1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

इतिहास बनते कोलकाता के धरोहर

२२ अगस्त २०१४

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता को धरोहरों का शहर कहा जाता है. कोलकाता नगर निगम ने अब इन खस्ताहाल प्राचीन धरोहरों को संभालने के लिए पहल की है.

https://p.dw.com/p/1Cz39
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

कोलकाता में अंग्रेजों के जमाने की ऐतिहासिक इमारतों के अलावा कई और चीजें भी धरोहर में शुमार हैं. इनमें ही शामिल हैं महानगर और इसके आसपास फैले खूबसूरत तालाब. एक पुरानी कहावत है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. लेकिन महानगर के एक पर्यावरण इंजीनियर ने इस कहावत को गलत साबित करते हुए निगम को इस धरोहर के संरक्षण की दिशा में ठोस पहल के लिए मजबूर कर दिया है.

धरोहर तालाब

कोलकाता नगर निगम देश का पहला ऐसा शहरी निकाय है जिसने महानगर के 51 तालाबों को धरोहर का दर्जा देने की पहल की है. ब्रिटिश शासनकाल में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाने के बाद शहर में पानी की समस्या को दूर करने के लिए जगह-जगह तालाब खुदवाए थे. अब उनमें से ज्यादातर तालाब धरोहर बन गए हैं. यह तालाब महानगर के सांस्कृतिक इतिहास से जुड़े हैं. इनमें से आधे से ज्यादा तालाब डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा पुराने हैं.

निगम के मेयर शोभन चटर्जी कहते हैं, "कई महत्वपूर्ण हस्तियों, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े इन तालाबों का महत्व बेहद अहम है." सदियों तक इन तालाबों की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया था वे गंदगी का शिकार हो रही थीं, लेकिन पर्यावरण इंजीनियर मोहित रे ने महानगर के तालाबों के विस्तृत अध्ययन के बाद एक पुस्तक लिखी जिसमें उनके ऐतिहासिक महत्व का भी जिक्र किया गया है. रे की पुस्तक में ऐसे 48 तालाबों का जिक्र है. उनके इस अध्ययन के बाद निगम ने तीन और तालाबों की तलाश की. फिलहाल कोलकाता में ऐसे 51 तालाब हैं जिनके गर्भ में इतिहास छिपा है.

Indien Teiche in Kalkutta
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

इतिहास

वर्ष 1798 से 1805 तक भारत के गवर्नर जनरल रहे लॉर्ड वेसली ने कोलकाता के विकास के लिए टाउन डेवलपमेंट कमिटी का गठन किया था. इस कमिटी ने महानगर में कई प्रमुख सड़कों के निर्माण के अलावा तालाबों की खुदाई में अहम भूमिका निभाई. ब्रिटिश शासनकाल में हर तालाब के पास उसी के नाम के आधार पर स्क्वायर के नामकरण की परंपरा थी. कोलकाता का इतिहास तीन सौ साल से ज्यादा पुराना है और महानगर के कम से कम 24 तालाबों की उम्र दो से तीन सौ साल तक आंकी गई है.

मजेदार बात यह है कि मोहित रे की मंशा तालाबों पर किताब लिखने की नहीं थी. वह तो कोलकाता के तालाबों के पानी की गुणवत्ता पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक परियोजना पर काम कर रहे थे. उसी समय उनको समझ में आया कि महानगर के कुछ तालाब तो सदियों पुराने हैं और इतिहास में उनकी अहम भूमिका रही है. उसके बाद ही उनके मन में अपने इस अध्ययन को एक किताब की शक्ल देने का ख्याल आया. उसी का नतीजा है "ओल्ड मिरर्सः ट्रेडिशनल पौंड्स आफ कोलकाता." उन्होंने अपनी पुस्तक में जिन तालाबों का जिक्र किया है उनमें बोराल स्थित सेन दीघी का इतिहास सबसे पुराना है. समझा जाता है कि सेन वंश के शासनकाल के दौरान कोई साढ़े सात सौ साल पहले उसका निर्माण किया गया था. महानगर के दो सबसे नए तालाबों की उम्र भी लगभग 75 साल आंकी गई है.

महत्व

महानगर के इन तालाबों का खास महत्व है. इन्होंने कई बार भारी सूखे के दौरान स्थानीय लोगों को पीने के पानी की सप्लाई में अहम भूमिका निभाई है. इनमें से कई तालाबों के किनारे ऐतिहासिक मंदिर बने हैं. कोलकाता के बीचोबीच बने लालदीघी के किनारे ही सत्ता का केंद्र रायटर्स बिल्डंलिग बना है. दस्तावेज गवाह हैं कि वर्ष 1958 से 2007 के बीच महानगर में जलस्तर सात से 11 मीटर नीचे चला गया था.

मोहित रे कहते हैं, "महानगर के तालाबों की सहायता से इस जलस्तर को फिर पहले के स्तर पर बहाल किया जा सकता है." वह कहते हैं कि इसी अहमियत की वजह से तालाबों का संरक्षण जरूरी है. जरूरी तथ्य जुटाना ही संरक्षण की दिशा में पहला कदम है. रे की बातों में दम है. उनकी पुस्तक सामने आने के बाद ही नगर निगम की कुंभकर्णी नींद टूटी है और इन ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने की दिशा में पहली बार कोई ठोस पहल हो रही है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा