1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

"उतार पर प्रधानमंत्री मोदी"

महेश झा१० नवम्बर २०१५

बिहार चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी बीजेपी की करारी हार के बाद पार्टी के अंदर नेतृत्व के खिलाफ विरोध के स्वर प्रखर हो रहे हैं, तो यूरोपीय अखबारों में भी मोदी का नया मूल्यांकन शुरू हो गया है.

https://p.dw.com/p/1H3L6
तस्वीर: Reuters/D. Ismail

बिहार चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी बीजेपी की करारी हार के बाद पार्टी के अंदर नेतृत्व के खिलाफ विरोध के स्वर प्रखर हो रहे हैं, तो यूरोपीय अखबारों में भी मोदी का नया मूल्यांकन शुरू हो गया है.

जर्मनी के प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने ने अपने आर्थिक पन्ने पर लिखा है कि हाल के प्रांतीय चुनाव भारत में सुधारों की प्रक्रिया को मुश्किल बना रहे हैं जबकि देश का विभाजन गहराता जा रहा है. अखबार के एशिया संवाददाता क्रिस्टॉफ हाइन ने लिखा है, "पहली नजर में यह बस एक प्रांतीय चुनाव था. दूसरी नजर में यह नतीजा आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के लिए जोखिम है जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया है."

फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने ने लिखा है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने विदेशी निवेशकों को देश भर में वैट लागू करने, भूमि सुधार करने और दशकों पुराने श्रम कानून में ढील देने का वादा किया है. अखबार लिखता है, "अब मोदी के लिए राज्य सभा में कानून में संशोधन पास कराना मुश्किल होगा जहां बीजेपी का बहुमत नहीं है. वहां सीटों का बंटवारा राज्य विधानसभाओं में पार्टियों की ताकत के आधार पर होता है." अखबार का कहना है कि बिहार के चुनाव नतीजे मोदी के लिए व्यक्तिगत तौर पर भी खट्टे हैं क्योंकि इससे पहले किसी प्रधानमंत्री ने प्रांतीय चुनाव में इतना हस्तक्षेप नहीं किया था.

जर्मनी के एक और प्रमुख अखबार ज्युड डॉयचे साइटुंग ने भी लिखा है कि वे बिहार में जीत को प्रतिष्ठा का विषय बनाने के बावजूद हार गए. आर्ने पेरास के इस लेख में कहा गया है कि मतगणना से पहले ही बीजेपी के नेता नर्वस दिख रहे थे और कह रहे थे नतीजों को मोदी की राष्ट्रीय स्तर की नीति पर जनमत संग्रह नहीं समझा जाना चाहिए. अखबार का कहना है कि बिहार में जीत मोदी के लिए एक और कारण से महत्वपूर्ण होती, राज्यसभा में उनकी पार्टी की स्थिति मजबूत होती.

ज्युड डॉयचे साइटुंग ने लिखा है कि निवेशकों के लिए जमीन अधिग्रहण में आसानी और समान करों का वादा अब तक राज्य सभा में बहुमत न होने के कारण कामयाब नहीं हुआ है. मोदी के विरोधी उनपर कारोबार जगत के करीब होने के अलावा धार्मिक बहुलता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खत्म करने का भी आरोप लगाते हैं. मोदी की पार्टी इस तरह के आरोपों से इंकार करती है.

जर्मन टेलिविजन चैनल एआरडी के दक्षिण एशिया संवाददाता गाबोर हालाश ने ट्वीट किया कि भारत में भी क्षेत्रीय चुनाव सरकार का टेस्ट होते हैं.

जर्मनी के वामपंथी दैनिक टात्स ने लिखा है कि प्रधानमंत्री की नेपाल और पाकिस्तान के प्रति टकराव की नीति में न सिर्फ एक संगत नीति का अभाव दिखता है बल्कि वह आश्चर्यजनक रूप से गैरपेशेवर भी लगती है.

प्रधानमंत्री की इस हफ्ते ब्रिटेन यात्रा के लिहाज से ब्रिटिश अखबारों में छपी प्रतिक्रियाएं भी महत्वरपूर्ण हैं. दैनिक इंडेपेंडेंट ने अपने लेख में मोदी को ढलता सितारा बताया है. अखबार लिखता है कि चुनाव नतीजे का अर्थ यह है कि इस हफ्ते ब्रिटेन में उत्साहजनक स्वागत के लिए तैयार हो रहे मोदी घरेलू भूमि पर मिली हार की टीस से उबर रहे होंगे. "बिहार की हार इस साल दिल्ली का चुनाव हारने के बाद बीजेपी के लिए सत्ता में आने के बाद सबसे बड़ी चुनावी हार है."