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अगवा भारतीयों को 'आजादी का वादा'

१९ जून २०१४

उत्तरी इराक में हिंसक वारदातों के बीच वहां फंसे चालीस भारतीयों ने कहा है कि अगवा करने वाले लोग उन्हें रिहा करने को तैयार हैं, जबकि नरेंद्र मोदी की सरकार अपने पहले विदेश नीति संकट का सामना कर रही है.

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तस्वीर: Safin Hamed/AFP/Getty Images

इराक में अगवा हुए भारतीय कर्मचारियों के परिजनों ने कहा है कि उन्हें अपहृत लोगों का फोन आया है. फोन पर एक अपहृत भारतीय ने बताया कि उन्हें अगवा करने वाले सबको बिना कोई नुकसान पहुंचाए आजाद करने के लिए तैयार हैं. ज्यादातर लोग पंजाब जैसे उत्तरी भारत के राज्यों से हैं और इराक में एक तुर्की कंपनी तारिक नूर अल हुदा के लिए काम कर रहे हैं. दैनिक 'दि हिन्दु' से बातचीत में एक अपहृत कर्मचारी के भाई चरनजीत सिंह ने बताया कि बुधवार को इराक से उनके भाई ने कुछ मिनटों के लिए फोन किया था.

सिंह के भाई ने बताया कि अपहृत लोग सुरक्षित हैं और उनके अपहरणकर्ताओं ने कहा है कि अगर सरकार की ओर से कोई संपर्क करता है तो वे सबको रिहा कर देंगे. सिंह ने बताया, "उसने कहा कि वह और उसके साथ काम करने वाले सभी भारतीय सुरक्षित हैं और उन्हें बंधक बना कर नहीं रखा गया है." फोन पर आगे बताया गया, "वे (उग्रवादी) कहते हैं कि भारतीय सेना या सरकार की तरफ से कोई जिम्मेदार व्यक्ति अगर उन्हें लेने आता है तो वे सबको छोड़ देंगे."

वापस लाना है चुनौती

Irak Freiwillige Kämpfer
इराक से बाहर निकलने के लिए टिकट खरीदते लोगतस्वीर: Safin Hamed/AFP/Getty Images

पंजाब के अमृतसर शहर के इन भारतीयों के परिजनों ने बताया कि उन्हें मोसुल शहर में रह रहे कुछ भारतीय लोगों ने रविवार को भी फोन किया था. इस बातचीत से फिलहाल सभी लोगों के सुरक्षित होने का पता चला है. वे सरकार से अगवा लोगों को सही सलामत वापस लाने की मांग कर रहे हैं. पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा है, "हम उन्हें घर वापस लाने के लिए सारा खर्च उठाने को तैयार है."

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने बुधवार को बताया कि अब तक अपहरणकर्ताओं ने किसी से कोई संपर्क नहीं किया है और ना ही किसी तरह की मांग की गई है. यह भी साफ नहीं है कि अपहरण करने वाले कौन हैं और इस घटना को कब अंजाम दिया गया. भारतीय विदेश मंत्रालय ने बताया है कि एक वरिष्ठ राजनयिक को बगदाद भेजा गया है जो शुक्रवार तक उन्हें लेकर वापस लौटने की कोशिश करेंगे.

नर्सें भी असुरक्षित

इराक में काम करने वाले कुल दस हजार भारतीय नागरिकों में से करीब 100 ही हिंसाग्रस्त असुरक्षित इलाकों में हैं. सैयद अकबरुद्दीन ने बताया कि इन 100 लोगों में से ही 46 भारतीय नर्सें इराक के तिकरिट शहर के एक अस्पताल में फंसी हुई हैं. उन्होंने बताया कि एक मानवतावादी संगठन का इन नर्सों से संपर्क बना हुआ है और वे सभी सुरक्षित हैं. अकबरुद्दीन ने कहा, "जो भी नर्स भारत वापस आना चाहती है हम उसकी मदद के लिए तैयार हैं. ज्यादातर वहीं (इराक में) रूकना चाहती हैं." अस्पताल में फंसी सभी 46 नर्सें दक्षिणी केरल की रहने वाली हैं. इनकी उम्र 24 से 40 साल के बीच है. अस्पताल में काम करने वाली नर्सों के दो महीने से चार महीने तक का वेतन बकाया है. बकाया वेतन की समस्या के कारण ये नर्सें टिकरित अस्पताल में काम करने से परहेज करने लगी हैं.

मसला भारतीयों का नहीं

पिछले हफ्ते के दौरान इस्लामी चरमपंथी लड़ाके मोसुल शहर में फैल गए और बहुत सारे इलाकों में कब्जा कर लिया. रास्ते में हमला करते हुए वे राजधानी बगदाद की ओर बढ़ रहे हैं. इराक के राष्ट्रपति ने बताया है कि इराकी सेना ने आईएसआईएस के लड़ाकों के खिलाफ जवाबी कार्यवाही शुरू कर दी है. कट्टरपंथी इस्लामी संगठन आईएसआईएस इराक और सीरिया के कई इलाकों में बर्बर तरीके से अपना हुक्म चलाता है. आईएसआईएस के नेता अबु बकर अल बगदादी के समर्थक सुन्नी हैं और वह बगदाद में शिया राष्ट्रपति नूरी अल मालिकी को सत्ता से हटा कर केवल शरीया के आधार पर देश में शासन चलाना चाहते हैं. दूसरी ओर ईरान अमेरिका के साथ मिलकर शियाओं की मदद करना चाहता है. अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने अभी इस पर इराक में सैनिक कार्रवाई पर अपना रुख साफ नहीं किया है.

आरआर/एमजे(एएफपी, एपी)