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इतिहास में आज: 22 नवंबर

समरा फातिमा२० नवम्बर २०१५

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के जीवन में आज का दिन बेहद अहम है. इसी दिन उनके राजनीतिक करियर ने नया मोड़ लिया था.

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तस्वीर: Reuters

जर्मनी की सीडीयू पार्टी की अंगेला मैर्केल 2005 में पहली बार जर्मनी की चांसलर चुनी गईं और 22 नवंबर को उन्होंने इस पद की जिम्मेदारी अपने हाथों में ली. जर्मनी की चांसलर बनने वाली वह पहली महिला थीं.

उस समय ऐसे लोगों की कमी नहीं थीं जिन्हें शक था कि उनके पास इस पद के लिए जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है. लेकिन आलोचकों में से कम ही लोगों ने सोचा होगा कि यही महिला तीसरी बार भी चांसलर बनेंगी. आज तक ऐसा केवल कॉनराड आडेनावर और हेल्मुट कोल ने किया है जो 1949 से लेकर 1963 और 1982 से लेकर 1998 तक चांसलर रहे.

1954 में पश्चिमी जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में पैदा हुईं मैर्केल ने भौतिक विज्ञान की पढ़ाई की. उन्होंने राजनीति में आने से पहले वह फिजिसिस्ट केमिस्ट की नौकरी करती थीं. जर्मनी के एकीकरण के बाद 1990 में उन्होंने बुंडेस्टाग चुनाव में हिस्सा लिया और जीत हासिल की. 1991 में वह महिला और युवा मामलों मंत्री बनीं. फिर 1994 में उन्होंने पर्यावरण, प्राकृतिक संरक्षण और नाभिकीय सुरक्षा मंत्री की जिम्मेदारियां संभालीं.

सीडीयू में चंदा कांड के कुछ ही समय बाद मैर्केल ने एक अखबार लेख के जरिए अपने राजनीतिक गुरु हेल्मुट कोल के प्रति वफादारी छोड़ दी. 2000 में वह सीडीयू की पहली महिला प्रमुख चुनी गईं. सरकार का अनुभव उन्होंने कोल मंत्रिमंडल के सदस्य के रूप में ही हासिल कर लिया था.

मैर्केल की कूटनीति ने उन्हें यूरोप और जर्मनी में एक अहम राजनीतिज्ञ बनाया है. उन्होंने जनता से वादा किया था कि जर्मनी आर्थिक संकट से और ताकतवर बनकर निकलेगा. ऐसा लग रहा है कि अर्थव्यवस्था सुधर रही है और बेरोजगारों की संख्या कम हो रही है. विदेशों में उन्होंने स्पष्ट तौर पर जर्मनी को आगे बढ़ाया. जी8 और यूरोपीय संघ के सम्मेलनों में उन्होंने आश्वासन दिया कि जर्मनी के पैसों की वह भली भांति देखभाल कर सकती हैं. फोर्ब्स पत्रिका उन्हें दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिला मानती है. यूरो जोन में यूरो को बचाए रखने में उनकी बड़ी भूमिका रही. वित्तीय संकट के दौरान उन्होंने जर्मनी को स्थिर बनाने और अर्थव्यवस्था को एक दिशा देने में बड़ी भूमिका निभाई.

परमाणु ऊर्जा को अलविदा कहना, सेना में अनिवार्य सेवा खत्म करना और जर्मन निर्यात को पटरी पर लाना, मैर्केल के आने के बाद ये नई पहलें हुई हैं. 2011 में उन्होंने जर्मनी के सारे परमाणु बिजली घरों को 2022 तक बंद करने का फैसला लिया था.

शरमार्थी संकट उनके राजनीतिक जीवन की सबसे कठिन चुनौती है. शरणार्थियों के लिए सीमाएं खोलकर उन्होंने मानवीयता का परिचय दिया है लेकिन उन्हें इसके लिए अपने दक्षिणपंथी समर्थकों और राजनीतिज्ञों का कोप सहना पड़ रहा है. पिछले महीनों में शरणार्थी संकट के कारण उनकी लोकप्रियता भी गिरी है.

बाहर की दुनिया में भले ही उथल पुथल हो, लेकिन मैर्केल बतौर शख्सियत शांत ही दिखती हैं. वह व्यावहारिक शासन के लिए जानी जाती हैं. भारत ने अंगेला मैर्केल को 2013 के लिए ''इंदिरा गांधी शांति, निरस्त्रीकरण एवं विकास'' पुरस्कार से नवाजा है.

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