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समाज

ईरानी यहूदियों को अपने मुल्क पर नाज

१९ मई २०१७

मध्य पूर्व में इस्राएल के बाद सबसे ज्यादा यहूदी ईरान में रहते हैं. लेकिन इसके बावजूद ईरान और इस्राएल एक दूसरे को दुश्मन की तरह देखते हैं.

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Juden im Iran Sukkot Shalom Synagoge
तस्वीर: DW/T. Tropper

यहूदियों की बड़ी आबादी के बावजूद ईरान और इस्राएल एक दूसरे को दुश्मन क्यों समझते हैं? तेहरान में यहूदी समिति के डायरेक्टर से डॉयचे वेले ने यही जानने की कोशिश की.

डीडब्ल्यू: इस्लामिक गणतंत्र में एक यहूदी की जिंदगी कैसी है?

सियामक मोरसदेघ: यह ज्यादातर लोगों की सोच से ज्यादा बेहतर है. यहां यहूदियों को अल्पसंख्यक माना जाता है और हम अपने धर्म का स्वतंत्रता से पालन कर सकते हैं. तेहरान में ही हमारे पास 20 से ज्यादा चालू सिनेगॉग हैं और कम से कम पांच कोशर बूचड़खाने.

कुछ यूरोपीय देशों में पशु अधिकारों के चलते इसकी अनुमति नहीं है, लेकिन ईरान में है, ऐसा है क्या?

सामान्य ढंग से कहूं तो ईरान में यहूदियों की स्थिति यूरोप से भी बेहतर है. हमारे देश के इतिहास में ऐसा कोई समय नहीं है जब सभी ईरानियों का एक धर्म, उनकी एक नस्ल या भाषा रही हो, इस लिहाज से हमेशा एक उच्च सीमा की सहनशीलता है. यहूदी और मुसलमान एक दूसरे का सम्मान करते हैं, लेकिन साथ ही हम यह भी जानते हैं कि मतभेद हैं. इसीलिए यहूदी और अन्य धर्म के लोगों के बीच अंतरधार्मिक विवाह पूरी दुनिया में सबसे कम ईरान में होते हैं, यह दर 0.1 फीसदी है.

Juden im Iran Siamak Morasadegh
सियामक मोरसदेघतस्वीर: DW/T. Tropper

क्या इसका मतलब यह है कि ईरान में यहूदी तो रहते हैं लेकिन अन्य धार्मिक समूहों से वे अलग थलग हैं?

बिल्कुल नहीं. मुसलमानों के साथ हमारे आर्थिक रिश्ते हैं, मेरे करीबी दोस्त मुसलमान हैं. मैं जिस अस्पताल में काम करता हूं वह यहूदी अस्पताल है लेकिन हमारे 95 फीसदी से ज्यादा कर्मचारी और मरीज मुसलमान हैं. वहां धर्म के बारे में पूछने पर सख्त मनाही है क्योंकि यह तोराह का सबसे अहम सूत्र है, यह अस्पताल में सबसे ऊपर लिखा गया है, "दूसरों के साथ अपने जैसा व्यवहार करो." यह दिखाता है कि हमारे बीच एक व्यावहारिक रिश्ता है और हम दुनिया को बेहतर जगह बनाने के लिए एक दूसरे के साथ सहयोग करते हैं.

लेकिन कानून के तहत यहूदियों को बराबर नहीं माना जाता है. आप जज नहीं बन सकते या उच्च राजनैतिक पद नहीं संभाल सकते. क्या यह आपको चिंतित करता है?

जाहिर तौर पर धार्मिक अल्पसंख्यक होने से कुछ समस्याएं तो होती ही हैं. आर्थिक संकट के कारण यहां कई ईरानियों को नौकरी खोजने में परेशानी हो रही है और हमारे लिए तो यह और भी मुश्किल है क्योंकि कानून के मुताबिक कुछ सीमाएं हैं. उदाहरण के लिए, हम सेना में अधिकारी के तौर पर काम नहीं कर सकते, हम सिर्फ सैनिक बन सकते हैं. इसे बदलने के लिए हम पुरजोर कोशिश कर रहे हैं. यह एक सतत प्रक्रिया है और इसे रातोंरात नहीं किया जा सकता, लेकिन हम प्रगति कर रहे हैं. बीते सालों में हमें एक बड़ी कामयाबी यह मिली है कि यहूदी बच्चे अगर सबबाथ करना चाहें तो वे शनिवार को स्कूल जाने के बजाए घर पर रह सकते हैं. ज्यादातर ईरानी यहूदी रुढ़िवादी हैं.

1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद कई यहूदियों ने देश को छोड़ दिया. आपने ऐसा क्यों नहीं किया?

तब बहुत से लोगों ने देश छोड़ा, उनमें कई मुसलमान भी थे. यहूदियों के लिए बाहर निकलना आसान था, इसीलिए कइयों ने ऐसा किया. लेकिन मैं एक ईरानी हूं- मैं हिब्रू भाषा में प्रार्थना करता हूं और अंग्रेजी बोल सकता हूं, लेकिन सोचना, ये काम मैं सिर्फ फारसी में कर सकता हूं. मेरी नजर में राष्ट्रीयता और धर्म में बहुत बड़ा अंतर है; ये दोनों एक दूसरे के विरोधी नहीं हैं. विदेश जाना, खास तौर पर इस्राएल, ये मेरे लिए कोई विकल्प नहीं है क्योंकि मुझे लगता है कि यह विचार कि यहूदियों को दुनिया में एक खास जगह पर रहना चाहिए, ये बताता है कि हम दूसरों से अलग हैं. लेकिन मुझे लगता हैं कि हम समान हैं.

ईरान में इस्राएल से किसी तरह का संपर्क कानूनन प्रतिबंधित है. क्या एक यहूदी होने के नाते ये आपके लिए मुश्किल है?

हमारी धार्मिक शिक्षा के मुताबिक, हम जिस देश में रहते हैं हमें उसके कानून का पालन करना चाहिए. एक यहूदी होना एक जायनवादी होने से बहुत अलग है. पूरी दुनिया में ऐसे यहूदी हैं और पहले भी रहे हैं जो इस्राएल की सरकार और सेना के कटु आलोचक हैं. यहूदी होने के नाते हमें तोराह और तालमुद का पालन करना चाहिए. दूसरे देश में घुसना और मासूम लोगों को मारना, यह मूसा की शिक्षा नहीं है. यहूदी होने के नाते हम इस्राएल के व्यवहार को स्वीकार नहीं कर सकते, यह एक राजनीतिक आंदोलन है न कि धार्मिक. निजी रूप से मैं सोचता हूं कि दुनिया में होलोकॉस्ट के सबसे बड़े पीड़ित रह चुके यहूदियों को फलीस्तीन के लोगों के साथ ज्यादा हमदर्दी होनी चाहिए.

जिस होलोकॉस्ट की आप बात कर रहे हैं, वह कुछ साल पहले विवाद का कारण बना. राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने सार्वजनिक रूप से होलोकॉस्ट को खारिज किया, ईरान के यहूदी उसके बारे में क्या सोचते हैं?

हम राष्ट्रपति अहमदीनेजाद से सहमत नहीं थे और हमने उनसे यह कहा भी. उन्होंने सीधे होलोकॉस्ट को खारिज नहीं किया, उन्होंने उस पर सवाल उठाया- लेकिन मैं सवाल उठाने को स्वीकार नहीं करता हूं. जो चीज पूरी तरह साफ है और पूरा विश्व जिसे स्वीकार करता है, उस पर सवाल उठाने का कोई मतलब नहीं है.

लेकिन उस विवाद ने भी हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित नहीं किया. अहमदीनेजाद के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान भी हमारे यहूदी अस्पताल को सरकार से वित्तीय मदद मिलती रही. वह इस्राएल विरोधी थे, न कि यहूदी विरोधी. ईरान की आम नीति वैसे भी राष्ट्रपतियों द्वारा बदली नहीं जाती है. मुख्य नीति निर्माता सुप्रीम लीडर (अयातुल्लाह अली खामेनई) हैं और मुख्य ढांचा संविधान है.

लेकिन इसके बावजूद नए राष्ट्रपति का काफी प्रभाव रहता है और एक नए राष्ट्रपति का चुनाव है. ईरानी यहूदियों के लिए क्या दांव पर लगा है?

ईरान के यहूदियों का कोई विशेष उम्मीदवार नहीं है, लोग अपनी राजनीतिक दिलचस्पी के चलते किसी एक को वोट देंगे. यह चुनाव पूरी तरह अर्थव्यवस्था को लेकर है. जो उम्मीदवार हमारे आर्थिक संकट का सबसे अच्छा समाधान ऑफर करेगा, वह जीतेगा. इसके अलावा यहूदी होने के नाते हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन चुना गया. हम ईरान के नागरिक हैं और जो कोई भी जीतेगा उसे संवैधानिक कानून के दायरे में काम करना होगा.

(दुनिया में किस धर्म के कितने लोग हैं?)

इंटरव्यू: थेरेसा ट्रॉपर (तेहरान)