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डिजिटल वर्ल्ड

"उड़ी हमले ने हम पत्रकारों का पर्दाफाश कर दिया"

२६ सितम्बर २०१६

कुछ भारतीय न्यूज चैनलों का बस चले तो वही भारत की तरफ से पाकिस्तान पर पहली मिसाइल दाग दें. देखिये कैसे भारतीय मीडिया ने उड़ी हमले के बाद अपनी आलोचना को न्योता दिया.

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Indien Lal Chowk Srinagar - Nach Uri Terrorangriff
तस्वीर: UNI

मीडिया का काम खबर देना है. न कि सरकार को फैसला लेने के लिए मजबूर करना. उड़ी हमले के बाद भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. युद्ध क्या ऐसा खेल होता है कि नतीजे की परवाह किये बिना युद्ध का माहौल बनाया जाने लगा. एक मीडिया हाउस ने तो यह तक रिपोर्ट किया कि भारतीय सेना ने एलओसी पारकर कई आंतकवादियों को मार गिराया है. सूत्रों के हवाले की गई रिपोर्ट ने सनसनी और असमंजस फैलाने के अलावा कुछ नहीं किया.

कुछ मीडिया संस्थानों ने ओपिनियन पोल भी चलाया.

वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता के मुताबिक, "दुखद है कि #उड़ीअटैक ने हम पत्रकारों को बर्बर तरीके से एक्सपोज कर दिया है. युद्धोन्माद से लेकर झूठे दावों तक हमने अपनी सेना को भी शर्मिंदा किया. एक परमाणुशक्ति वाले देश को बेहतर मीडिया की जरूरत है."

वहीं सोनम महाजन ने लिखा, "भारतीय मीडिया मोदी सरकार को ऐसा क्यों दिखा रहा है जैसे सिर्फ युद्ध ही एक मात्र विकल्प हो, जबकि हमारे पास कई विकल्प हैं? क्या यह दुश्मन को भड़काने के लिए है?"

 

पाकिस्तानी पत्रकार

पाकिस्तानी पत्रकार मुर्तजा अली शाह ने पाकिस्तानी सेना के जनरल आसिम बाजवा के ट्वीट को रिट्वीट किया. ट्वीट कहता है, "भारतीय मीडिया ने कहा कि #उड़ीअटैक के बाद रूस ने पाक के साथ संयुक्त सैन्याभ्यास रद्द कर दिया. यह दिखाता है कि भारतीय मीडिया अपनी जनता से कैसे झूठ बोलता है."

यह पहला मौका नहीं है जब भारतीय मीडिया ने अपनी आलोचना का मौका दिया है. मुंबई हमले, नेपाल के भूकंप और उड़ी हमले के बाद हुई कवरेज से बता दिया है कि भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कितना कमजोर है.