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ईयू शिखर वार्ता में कड़वा घूंट

२३ नवम्बर २०१२

यूरोपीय संघ के अध्यक्ष हरमान फान रॉम्पॉय यूरोपीय संघ शिखर वार्ता में कई घंटों तक 27 देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बातें सुनते रहे लेकिन संघ के बजट पर कोई हल नहीं निकल पाया.

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तस्वीर: Reuters

यूरोपीय संघ की शिखर वार्ता का पहले दिन अध्यक्ष के लिए कुछ ऐसा रहा जैसे मरीजों से भरा हुआ क्लीनिक. बस कोई ये बोलने वाला नहीं था कि नेक्स्ट प्लीज. लेकिन यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने इस बैठक को एक तरह से अपने हाथ में ले लिया था. हर प्रतिनिधि के पास रॉम्पॉय और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष होसे मानुएल बारोसो के सामने अपनी बात रखने के लिए 20 मिनट का समय था. लेकिन 2020 तक के बजट पर पहले दौर की बातचीत करीब 12 घंटे चली इसके बाद उन्होंने एक नया प्रस्ताव लिखने की कोशिश शुरू की.

इस बातचीत के दौरान दूसरे सदस्य देशों ने आपस में द्विपक्षीय मुलाकात भी की. जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रोंसुआ ओलांद के बीच भी बातचीत हुई लेकिन इस बारे में अधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है. शिखरवार्ता से पहले मैर्केल ने कहा था, "हर देश को थोड़ा समझौता तो करना होगा और खुद को लचीला रखना होगा. हम सभी एक दूसरे को अच्छे से जानते हैं. मुझे लगता है कि हमें किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए एक और कदम की जरूरत होगी."

मतभेद और विवाद का मुद्दा पहले ही की तरह यही है कि सदस्य देश मिल कर कितना धन जमा करें और फिर इसे जरूरतमंद देशों को कैसे दिया जाए. पोलैंड या आइसलैंड जैसे देश यूरोपीय संघ के बजट प्रस्ताव की मांग कर रहे हैं. प्रस्ताव रखा गया था कि 2014 से 2020 के बीच 1035 अरब यूरो जमा किए जाएंगे. जो देश ब्रसेल्स के खाते में ज्यादा पैसे जमा करेंगे उन्हें कटौती करनी पड़ेगी लेकिन कितनी कटौती करनी चाहिए इस पर नाटो को भुगतान करने वाले देश एकमत नहीं. जहां ब्रिटेन और स्वीडन जैसे देश 200 अरब की कटौती की मांग कर रहे हैं तो जर्मनी सिर्फ 100 अरब की बचत से संतुष्ट रहेगा. कुछ देशों का कहना है कि सिर्फ खेती के लिए ही सब्सिडी या सुविधाएं न हों बल्कि विकास और शिक्षा के लिए भी पैसे दिए जाएं. लेकिन खेती का मुख्य व्यवसाय करने वाले देश जैसे फ्रांस, स्पेन इसका विरोध करते हैं. अलग अलग देशों के विचार अलग अलग हैं और वह एक दूसरे से बिलकुल अलग हैं ऐसा कहना है लक्जेम्बर्ग के प्रधानमंत्री जां क्लॉडे जुंकर का. शिखर वार्ता से पहले भी आशंका जताई जा रही थी कि इस बजट में शायद ब्रिटेन साथ नहीं होगा. प्रधानमंत्री डेविड कैमरन पहले भी कह चुके हैं कि करदाताओं के हक में अच्छा नतीजा निकालने के लिए वह पूरी ताकत लगा देंगे. सिर्फ कैमरन ही ऐसे नही थे जिन्होंने बजट पर वीटो करने की धमकी दी थी बल्कि डेनमार्क ने भी यह कहा था. लातविया के प्रधानमंत्री वाल्दिस डोमोब्रोवस्किस ने क्षेत्रीय मदद में कमी के लिए ना कहा था.

EU Gipfel Fahnen
तस्वीर: DW

ग्रीस और कर्ज संकट के बारे में कोई बात इस शिखरवार्ता में नहीं की जाएगी और इसकी कोई भूमिका भी नहीं है. ग्रीस के प्रधानमंत्री एंटोनिस समारास ने यूरो ग्रुप और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कहा है." हमने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया है अब हमारे यूरोपीय साझीदारों और अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष की बारी है कि वह अपना वादा पूरा करें. आर्थिक संकट से जूझ रहे देशों को दी जाने वाली मदद साझे घरेलू बजट से नहीं दी जाती. बेलआउट, ईफएसएफ और ईएसएम के लिए 14 यूरो देशों को अलग से मदद करनी होती है और गारंटी देनी होती है.

रिपोर्टः बर्न्ड रीगर्ट/एएम

संपादनः एन रंजन