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इतिहास में आजः 6 जून

५ जून २०१४

यात्रियों से खचाखच भरी वह ट्रेन आज के ही दिन सहरसा स्टेशन जा रही थी. लेकिन बागमती नदी से गुजरते हुए वह पानी में समा गई. हजार लोग मारे गए. इसकी बरसी तो मनती है पर हादसे रोकने के खास उपाय नहीं निकले.

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तस्वीर: Reuters

साल 1981 में वह ट्रेन आज ही के दिन बिहार के मानसी स्टेशन से सहरसा जा रही थी. आंकड़ों के मुताबिक इस पर 800 लोग सवार थे, जबकि गैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक यात्रियों की संख्या इससे कई गुना ज्यादा थी. ट्रेन को रास्ते में बागमती नदी पर बने पुल से गुजरना था. लेकिन इसी दौरान वह फिसल कर नदी में गिर पड़ी और इसके नौ में से सात डिब्बे डूब गए. उस वक्त मॉनसून का मौसम था और नदी का जलस्तर काफी ऊंचा था. पटरियां भी गीली थीं और उनमें फिसलन का खतरा था.

हादसे की सही वजह का पता नहीं लग पाया लेकिन कई जगहों पर रिपोर्टें छपीं कि एक गाय को बचाने के लिए ड्राइवर ने जबरदस्त ब्रेक लगाया और उसका नियंत्रण खो गया. प्रतिष्ठित हिस्ट्री चैनल की वेबसाइट ने इस हादसे को अपने रिकॉर्ड में रखा है. उसका कहना है, "जब ट्रेन बागमती नदी पर बने पुल के पास पहुंची, एक गाय पटरियों को पार कर रही थी. गाय को हर हाल में बचाने के लिए ड्राइवर ने पूरी ताकत से ब्रेक लगा दिया. ट्रेन के डिब्बे गीली पटरियों पर फिसल गए और कम से कम सात डिब्बे सीधे नदी में जा गिरे. जलस्तर काफी ऊंचा और डिब्बे सीधे मटमैले पानी में डूब गए."

उस वक्त सूचनाओं का प्रवाह अपेक्षाकृत धीमा होता था और विदेशी मीडिया को ज्यादा विश्वसनीय माना जाता था. अगले दिन न्यूयॉर्क टाइम्स ने खबर लगाई, जिसमें भारत की दो प्रमुख समाचार एजेंसियों के हवाले से रिपोर्ट छापी गई. इसमें कहा गया, "शुरुआती रिपोर्टों में कहा गया कि ट्रेन में 500 लोग सवार थे लेकिन दो भारतीय अधिकारियों का कहना है कि मरने वालों की संख्या 1000 से बहुत ज्यादा 3000 तक पहुंच सकती है." हादसे के बाद गोताखोरों ने कई दिनों तक पानी में तलाशी की लेकिन बताया जाता है कि कई लोगों के शव पानी के साथ बह गए.

भारत में आम तौर पर ट्रेनें अपनी क्षमता से ज्यादा यात्रियों को ढोती हैं. दुनिया का सबसे बड़ा रेल तंत्र 160 साल से ज्यादा पुराना है. लेकिन उसके डिब्बे और तकनीक भी बहुत पुराने हैं. पश्चिमी देशों में अगर ट्रेन 400 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ सकती है, तो उसकी सुरक्षा के लिए भी उतनी ही ज्यादा व्यवस्था होती है. ट्रेनों के दरवाजे बंद करना जरूरी हैं और जब तक दरवाजे बंद नहीं होते, ट्रेन चल ही नहीं सकती. ट्रेनों में क्षमता के अनुसार मुसाफिरों को बिठाया जाता है और छतों पर बैठना तो असंभव है.