1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

इतिहास में आजः 17 मार्च

१५ मार्च २०१४

आधुनिक इतिहास में मानवाधिकार के लिए आज की तारीख सबसे अहम मानी जा सकती है. 17 मार्च, 1992 को दक्षिण अफ्रीका में जनमत संग्रह हुआ, जिसमें चमड़ी के रंग के आधार पर इंसानों में भेद करने के नियम को खत्म कर दिया गया.

https://p.dw.com/p/1BQJW
Trauer um Nelson Mandela
तस्वीर: Reuters

दो साल पहले ही 1990 में अश्वेतों के महान नेता नेल्सन मंडेला को जेल से रिहाई मिली थी. राष्ट्रपति एफडब्ल्यू डी क्लार्क ने देश का काया बदलने का मन बना लिया था और वह चाहते थे कि इस मुद्दे पर लोगों से राय ली जाए कि क्या वे रंगभेद की नीति को जारी रखना चाहते हैं या नहीं. 1948 से दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद था और इसकी वजह से दुनिया भर ने उस पर पाबंदी लगा रखी थी. हालांकि संसद में कुछ पार्टियां इस प्रस्ताव के खिलाफ थीं.

राष्ट्रपति को डर था कि अगर रंगभेद जारी रहा तो देश में गृह युद्ध और भड़क सकता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दक्षिण अफ्रीका की स्थिति और खराब हो सकती है. देश के करीब 33 लाख श्वेत वोटरों से 17 मार्च, 1992 को पूछा गया कि क्या वे रंगभेद के नियम को खत्म करना चाहते हैं. करीब 28 लाख लोगों ने वोटिंग में हिस्सा लिया और 68.73 फीसदी लोगों ने ऐसा करने का फैसला सुनाया. हालांकि "नहीं" कहने वालों की तादाद भी 31.2 फीसदी रही. सरकार ने टेलीविजन, रेडियो और समाचारपत्रों में "हां" कहने के लिए खूब इश्तेहार चलाए.

बरसों तक गुलामी में रहने के बाद जंजीर टूट गई. नेल्सन मंडेला के 27 साल तक जेल में रहने की तपस्या पूरी हुई. नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले राष्ट्रपति डी क्लार्क ने अगले दिन एलान किया, "हमने रंगभेद वाली किताब बंद कर दी है." मंडेला ने मुस्कुरा कर फैसले का स्वागत किया और केपटाइम्स अखबार ने पूरे पन्ने पर आलीशान अक्षरों में छापा, "यस, इट्स यस!".