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इस्राएल के बंजारे

२० नवम्बर २०१२

इस्राएल के रेगिस्तान में कुछ ऐसे गांव हैं जिनका अस्तित्व कागजों पर है ही नहीं. इस्राएल उन्हें मान्यता नहीं देता. वह इन गांवों को नेस्तनाबूत कर देना चाहता है और लोगों को कहीं और बसाना चाहता है.

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तस्वीर: DW/U.Schleicher

इन गांवों में बदूइन जाति के करीब एक लाख नब्बे हजार लोग रहते हैं. इस्राएल इन्हें कहीं और बसाना चाहता है लेकिन कुछ लोग अपने पारंपरिक गांव छोड़ने को तैयार नहीं.

दक्षिणी इस्राएल के नेगेव रेगिस्तान के लकिया शहर में जैसे ही पर्यटकों से भरी बस पहुंचती है, इसे छोड़ने के लिए पुलिस की पांच कारें हमेशा तैनात होती हैं. बस में आए अधिकतर पर्यटक वृद्ध अमेरिकी नागरिक हैं. इनमें से कई येरुशेलम में रहते हैं. पुलिस को देखकर उन्हें चिंता होने लगती है कि यहां पुलिस क्यों हैं. पुलिस उन्हें यहां रोकने से मना करती है. "लकिया में जाने की मनाही है. लेकिन आप वहां जा कर फोटो ले सकते हैं."

इंडियाना जोन्स की हैट और सफारी पैंट्स पहने ट्रैवल गाइड ब्रिग्स बताते हैं कि नेगेव में इस्राएली जमीन अवैध रूप से अधिकार जमाने वाले बदूइन लोगों का खतरा हर दिन बढ़ता जा रहा है. कैसे उनका संगठन रेगाविम यहूदी बहुल लोगों को यहां बसाने में संघर्ष कर रहा है. "यह हमारी जमीन है." वह शिकायत करते हैं कि इस्राएल की सरकार ने इस इलाके को हमेशा नजरअंदाज किया है.

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पर्यटकों को स्थिति बताते गाइड एरि ब्रिग्सतस्वीर: DW/U.Schleicher

जिन पर्यटकों ने इस इलाके में आने के लिए काफी पैसे खर्च किए हैं, अपना कैमेरा निकालते हैं और बस्ती के बाहर का फोटो लेते हैं. एक फोटो जिसमें सड़कों पर कचरा, खस्ताहाल घर और उनके बीच में एक स्कूल दिखाई देता है.

ब्रिग्स बताते हैं, " लकिया इस्राएल ने 35 हजार बदुइन लोगों के लिए बनाया था. लेकिन यहां रहते सिर्फ सात हजार लोग हैं." बहुत सारे पैसे खिड़की से बाहर ऐसे ही फेंक दिए गए. "इमारतें गिर रही हैं." ऑस्ट्रेलिया से दस साल पहले इस्राएल आ कर बसे ब्रिग्स इस्राएली और बदूइन लोगों के बारे में काफी बोलते हैं लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी है जो वो नहीं बोल पाते.

संरचना नहीं

नेगेव में रहने वाले बदुइन लोगों की संख्या करीब एक लाख नब्बे हजार है. अधिकारिक रूप से वह इस्राएल के नागरिक हैं. लेकिन करीब 45 गांव ऐसे हैं जिन्हें इस्राएल मान्यता नहीं देता और इन गांवों में करीब 70 हजार बदुइन रहते हैं. इनमें से कई गांव 1948 में इस्राएल की स्थापना से भी पहले के हैं. लेकिन चूंकि इस्राएल ने नेगेव की 95 फीसदी जमीन को एकतरफा तौर पर अपनी संपत्ति घोषित कर दिया तो बदुइन की मिल्कियत की कोई कीमत नहीं.

इन गांवों में पानी और गंदे पानी के निकास की कोई सुविधा नहीं है. इतना ही नहीं, बिजली भी नहीं है, तो स्कूलों और सार्वजनिक यातायात की तो क्या बात की जाए. यहां रहने वाले लोग न तो मतदान कर सकते हैं और न ही घर बनाने के लिए कहीं आवेदन कर सकते हैं क्योंकि यहां कोई प्रशासन नहीं. इस्राएल पश्चिमी तट पर तो घर बनाने में कोई देरी नहीं करता, भले ही किसी भी इलाके में हों. वहां पूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं लेकिन बदूइन लोगों को इसमें से कुछ नहीं मिलता.

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इस्राएल के बदूइनतस्वीर: DW/U.Schleicher

इतना ही नहीं, यहां के रहवासियों को डर है कि उनके घर कभी भी गिरा दिए जा सकते हैं. जैसे कि अल सिरा में खलील अलामोर का परिवार सात पुश्तों से रहता था. इनके नाम पर एक घर और छोटी सी जमीन थी. 47 साल के खलील कहते हैं, ''हमारे पास दस्तावेज हैं. हम इसको साबित कर सकते हैं.'' लेकिन इस्राएली अधिकारियों को इससे कोई मतलब नहीं है. गावों में कई बार मार्शल आते हैं और घर के सामने घर गिराने का नोटिस छोड़ के जाते हैं. "और हम लोग नियमित अदालत जाते हैं." अलमोर कई सामाजिक मुश्किलों के बावजूद यूनिवर्सिटी गए. वह सरकार के व्यवहार को नहीं समझ पाते. "हम कोई देश के दुश्मन नहीं हैं. हम समाज में एक होना चाहते हैं." लेकिन वो यह भी कहते हैं कि इस समेकन में बदुइन परंपराओं और मूल्यों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और इस बारे में फैसला उनके सहयोग के बगैर नहीं होना चाहिए.

गरीबी और हिंसा

अलमोर इस्राएल के 1960 में तय किए लक्ष्य के बारे में बताते हैं कि उस समय इस्राएल ने बदुइन को फिर से बसाने और इनका शहरीकरण करने का सोचा था. 2011 में इस्राएली संसद ने प्रॉवर योजना को मंजूरी दी लेकिन अभी भी उसमें सुधार की जरूरत है. इस प्रस्ताव के मुताबिक 10 बड़ी बस्तियां को मान्यता देने की बात थी लेकिन बाकी घर गिरा दिए जाने और वहां के लोगों को कहीं और बसाने की बात की गई.

सरकार ने बदुइन लोगों के लिए बसाई बस्ती लकिया में सिर्फ गरीबी, हिंसा और अपराधों की भरमार है. बेरोजगारी बहुत ज्यादा और शिक्षा कम. अलमोर कहते हैं, "बदूइन और शहरों का कोई मेल नहीं." अलमोर का कहना है कि हालात बहुत खराब हैं. अब वो टेंट्स में नहीं रहते. अधिकतर लोग अभी भी खेती और पशुपालन से जुड़े हुए हैं. वह सलाह देते हैं, " जो अभी हमारे पास है वहीं पांच फीसदी हिस्सा हमें दे दो. और हम इसका बढ़िया इस्तेमाल करेंगे. ताकि सबका भला हो जाए. "

रिपोर्टः उलरिके श्लाइषर/एएम

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन