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"इस्राएल एक बहुत विभाजित समाज है"

३ मार्च २०१५

हाइनरिष ब्योल फाउंडेशन की केर्सटिन मूलर बताती हैं कि इस्राएल में होने वाले संसदीय चुनाव में एक तरह से देश की खुद की छवि पर जनमत संग्रह की प्रक्रिया होगी. घरेलू और विदेश नीति के मामले में इसके दूरगामी असर दिखेंगे.

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Benjamin Netanjahu bei Barack Obama Washington 01.10.2014
तस्वीर: Reuters/Kevin Lamarque

डीडब्ल्यू: इस्राएल के राजनीतिक आलोचक प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू पर अमेरिका यात्रा का इस्राएल में 17 मार्च को होने वाले संसदीय चुनावों के लिए समर्थन जुटाने के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगा रहे हैं. इसे आप कैसे देखती हैं?

केर्सटिन मूलर: इस यात्रा के कई मतलब निकाले जा रहे हैं. सेंटर-लेफ्ट इसे चुनावी अभियान का हिस्सा मान रहा है और मैं भी इसे ऐसे ही देखती हूं. दक्षिणपंथी रुढ़िवादी प्रेस चुवावों से बिल्कुल अलग इसे एक ऐतिहासिक घटना के रूप में देख रही है. जाहिर है कि इसकी तुलना 1938 में म्युनिख से भी हो रही है. दूसरे शब्दों में कहें तो, अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ईरान के साथ उसके परमाणु कार्यक्रमों के संबंध में कोई समझौता करता है तो यह एक बड़ी भूल होगी. और चूंकि इस विवाद में सबसे ज्यादा नुकसान इस्राएल को उठाना पड़ सकता है, वह किसी भी तरह किसी समझौते को रोकने की कोशिश करेंगे. नेतन्याहू अपनी इस यात्रा में इस्राएल की सुरक्षा के केन्द्र में रखने की कोशिश कर रहे हैं.

नेतन्याहू पहले भी कई बार राष्ट्रीय सुरक्षा के परिपेक्ष्य में इस्राएल की फलीस्तीन संबंधी नीतियों पर बोलते रहे हैं. इन चुनावों में सुरक्षा का मुद्दा कितना अहम दिख रहा है?

जनचर्चाओं में तो इसकी उतनी अहम भूमिका नहीं दिख रही है. लेकिन हाल के सालों के सभी चुनावों में हमने देखा कि खासकर मध्यवर्ग के लिए सुरक्षा एक निर्णायक मुद्दा रहा है. और चूंकि इसे दक्षिणपंथी लिकुड ब्लॉक साथ ज्यादा करीबी से जोड़ कर देखा जाता है, इसी कारण लिकुड ने नेतन्याहू के नेतृत्व में हाल के सालों में सभी चुनाव जीते हैं. इसीलिए मुझे लगता है कि नेतन्याहू ने इस समय अमेरिका के दौरे पर आने का निर्णय किया. शायद वह सेंटर-राइट के वोट जीतने की उम्मीद कर रहे हैं जिनकी उन्हें काफी जरूरत होगी.

GMF Speaker Kerstin Müller
हाइनरिष ब्योल फाउंडेशन के तेल अवीव कार्यालय की निदेशक केर्सटिन मूलरतस्वीर: privat

इस्राएल में इस समय राष्ट्रीय पहचान को लेकर काफी बहस चल रही है. इसमें एक ओर है- राष्ट्रीय यहूदियों की सेल्फ-इमेज और दूसरी ओर है- एक जियोनिस्ट डेमोक्रैटिक इमेज. इस बहस की क्या भूमिका है?

इस बहस के संदर्भ में इस बार के चुनाव काफी अहम होंगे. पिछली संसद के दौरान, देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि इस्राएली दक्षिणपंथियों ने पूरे राष्ट्र के लिए एक यहूदी स्वरूप देने की कोशिशें कीं. लिकुड और नाफ्ताली बेनेट की (नेशनलिस्ट जूइश होम) पार्टी में कई लोग ऐसे हैं जो फलिस्तीन को उनके पृथक राष्ट्र का दर्जा देने और द्विराष्ट्रीय समाधान की ओर बढ़ना नहीं चाहते.

इस सारी बहस का इस्राएली समाज पर कैसा असर पड़ रहा है?

इस्राएल एक बहुत ही विभाजित समाज है. यहां अति-रुढ़िवादी यहूदी अपने अलग थलग समाज में रहते हैं तो दूसरे धार्मिक राष्ट्रवादी लोगों ने अपनी एक अलग ही दुनिया बसा रखी है. इसके अलावा एक सेकुलर दुनिया भी है, जो आपको ज्यादातर तेल अवीव या कुछ हद तक हाइफा में दिख सकती है. इनका आपसे ज्यादा कुछ लेना देना नहीं है इसीलिए यह समाज आज टूटता हुआ दिखाई दे रहा है. इस्राएल को खुद इस पर गहरी आंतरिक बहस करने से फायदा होगा कि असल में एक यहूदी नेशनल स्टेट के मायने क्या हैं.

केर्सटिन मूलर हाइनरिष ब्योल फाउंडेशन के तेल अवीव कार्यालय की निदेशक हैं. 1994 से 2002 तक वह जर्मनी की ग्रीन पार्टी के संसदीय दल की मुखिया रहीं. 2002 से 2005 तक उन्होंने जर्मनी के उप विदेश मंत्री का पद संभाला.

इंटरव्यू: केर्सटेन क्निप