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अहिंसा सिल्क बाज़ार में

२३ जुलाई २०१०

जीवहत्या के डर से सिल्क न पहनते वालों के लिए नया रेशम हाजिर है. कांचीपुरम के सिल्क बाज़ार में ऐसी साड़ियां बिक रही हैं जो अहिंसा सिल्क से बनी है. बनाने वाले का दावा है कि ये सिल्क कोकून की हत्या किए बगैर तैयार हुआ है.

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तस्वीर: AP

सिकंदराबाद के कुशमा राजा ने इस ख़ास सिल्क को तैयार किया है जिसे बाज़ार तक लाए हैं पी गोपीनाथ. गोपीनाथ इस साड़ी के ख़ास ब्रैंड को अपने शोरूम में बेच रहे हैं.

इसमें कोकून के कीड़ा बनने के बाद रेशम निकाला जाता है. रेशम के इन धागों को तैयार करने की प्रक्रिया के लिए राजा के नाम से अंतरराष्ट्रीय पेटेंट भी है. राजा बड़े उत्साह से बताते हैं कि उनके इस ख़ास रेशम में बाज़ार और लोगों ने गहरी दिलचस्पी दिखाई है. गोपीनाथ कहते हैं कि महिलाओं को इन सिल्क की साड़ियों को पहनने में ज्यादा खुशी हो रही है क्योंकि उनपर किसी जीव की हत्या का बोझ नहीं होता.

राजा ने इस रेशम को अहिंसा सिल्क का नाम दिया है. उम्मीद की जा रही है कि अहिंसक तरीके से जीवन गुजारने वाले लोगों की एक बड़ी संख्या इस सिल्क को अपनाने के लिए सामने आएगी. हालांकि इस ख़ास सिल्क के लिए आपको थोड़ी ज्यादा कीमत चुकानी होगी. एक साड़ी की कीमत करीब 10 हज़ार रुपये है जो दूसरे सिल्क के मुकाबले करीब 2000 रुपये ज्यादा है.

बुनकरों के एक सर्विस सेंटर ने जानकारी दी है कि 90 के दशक से ही इस सिल्क को बनाने की कोशिशें हो रही थीं. भारत के उत्तरपूर्वी इलाकों में रहने वाले कई आदिवासी समूह इसकी कोशिश कर रहे थे. इस सिल्क के लिए अलग तरह के शहतूतों की जरूरत होती है. इन्हें मुगा, एरी या तुसार कहा जाता है जो पेड़ों की बहुत ऊंचाई पर पैदा होते हैं. ये भी कोशिश हो रही है कि इस ख़ास सिल्क को जंगल लगाने की प्रक्रिया से जोड़ा जाए ताकि आदिवासियों को इसके जरिए रोजगार के अच्छे मौके मिल सकें.

रिपोर्टः एजेंसियां/ एन रंजन

संपादनः महेश झा