला है ताकि उसके नतीजों का फायदा दूसरे अस्पताल भी उठा सकें. 1300 बेड वाले येना मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में साल 2012 से संक्रमण और अस्पतालों में स्वच्छता पर अध्ययन चल रहे हैं. जर्मनी के किसी दूसरे अस्पताल में इस विषय पर पढ़ाई नहीं होती.

इंफेक्शन एक्सपर्ट डॉक्टर मथियास प्लेत्स इस सेंटर के प्रमुख हैं. वे कीटाणुओं की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ने से रोकने की कोशिश में लगे हैं. इसके लिए अस्पताल में बेहतर साफ सफाई और दवाओं का इस्तेमाल जरूरी हैं. इंफेक्शन एक्सपर्ट के रूप में वे अस्पतालों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया के जानकार हैं. वे नियमित रूप से राउंड लेते हैं और डॉक्टरों को सलाह देते हैं.

दिन में 100 बार डिसइंफेक्टेंट

अस्पताल में साफ सफाई का ध्यान रखती हैं नर्स कोनी गोएलित्स. इनकी जिम्मेदारी है कि कीटाणुओं का प्रसार न हो. वे दिन में कम से कम सौ बार अपने हाथों को डिसइंफेक्ट करती हैं. यह ना सिर्फ उनके काम का रूटीन है, बल्कि कीटाणुओं को फैलने से रोकने के लिए जरूरी है. फिलहाल वे आईसीयू में सफाई का निरीक्षण कर रही हैं. यहां एक मरीज है जिसके शरीर में एक बहुप्रतिरोधी कीटाणु है. यहां सुरक्षा पोशाक पहनना नियम है. ऐप्रन, मास्क, दस्ताने, ये संक्रमण से रक्षा करते हैं. यह इस बात को भी सुनिश्चित करते हैं कि सफाई करने वाली टीम कमरे में नए कीटाणु ना लेकर आए और ना ही वहां से कीटाणु बाहर ले जाए. गोएलित्स बताती हैं, "हम खास जगहों पर रहने वाले कीटाणुओं को भी खोजते हैं. मुंह, नाक या गले की नली में रहने वाले कीटाणु. ऐसे जिनका प्रसार यहां काम करने वालों के जरिए हो सकता है. इसलिए हमारे यहां हाथों की सफाई बहुत जरूरी है. इसके बारे में मैं दिन में सौ से दो सौ बार ध्यान दिलाती हूं."

पोस्ट एंटीबायोटिक एज

येना मेडिकल कॉलेज में साफ सफाई के नियम जर्मनी के सभी अस्पतालों में सबसे सख्त हैं. कोनी गोएलित्स के सहकर्मियों के लिए इसका मतलब है हमेशा सावधान रहना. डॉक्टर मथियास प्लेत्स इस पर भी ध्यान देते हैं कि जब एंटीबायोटिक दवाओं का काम हो गया हो, तो समय पर उन्हें रोक दिया जाए. लेकिन इसमें आईसीयू के डॉक्टरों को काफी मुश्किल होती है, "वे मरीजों के लिए पूरी सुरक्षा चाहते हैं. लेकिन इतनी ज्यादा सुरक्षा भी हमेशा सही नहीं होती क्योंकि हो सकता है कि मरीजों को बाद में कभी बहुप्रतिरोधी कीटाणुओं से संक्रमण हो जाए. इसलिए थोड़ा दूर का, थोड़ा विवेकपूर्ण नजरिया जरूरी है."

दरअसल नई एंटीबायोटिक दवाओं की फौरन जरूरत है लेकिन उसके विकास की प्रक्रिया लंबी और महंगी है. नई दवा के बाजार में आने में दस साल तक लग जाते हैं. फिलहाल डॉक्टरों के लिए जल्द से जल्द यह जानना जरूरी है कि क्या मरीज बहुप्रतिरोधी बैक्टीरिया लेकर अस्पताल आया है. ये बैक्टीरिया डॉक्टर प्लेत्स के लिए चुनौती हैं. उनका कहना है, "इंफेक्शन स्टडीज की खास बात यह है कि सिर्फ मरीज और बीमारी तथा दवा के बीच ही रिश्ता नहीं है, बल्कि मरीज, बैक्टीरिया और इंफेक्शन रोकने वाली दवा के बीच त्रिकोणीय संबंध भी है. और इस त्रिकोणीय रिश्ते में बैक्टीरिया लगातार प्रतिरोधक क्षमता को हासिल कर तेजी से बदलता रहता है."

इसलिए इंफेक्शन का इलाज नियमित रूप से बदल रहा है. डॉक्टर और रिसर्चर अब पोस्ट एंटीबायोटिक एज की बात करने में लगे हैं. क्योंकि मौजूदा साधनों से तो बैक्टीरिया की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ने से रोकना संभव नहीं लगता.

मार्क एराथ/आईबी