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उत्तर प्रदेश में छिड़ा वन्दे मातरम पर विवाद

फैसल फरीद
४ अप्रैल २०१७

इस बार यूपी के नगर निगमों के सदन में वन्दे मातरम गाने को लेकर विवाद छिड़ा है. मेरठ, गोरखपुर और वाराणसी के नगर निगमों में राष्ट्रीय गीत को लेकर असहज स्थिति पैदा हुई. कुछ पार्षदों खासकर मुस्लिमों ने इसका विरोध किया.

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Meerut civic body meeting
मेरठ नगर निगम में वन्दे मातरम गाये जाने को लेकर हुए विवाद के बाद विपक्ष के पार्षदों (सपा और बसपा के) ने 1 अप्रैल को एकजुटता दिखाई.तस्वीर: DW/F. Fareed

भारत के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम' पर विवाद की शुरुआत यूपी के मेरठ में 28 मार्च को हुई. नगर निगम की बैठक में मेयर हरिकांत अहलुवालिया ने पार्षदों से वन्दे मातरम गाने के लिए खड़े होने को कहा. तभी हाजी मोहम्मद शाहिद अब्बासी, दीवान शरीफ, अफजल सैफी और नवाब कुरैशी समेत कुछ विपक्षी पार्षदों ने सदन से बहिर्गमन कर दिया. इस बात का विरोध बीजेपी और उसके समर्थक पार्षदों ने किया. सदन में नारे लगाये गए कि हिंदुस्तान में रहना होगा, तो वन्दे मातरम कहना होगा. वन्दे मातरम गाया गया और सदन में पार्षदों ने ऐसे सदस्यों पर कार्यवाही की भी बात कही. एक प्रस्ताव भी प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित कर दिया गया कि ऐसे सभी पार्षदों की सदस्यता खत्म कर दी जाए.

भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में फिलहाल 12 नगर निगम हैं, जिनमें से 11 के मेयर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के हैं. सिर्फ बरेली में ही समाजवादी पार्टी का मेयर है. वैसे दो और क्षेत्र फिरोजाबाद और सहारनपुर में नगर निगम की स्थापना हो गयी है और इसी के साथ निगमों की कुल संख्या 14 हो गयी है. इसी साल सभी नगर निगमों में चुनाव भी होने हैं.

देशभक्ति या ध्रुवीकरण की राजनीति?

सदन में वन्दे मातरम का विरोध करने वाले पार्षद शाहिद अब्बासी के अनुसार उनका इस्लाम धर्म वन्दे मातरम गाने की इजाजत नहीं देता हैं. उन्होंने कहा, "हम देशभक्त हैं और भारत हमारा देश है. इस पर कोई उंगली नहीं उठा सकता. जहां तक रही वन्दे मातरम गाने की बात, वो हमारे धर्म में ऐसा संभव नहीं है, इसीलिए हमारा विरोध है.” 

अब्बासी चौथी बार पार्षद के रूप में कार्यरत हैं. वे बताते हैं, "एक व्यवस्था चली आ रही है कि वन्दे मातरम के समय हम (मुसलमान) बाहर आ जाते हैं और बाद में जाते हैं. इस बार बीजेपी की सरकार बन जाने के बाद हुई पहली बैठक में हम बाहर आ गए लेकिन जब दुबारा अन्दर गए तो नारे लगने लगे. हमने सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग दिखायी, जिसमे संविधान के अनुच्छेद 51A में राष्ट्रीय गीत की कोई अवधारणा नहीं हैं. इसका मतलब जबरदस्ती थोप नहीं सकते. हम सिर्फ अल्लाह की इबादत कर सकते हैं. कुछ ने कहा देश बड़ा कि मजहब बड़ा. हमारे लिए अल्लाह का हुक्म बड़ा और ये हुक्म है कि अपने मुल्क से मोहब्बत करो."

मेरठ के महापौर हरिकांत अहलुवालिया ने अपना पक्ष रखते हुए बताया कि अधिकारिक रूप से ऐसे सदस्यों की सदस्यता खत्म करने का कोई प्रस्ताव नहीं पारित हुआ है. उन्होंने बताया कि इस बार जब कुछ सदस्य बाहर गये तो इसके खिलाफ नारे लगने लगे. अहलुवालिया ने कहा, "मामला इतना बिगड़ गया कि झगड़े की नौबत आ गयी. मुझे स्थिति संभालनी थी. वन्दे मातरम समर्थक पार्षदों ने कहा की ध्वनि मत से प्रस्ताव पास करिए कि सदस्यता खत्म हो और अपने हाथ समर्थन में खड़े कर दिये. मैंने किसी तरह मामला संभाला. फिर भी सदस्यता खत्म करने वाली बात प्रस्ताव में नहीं आयी. लेकिन ये जरूर आ गया कि अगर कोई वन्दे मातरम गान का अपमान करेगा तो हम उसका विरोध करेंगे. मैंने इस पर नियमानुसार कार्यवाही का आश्वासन दिया.” 

हालांकि शाहिद अब्बासी और अन्य पार्षदों का कहना है कि अगर सदस्यता समाप्त की गयी तो वो कोर्ट जाएंगे. वे कहते हैं, "चार साल नौ महीने में देशभक्ति नहीं जागी और अब जाग रही है जब चुनाव पास हैं. सिर्फ ध्रुवीकरण की राजनीति है.”

मेरठ के बाद वाराणसी और गोरखपुर में भी 

अभी ये मुद्दा शांत भी नहीं हुआ था कि 1 अप्रैल को लगभग ऐसी ही स्थिति वाराणसी और गोरखपुर नगर निगम की बैठकों में देखने को मिला. वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र हैं, वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संबंध गोरखपुर से है. वाराणसी में मेयर रामगोपाल मोहिले ने वन्दे मातरम का गान कराया तो कुछ पार्षद जिनमें समाजवादी पार्टी से संबंधित लोग थे, विरोध स्वरुप बाहर चले गए. इस बात का विरोध बीजेपी के पार्षदों ने किया.

बाद में मेयर मोहिले ने नगर आयुक्त को आदेश दिया कि वन्दे मातरम का गान सदन की बैठक में अनिवार्य कर दिया जाये. मोहिले के निजी सचिव हेमंत सिंह ने ऐसे आदेश की पुष्टि की. उनके अनुसार पहले वन्दे मातरम गान होता था लेकिन बीच में नहीं हो रहा था और इसी को पुन: शुरू किया गया है. वहीँ पार्षदों ने कहा कि ये नयी परंपरा हैं.

इसी तरह, गोरखपुर में मेयर डॉक्टर सत्या पाण्डेय ने कुछ पार्षदों के विरोध के बीच ही वन्दे मातरम का गान कराया. सदस्यगण इसको नयी परंपरा बता रहे थे. लेकिन वन्दे मातरम का गान हुआ और विरोधी पार्षद बाहर चले गए.

वैसे दिलचस्प बात ये है कि उत्तर प्रदेश की विधान सभा में वन्दे मातरम का गान होता हैं और कोई विरोध नहीं होता. पिछली विधान सभा में स्पीकर माता प्रसाद पाण्डेय के समय भी हुआ और उस समय मंत्री के रूप में कार्यरत चर्चित मुस्लिम नेता आजम खान भी अपने स्थान पर खड़े होते थे. किसी मुस्लिम विधायक ने इस पर कोई आपत्ति नहीं दर्ज करायी थी.

2013 में भी छिड़ी थी बहस

संसद में 2013 में तत्कालीन बसपा सदस्य शफीकुर रहमान बर्क ने वन्दे मातरम के गान के समय वॉक आउट किया था. उस वक्त ये चर्चा का विषय बना था और बहस शुरू हो गयी थी. बर्क फिर सपा में गए और 2014 का लोक सभा चुनाव हार गए. अब वह असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन में हैं.

आम तौर पर वन्दे मातरम गान के विरोध के स्वर मुस्लिम समुदाय की तरफ से आते हैं. भारत की सबसे बड़ी इस्लामिक शिक्षण संस्थान, दारुल उलूम, देवबंद के अनुसार मुसलमान को वन्दे मातरम गान नहीं करना चाहिए. देवबंद के मोहतमिम (मुखिया) मौलाना अबुल कासमी नोमानी के अनुसार देवबंद ने पहले ही इस पर फतवा जारी कर दिया है कि मुसलमानों की इसे नहीं गाना चाहिए. दारुल उलूम के प्रवक्ता मौलाना अशरफ उस्मानी बताते हैं कि वन्दे मातरम में वंदना का मतलब इबादत है और हमारा माबूद सिर्फ अल्लाह है. हम सबका एहतराम कर सकते हैं लेकिन अल्लाह के सिवाय किसी की इबादत नहीं कर सकते और वन्दे मातरम में सीधे वंदना (इबादत) होती हैं.

अभी कोई कार्यवाही भले न हुई हो लेकिन अब ये मुद्दा फिर गरमा गया है. हालांकि बीजेपी विरोधी पार्षदों ने बाद में मेरठ में एकजुटता दिखायी और एक अप्रैल को साथ खड़े होकर नारे भी लगाये. लेकिन राजनीति अब बीजेपी बनाम अन्य हो गयी है.