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आरटीआई को ठेंगा

२५ अगस्त २०१५

केंद्र सरकार, राजनीतिक दलों के हिसाब किताब को आरटीआई से बाहर रखना चाहती है. सरकार का तर्क है कि आरटीआई के चलते राजनीतिक दल कमजोर पड़ेंगे और फायदा लेने के लिए तिल का ताड़ बनाया जाएगा.

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तस्वीर: Getty Images/ Punit Paranjpe

सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी और कांग्रेस समेत छह राष्ट्रीय पार्टियों को नोटिस भेजा था. सर्वोच्च अदालत ने पूछा कि वे क्यों खुलकर सामने नहीं आ रही हैं और अपनी आय, खर्चे, चंदे, फंड और दानदाताओं की जानकारी देने में क्यों झिझक रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग व केंद्र सरकार से भी जवाब मांगा था. सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने दायर की है. उनकी तरफ से प्रशांत भूषण व लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले एक गैर सरकारी संगठन के संस्थापक ट्रस्टी जगदीप एस चोकर पैरवी कर रहे हैं.

याचिका के मुताबिक राजनीतिक पार्टियां केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के 2013 और मार्च 2015 के आदेश का उल्लंघन कर रही हैं. सीआईसी ने 2013 के आदेश में कहा था कि सभी राष्ट्रीय और प्रांतीय राजनीतिक दल सूचना के अधिकार के तहत आते हैं. इसी साल मार्च में सीआईसी ने एक बार फिर कहा कि उसका आदेश "अंतिम व बाध्यकारी" है.

हलफनामे के जरिए इसका जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने कहा, "सीआईसी ने आरटीआई एक्ट की धारा 2(एच) का बेहद लचीला अर्थ निकाला है, इसके चलते गलती से यह नतीजा निकाला जा रहा है कि आरटीआई एक्ट के तहत राजनीतिक दल सार्वजनिक संस्थाएं हैं. राजनीतिक दल संविधान द्वारा न तो स्थापित किये गए हैं, न ही संविधान या संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के तहत आते हैं."

सरकार ने आशंका जताई है कि राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने पर इस कानून का दुरुपयोग भी होगा, "आगे, इसकी आशंका है कि राजनीतिक प्रतिद्ंद्वी द्वेष के इरादे से राजनीतिक दलों के बारे में मुख्य सार्वजनिक सूचना अधिकारी के पास आरटीआई एप्लीकेशन फाइल करेंगे, इसका पार्टी की कार्यप्रणाली पर बुरा असर पड़ेगा."

केंद्र का कहना है कि आयकर अधिनियम 1961 और जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 में ऐसे प्रावधान पहले से हैं जो "वित्तीय नजरिये से राजनीतिक दलों से पारदर्शिता की मांग करती है." मोदी सरकार का कहना है कि जनप्रतिनिधि कानून 1951 के तहत राजनीतिक दल का पंजीकरण किसी सरकारी शाखा जैसा नहीं है. गृह मंत्रालय का कहना है कि राजनीतिक दलों से जुड़ी कई जानकारियां पहले से ही सार्वजनिक हैं और चुनाव आयोग की वेबसाइट पर हैं.

चुनाव आयोग के अनुसार भारत में इस समय 1866 पंजीकृत राजनीतिक पार्टियां हैं जिनमें से 239 मार्च 2014 के बाद रजिस्टर की गई है. पंजीकृत पार्टियों में से 56 को राष्ट्रीय या प्रांतीय पार्टी का दर्जा मिला हुआ है जबकि बाकी गैरमान्यताप्राप्त रजिस्टर्ड पार्टियां हैं. चुनाव आयोग के अनुसार 2014 के संसदीय चुनावों में 464 पार्टियों ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. छह राष्ट्रीय पार्टियों ने 2013-14 में अपनी आय 885 करोड़ रुपये दिखाई है. पिछले साल नवंबर में रिपोर्ट देने की तारीख बीत जाने के बावजूद बीजेपी ने अब तक अपनी रिपोर्ट चुनाव आयोग को नहीं दी है.

ओएसजे/एमजे (पीटीआई)