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इतिहास में आजः 15 सितंबर

१५ सितम्बर २०१३

15 सितंबर 1935 के दिन न्यूरेम्बर्ग कानून बनाकर जर्मन यहूदियों को जर्मन नागरिकता से वंचित कर दिया गया और उल्टे स्वस्तिक को नाजी जर्मनी का आधिकारिक प्रतीक बना दिया गया.

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तस्वीर: Bundesarchiv, Bild 183-J27793/Schremmer/CC-BY-SA

जर्मनी की नाजी तानाशाही में यह महत्वपूर्ण पड़ाव था, जिसका अंत बड़े पैमाने पर यहूदी नरसंहार और द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में सामने आया, जिसमें 60 लाख से ज्यादा लोग मारे गए

न्यूरेम्बर्ग शहर में हुई नाजी पार्टी की वार्षिक रैली में ये यहूदी विरोधी कानून पेश किया गया. 1933 में हिटलर के सत्ता में आने के बाद नाजीवाद जर्मनी की सरकारी विचारधारा बन गया और यहूदियों को व्यवस्थित और सुनियोजित तरीके से निशाना बनाया गया.
हालांकि यहूदी कौन हैं, इसकी साफ और कानूनी परिभाषा नहीं होने के कारण कुछ यहूदी इस भेदभाव से बच सके. बाद में रेस्टोरेशन ऑफ प्रोफेशनल सिविल सर्विसेज नाम का एक कानून बना, जिसके तहत गैर आर्यों को सिविल सर्विस में आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इस कानून के कारण नाजियों के राजनीतिक प्रतिद्ंवद्वियों के सिविल सर्विस में आने से रोक लग गई.

न्यूरेम्बर्ग कानून के तहत चार जर्मन दादा-दादियों वाले लोगों को जर्मन माना गया, लेकिन जिनके तीन या चार दादा-दादी यहूदी थे, उन्हें यहूदी माना गया. एक या दो यहूदी दादा-दादी वाले लोगों को मिश्रित खून वाला वर्णसंकर कहा जाता. इस तरह के कानूनों ने यहूदियों से जर्मन नागरिकता तो छीन ही ली, यहूदियों और जर्मनों के बीच शादी पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया. शुरुआत में तो यह कानून सिर्फ यहूदियों के लिए ही बने थे लेकिन बाद में इन्हें जिप्सियों या बंजारों और अश्वेतों पर भी लागू कर दिया गया.
इससे पहले ही जर्मनी में यहूदी व्यवसायों का बहिष्कार शुरू हो गया था. न्यूरेम्बर्ग कानूनों के माध्यम से न्यायिक मान्यता दी गई.

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