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इतिहास में आजः 28 अगस्त

आभा मोंढे२८ अगस्त २०१३

बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ जिंदगी, हम दूर से पहचान लेते हैं...

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तस्वीर: Fotlia/rsester

मेरी नजरें भी ऐसे काफिरों की जान ओ ईमां हैं
निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं...

28 अगस्त 1896 को रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी का जन्म गोरखपुर में हुआ. वह भारत के एक जाने माने शायर, लेखक और आलोचक रहे हैं. महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए उन्होंने प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया. उर्दू में शायरी करने वाले फिराक गोरखपुरी ने इलाहबाद यूनिवर्सिटी में इंग्लिश लेक्चरर के तौर पर काम शुरू किया. 1960 में उन्हें साहित्य अकादमी, 1968 में पद्म भूषण और 1969 में किताब गुल ए नगमा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया.

गोरखपुरी का जमाना वह था, वह उर्दू शायरी की दुनिया में मुहम्मद इकबाल और जोश मलीहाबादी जैसे शायरों का नाम चलता था. फिराक गोरखपुरी ने उर्दू में गजल, नज्म और रुबाइयां लिखी हैं, वहीं हिन्दी और इंग्लिश में भी उन्होंने लिखा है. साहित्य और संस्कृति से जुड़े विषयों पर उन्होंने इंग्लिश में चार किताबें लिखी हैं.

कभी पाबंदियों से छूट के भी दम घुटने लगता है

दरो-दीवार हो जिनमें वही जिंदा नहीं होता

यकीं लाएं तो क्या लाएं, जो शक लाएं तो क्या लाएं

कि बातों से तेरी सच झूठ का इमकां नहीं होता....