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इंटरनेट के आगे बेबस

१८ मार्च २०१३

इंटरनेट के बिना कंप्यूटर वैसा ही है जैसे केबल बिना टीवी. बच्चों के लिए भी इंटरनेट जानकारी का अहम स्रोत बन गया है. लेकिन इसके कुछ खतरे भी हैं, मासूम बच्चे जिज्ञासा के चलते ऐसी जगह पहुंच जाते हैं जो उनके लिए ठीक नहीं.

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तस्वीर: Fotolia/VladimirS

वे जमाने गए जब बच्चे लाइब्ररी में जा कर इनसाइक्लोपीडिया या मोटी मोटी किताबों में जानकारी ढूंढा करते थे. अब बस हर जानकारी एक क्लिक दूर ही होती है. जो भी जानना हो बस गूगल से पूछ लीजिए, जवाब पल भर में ही मिल जाएगा.

लेकिन यही इंटरनेट बच्चों के लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है. अक्सर इंटरनेट पर मिलने वाली कुछ जानकारियां 100 फीसदी सही है या नहीं, ये अंदाजा लगाना मुश्किल होता है. सोशल नेट्वर्किंग साइटों पर बच्चों की अनजान लोगों से दोस्ती बलात्कार और कत्ल जैसे अपराधों की शक्ल भी ले सकती है. इसके अलावा अश्लील वेबसाइटों पर जाने से बच्चों को कैसे रोकें, यह मां बाप के लिए परेशानी का सबब बन जाता है. 

सॉफ्टवेयर से मदद

जर्मनी में इसे रोकने के लिए और इंटरनेट को बच्चों के लिए सुरक्षित बनाने के लिए "किंडर सर्वर" यानी बच्चों का सर्वर लॉन्च किया गया है. दरअसल यह एक सॉफ्टवेयर है. इसे घर या स्कूल में कंप्यूटर पर डाला जा सकता है और बच्चों के लिए कई तरह की वेबसाइटों पर ताला लगाया जा सकता है.  बाजार में पहले भी "नेट नैनी" या "साइबर सिटर" नाम से इस तरह के सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं. 

जर्मन सरकार का दावा है कि "किंडर सर्वर" इन सब से बेहतर और बच्चों के लिए बिलकुल सही है. लेकिन जब कुछ ब्लॉगरों ने इसकी जांच की तो कुछ और ही सामने आया. यह बात सही है कि इस सॉफ्टवेयर से अश्लील साइटें नहीं खुल पाती, लेकिन अगर बच्चों को पता हो कि सॉफ्टवेयर को किस तरह से बंद करना है तो जाहिर सी बात है कि इसका कोई फायदा ही नहीं बचा.

Symbolbild Kinder mit Handys
तस्वीर: Fotolia/Jake Hellbach

जर्मनी के एक ब्लॉगर टॉर्बन फ्रीडरिष का कहना है, "आप इस सॉफ्टवेयर की तुलना हेलमेट से कर सकते हैं जो बच्चों को साइकिल चलाते वक्त पहनने के लिए दिया जाता है. लेकिन अगर बच्चे को साइकिल चलानी आती ही न हो, तो भला हेलमेट उसकी क्या मदद करेगा." फ्रीडरिष का कहना है कि इस तरह का सॉफ्टवेयर बहुत छोटे बच्चों के लिए काम कर सकता है जिन्होंने अभी कंप्यूटर ठीक तरह से इस्तेमाल करना नहीं सीखा है. लेकिन जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं और जिस उम्र में इंटरनेट उनके लिए खतरनाक बनने लगता है, वैसे वैसे बच्चे यह सीख चुके होते हैं कि सॉफ्टवेयर को कुछ क्लिक कर कैसे चकमा दे देना है.

सुरक्षा की गारंटी नहीं

जर्मनी के अन्य मशहूर ब्लॉगर जॉनी होएजलर का भी यही मानना है कि इस तरह के सॉफ्टवेयर बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित नहीं कर सकते. हाल ही में उन्होंने अपनी पत्नी के साथ इंटरनेट सुरक्षा पर एक किताब लिखी है, जिसमें कहा गया है, "किसी भी तरह की तकनीक, किसी भी तरह की सलाह, दुनिया के कोई मां बाप बच्चों को जिंदगी की हर परिस्थिति में 100 फीसदी सुरक्षित नहीं रख सकते."

लेकिन फिर भी इन सॉफ्टवेयर के फायदे को नकारा नहीं जा सकता. सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनियों के लिए जरूरी है कि वे उसे वक्त के साथ साथ अपडेट करते रहें. इसके लिए उन्हें हर रोज इंटरनेट पर नजर रखनी पड़ती है. हर रोज हिंसा या अश्लीलता से जुडी कई नई वेबसाइटें इंटरनेट में आती हैं. इन फिल्टरों को इन सबके बारे में पता होना जरूरी है. कई फिल्टर वेबसाइट में इस्तेमाल हुई भाषा पर भी ध्यान देते हैं. मिसाल के तौर पर यदि किसी वेबसाइट में कत्ल, खून, मौत, भूख जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाए तो फिल्टर उसे हटा देता है. नफरत फैलाने वाले और नाजीवादी लेखों को भी इसी तरह से फिल्टर कर दिया जाता है. जर्मनी के फ्राउनहोफेर इंस्टीट्यूट के स्वेन बेकर कहते हैं, "गलत तरह के लेखों को तकनीक 100 फीसदी नहीं रोक सकती, लेकिन वह उसमें मदद जरूर कर सकती है."

रिपोर्ट: सिल्के वुंश/ईशा भाटिया

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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