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समाज

इतिहास में आज: 30 जनवरी

ओंकार सिंह जनौटी२९ जनवरी २०१५

संध्या का समय था, दिन भर के काम निपटा कर बापू प्रार्थना के लिए बढ़ रहे थे. "ईश्वर, अल्लाह तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान" जैसे भजन गूंजने ही वाले थे कि नाथूराम गोडसे पहुंच गया, थोड़ी ही देर बाद अहिंसा का दीपक बुझ गया.

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तस्वीर: picture-alliance/ZB

महात्मा गांधी ने वो दौर भी देखा जब यूरोप में हिटलर और मुसोलिनी जैसे बर्बर तानाशाह नस्लवाद के नाम पर यहूदियों का कत्लेआम कर रहे थे. 1945 में दूसरा महायुद्ध खत्म होते होते हिटलर ने 60 लाख यहूदियों को मरवा दिया. लाखों को गोली मारी गई और लाखों को जहरीले गैस चैम्बर में डालकर मार दिया गया. हिटलर ने यहूदियों के प्रति घृणा फैलायी और जनमानस को भ्रमित कर अपने साथ कर लिया.

जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, पोलैंड और सोवियत संघ में जगह जगह यहूदियों की संपत्ति लूटी गई. सैकड़ों महिलाओं को नग्न कर उन्हीं के बच्चों के सामने गोली मारी गई. मासूम बच्चों पर भी नाजियों को रहम नहीं आया.

महात्मा गांधी से यह छुपा नहीं था. सादा जीवन जीने वाले बापू अध्ययन और पत्राचार में काफी वक्त बिताया करते थे. वो जानते थे कि जातीय और नस्ली हिंसा के कैसे परिणाम हो सकते हैं. 1947 आते आते ब्रिटिश इंडिया में भी कई जगह बड़े सांप्रदायिक दंगे होने लगे. सदियों से साथ रह रहे हिन्दू, मुसलमान एक दूसरे का खून बहाने लगे. अहिंसा का पुजारी इससे आहत हुआ.

लेकिन उनकी वेदना को न तो मुस्लिम लीग ने समझा और न ही हिन्दू महासभा ने. 14 अगस्त 1947 को भारत विभाजित हो गया. 15 अगस्त आते आते एक भूखंड दो देशों में बंट गया, भारत और पाकिस्तान. गांधी चाहते थे कि विभाजन का शिकार हुए दोनों तरफ के परिवारों को उनकी संपत्ति का मूल्य मिले. लेकिन हिन्दू महासभा के कट्टरपंथियों को इसमें तुष्टिकरण नजर आया.

विभाजन के बाद संपत्ति के बंटवारे और भारत में रह रहे मुसलमानों की रक्षा के लिए गांधी आगे आए. उन्हें उम्मीद थी कि जनता अपने बापू की बात सुनेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 30 जनवरी 1948 को शाम के करीब 5 बजकर 17 मिनट पर नाथूराम गोडसे घातक इरादों के साथ बिड़ला हाउस पहुंचा. गोडसे ने बापू के सामने हाथ जोड़े. इसके बाद गो़डसे ने बापू पर एक के बाद एक तीन गोलियां चलाईं. दक्षिण अफ्रीका में नस्लभेद के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाला, भारत में अहिंसा के सहारे ब्रिटिश हूकूमत को धराशायी करने वाला 78 साल का संत लहूलुहान होकर जमीन पर गिर पड़ा. मुंह से आखिरी शब्द निकले, "हे राम."

इसके साथ ही बुद्ध, महावीर और नानक की धरती पर पैदा हुआ अहिंसा और प्रेम का एक और पुजारी विलीन हो गया.