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इबोला के खिलाफ नया मॉडल

२८ नवम्बर २०१४

हवाई जहाजों ने पूरी दुनिया को बड़ी तेजी से जोड़ दिया है. लेकिन बेहतर हुई फ्लाइट कनेक्टिविटी के साथ बीमारियां भी ग्लोबल हो रही हैं. अब बीमारियां कुछ ही घंटों में हजारों किलोमीटर पहुंच जाती हैं.

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तस्वीर: AFP/Getty Images/T. Schwarz

बीमारियां कैसे फैलती हैं, बर्लिन की हुमबोल्ट यूनिवर्सिटी के बायोलॉजिस्ट डिर्क ब्रोकमन इसका जवाब नक्शे की मदद से खोज रहे हैं. ब्रोकमन के मुताबिक पहले बीमारियां आस पास के इलाकों में भी फैलती थी लेकिन अब हालात पूरी तरह अलग हैं, "आज लोग हवाई जहाजों के बड़े नेटवर्क की मदद से लंबी यात्रा करते हैं. जिस तरह बीमारियां आजकल फैल रही हैं, वैसा पहले नहीं हुआ."

मतलब साफ है कि लोगों के साथ रोगाणु भी सफर कर रहे हैं. हर साल दुनिया भर में साढ़े तीन अरब लोग हवाई अड्डों के जरिए यात्रा करते हैं. कोई भी जगह, भौगोलिक रूप से भले ही हजारों किलोमीटर दूर क्यों न हो, एयरलाइंस के कनेक्शन उसे बहुत तेजी और कारगर ढंग से करीब ला चुके हैं.

फैलाव का पूर्वानुमान

ब्रोकमन कहते हैं, "इसी के आधार पर हमने एक ऐसा मॉडल बनाया है जो बता सकता है कि कैसे एयर ट्रैफिक के चलते संक्रमण वाली बीमारियां दुनिया में फैल रही हैं. इससे पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है. जैसे, अगर आपको पता है कि बीमारी कहां पैदा हुई तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि वह किसी नए इलाके में कब पहुंचेगी."

2009 में स्वाइन फ्लू की शुरुआत मेक्सिको में हुई. पूरी दुनिया में फ्लाइट कनेक्शन होने की वजह से साल भर के भीतर स्वाइन फ्लू करीब करीब पूरी दुनिया में फैल गया.

ब्रोकमन ने अब इबोला के प्रसार का अनुमान लगाने के लिए एक मॉडल तैयार किया है. यह बताता है कि पश्चिम अफ्रीका से इबोला के बाहर फैलने की संभावना कितनी है. मॉडल के काम करने के तरीके को समझाते हुए जर्मन वैज्ञानिक कहते हैं, "माना कि इबोला से संक्रमित 100 लोग विमान में सवार होते हैं, तो उनमें से एक जर्मनी आता है. यानी जोखिम को एक फीसदी है. फ्रांस में खतरे की संभावना यहां से दस गुना ज्यादा है." इसकी वजह यह है कि गिनी से उड़ान भरने वाले ज्यादातर विमान पेरिस आते हैं, इसीलिए फ्रांस में जर्मनी से ज्यादा रिस्क है.

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कहां कहां से फैलता है इबोला का वायरस

लाजिमी है चिंता

फिलहाल दूसरे देश भी रिसर्चरों मदद ले रहे हैं, वे जानना चाहते हैं कि क्या उन्हें भी इबोला के लिए तैयार रहना चाहिए. ब्रोकमन कहते हैं, "मेरे पास कई लोगों के सवाल आ रहे हैं कि दक्षिण अफ्रीका में इबोला फैलने का खतरा कितना है, क्योंकि इबोला से वहां पर्यटन उद्योग ढह सकता है. लेकिन फिर पता चला कि दक्षिण अफ्रीका में फ्रांस की तुलना में इबोला का खतरा कम है. पहले तो हम बस अपनी सोच और अनुभव के आधार पर अनुमान लगा सकते थे, लेकिन अब हमारे पास इसके लिए आंकड़े हैं."

ब्रोकमन अपने मॉडल से यह भी पता लगा सकते हैं कि अगर प्रभावित इलाके से फ्लाइट संपर्क काट दिया जाए तो किस ढंग से बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है.

तंबाकू के पौधे से उम्मीद

एक तरफ बचाव है तो दूसरी तरफ इबोला की काट ढूंढने की कोशिशें जारी हैं. अफ्रीका से हर रोज इबोला के नए मामले सामने आ रहे हैं. दुनिया भर के लोग सोच रहे हैं कि आखिर इस मर्ज़ की दवा क्यों नहीं बनाई गई. वैज्ञानिक और रिसर्चर जर्मनी के साथ मिल कर एक नई तकनीक पर काम कर रहे हैं.

एक ग्रीनहाउस में तंबाकू के हज़ारों पौधे उगाए रहे हैं. जीवविज्ञानी यूरी क्लेबा और उनके साथी तेजी से इन पौधों को उगाना चाहते हैं. उनका मानना है कि ये पौधे इबोला वायरस से लड़ने का राज़ खोल सकते हैं. यह एक जटिल तरीका है, जिसमें इन्हें एक विदेशी डीएनए से संक्रमित कराया जाता है. इससे वे दोबारा इस तरह प्रोग्राम हो जाते हैं कि वे सिर्फ एक प्रोटीन पैदा करने के अलावा और कुछ नहीं कर पाते. हम उसी प्रोटीन से दवा बनाना चाहते हैं.

नई पीढ़ी की दवाएं

मूल रूप से यूक्रेन के वैज्ञानिक क्लेबा पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों के साथ मिल कर काम करते हैं. वे अफ्रीका के खबरों पर बारीकी से नजर रखते हैं. उनके प्रयोग पर अमेरिका की दो दवा कंपनियों ने अभी से संपर्क साध लिया है. वे इबोला की दवा तैयार कर रहे हैं. लेकिन इसके लिए काफी पैसों की जरूरत होगी.

इस पौधे से तैयार प्रोटीन को पहले रिसर्च के लिए तैयार किया जाएगा. इसकी दवा को अब तक सिर्फ कुछ बीमार लोगों पर ही टेस्ट किया गया है. यूरी क्लेबा की टीम में तीस वैज्ञानिक हैं, कई सीधे पढ़ाई पूरी करके उनके साथ जुड़ गए हैं. 2004 से वे एक जटिल प्रक्रिया पर काम कर रहे हैं, जो सिर्फ एक ही बीमारी से नहीं लड़ेगी. यह दवा उद्योग में कई चीजों और दूसरे उत्पादों के लिए उपयोग हो सकती है. इबोला उनमें से सिर्फ एक है. इसलिए यह टूल तैयार करना बहुत जरूरी है.

ओएसजे/एमजी