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'एंडरसन के प्रत्यर्पण पर जोर न डालने का दबाव था'

९ जून २०१०

भारत में भोपाल गैस त्रासदी पर अदालत के फ़ैसले पर हो रही भारी आलोचना के बीच एक पूर्व सीबीआई अधिकारी ने कहा है कि सरकार ने यूनियन कार्बाइड के भगोड़े सीईओ वारेन एंडरसन के प्रत्यर्पण पर ज़ोर न डालने के लिए दबाव डाला.

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तस्वीर: AP

अप्रैल 1994 से जुलाई 1995 तक सीबीआई में मामले की जांच के लिए ज़िम्मेदार रहे संयुक्त निदेशक बीआर लाल ने कहा, "हम पर विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का दबाव था कि एंडरसन के प्रत्यर्पण की मांग न करें." 1993 में कोर्ट द्वारा भगोड़ा घोषित किए जाने के बाद सीबीआई ने एंडरसन के प्रत्यर्पण की अर्जी दी थी. 1991 से 1996 तक केंद्र में नरसिंह राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार शासन में थी.

Warren Anderson
एंडरसनतस्वीर: AP

इसके बावजूद अब कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा है कि जहां तक एंडरसन का सवाल है मुक़दमा खत्म नहीं हुआ है. कानून मंत्री ने कहा, "सीबीआई ने चार्जशीट दायर की. अदालत ने इसके बाद आरोप तय किए. एक व्यक्ति है, जिसने समन के जवाब नहीं दिए और आरोपों पर भी कोई सफाई नहीं दी. वह भाग गया और बाद में भगोड़ा घोषित कर दिया गया. इसका मतलब यह नहीं कि उसके (एंडरसन) खिलाफ मामले खत्म हो गए."

बीआर लाल का कहना है कि एंडरसन के ख़िलाफ पर्याप्त सबूत थे. "हम जांच में आगे बढ़ रहे थे जब विदेश मंत्रालय के हस्तक्षेप के कारण प्रत्यर्पण की प्रक्रिया धीमी पड़ गई और एंडरसन को कभी भी भारत नहीं लाया जा सका."

यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन प्रमुख एंडरसन को 7 दिसंबर 1983 को गिरफ़्तार किया गया था, लेकिन वे सिर्फ़ तीन घंटे हिरासत में रहे. कथित तौर पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के कहने पर उन्हें छोड़ दिया गया जिसके बाद एंडरसन अमेरिका चले गए और वायदा करने के बावजूद कानून का सामना करने के लिए वापस लौटकर नहीं आए.

सोमवार को भोपाल की एक अदालत ने भोपाल गैस कांड के लिए ज़िम्मेदार आठ अभियुक्तों को धारा 304ए के तहत सज़ा सुनाई जिसमें अधिकतम दो साल के क़ैद का प्रावधान है. देश भर में इस फ़ैसले पर रोष है.

सीबीआई ने धारा 304 के तहत गैर इरादतन हत्या का आरोप लगाया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बदल कर धारा 304ए के तहत लापरवाही से हुई मौत का मामला बना दिया. उस समय ये फ़ैसला सुनाने वाले बेंच के प्रमुख रहे भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.एच अहमदी ने अपने फ़ैसले का बचाव करते हुए कहा है कि आपराधिक कानून व्यवस्था में दूसरे के बदले उत्तरदायित्व जैसी अवधारणा नहीं होती.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: एस गौड़