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इतिहास में आज: 13 अप्रैल

१२ अप्रैल २०१४

आज जिस भारत में लोग अमन चैन और आजादी के साथ सांस ले रहे हैं, अंग्रेजी हुकूमत के वक्त यह मुमकिन नहीं था. आज ही के दिन अंग्रेजों द्वारा जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम दिया गया था.

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तस्वीर: Narinder Nanu/AFP/Getty Images

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में 13 अप्रैल 1919 की तारीख दुनिया भर के सबसे नृशंस हत्याकांडों में शामिल जलियांवाला बाग हत्याकांड की गवाह है. इसी दिन एक गोरे अफसर ने निहत्थे भारतीयों पर गोली चलाने के आदेश दिए थे. जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास में सबसे भयानक दिनों में से एक है. 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास जलियांवाला बाग में बैसाखी के दिन रोलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी. इस सभा को भंग करने के लिए अंग्रेज अफसर जनरल रेजीनल्ड डायर ने बिना किसी चेतावनी के अंधाधुंध गोलियां चलवा दीं. बाग में उस वक्त बच्चे, बूढ़े, महिलाएं और पुरुष मौजूद थे. बाग से निकलने का सिर्फ एक रास्ता था और वह भी काफी संकरा, लेकिन उस तरफ अंग्रेज सिपाही मौजूद थे. गोलियों से बचने के लिए लोगों में भगदड़ मच गई और कइयों ने जान बचाने के लिए बाग में स्थित एक कुएं में छलांग लगा दी. कुएं में कुदने वालों की मौत दम घुटने के कारण हो गई. अंग्रेज सैनिकों की फायरिंग और कुएं में कूदने के कारण एक हजार लोग मारे गए और दो हजार लोग जख्मी हुए थे. उस हत्याकांड की याद में वहां एक शहीद स्मारक और अमर ज्योति भी है. बाग की दीवारों पर आज भी गोलियों के निशान हैं. जो उस वक्त हुए उस कांड की गवाही देते हैं. साल 2013 में जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन वहां पहुंचे तो उन्होंने उस क्रूरता को शर्मनाक बताया लेकिन इसके लिए सीधे तौर पर माफी मांगने से बचते रहे.

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