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एएमयू में अशांति की आशंका, एचआरडी को पहुंची चिट्ठी

समरा फातिमा/आभा मोंढे२८ नवम्बर २०१४

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वीसी ने मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को एक चिट्ठी में चेतावनी दी है कि कुछ तत्व कैंपस में सांप्रदायिक आग और छात्रों में अशांति फैलाने की योजना बना रहे हैं.

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Smriti Irani
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

वाइस चांसलर जमीरुद्दीन शाह ने कहा कि अगर ये तत्व एएमयू में पहले दिसंबर को प्रदर्शन की अपनी योजना में सफल हो गए तो कैंपस में काफी अशांति फैल जाएगी. कुछ बीजेपी नेताओं ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह के जन्मदिवस के मौके पर कैंपस में प्रदर्शन करने का फैसला किया है. राजा एएमयू के छात्र थे जिनका परिवार एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद खान का नजदीकी था. चिट्ठी में लिखा गया है, "कुछ तत्व इस आधार पर प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने एएमयू बनाने के लिए बहुत जमीन दान में दी और उन्हें उसके अनुरूप ही सम्मान दिया जाना चाहिए. हम हमेशा ही आभारी रहे हैं कि राजा ने 3.04 एकड़ जमीन 1929 में दो रुपये प्रति वर्ष के हिसाब से एएमयू के लिए लीज पर दी थी. हम उस स्वतंत्रता सेनानी पर गर्व करते हैं. हालांकि दूसरे कई दानदाता भी थे. और एएमयू की मुख्य इमारत ब्रिटिश सरकार से मिली जमीन पर बनाई गई है जो पहले अलीगढ़ कैंटोंनमेंट थी."

राजनीतिक रंग

राज्य के कुछ बीजेपी नेताओं ने हाल ही में दावा किया था कि एएमयू राजा महेंद्र प्रताप सिंह की दी जमीन पर बनी है लेकिन संस्था के अधिकारियों ने इस योगदान को मानने से मना कर दिया.

वीसी ने एचआरडी मंत्री से अपील की है कि उन नेताओं पर दबाव डाले जो बयान दे रहे हैं. वीसी के मुताबिक, "एएमयू राजनीति में नहीं पड़ना चाहता. हमें आपकी तत्काल और गंभीर सहायता की आवश्यकता है ताकि कानून और व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति से निबटा जा सके." संस्था के शिक्षक संघ ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई है. इससे पहले लाइब्रेरी के मुद्दे पर भी विवाद हुआ था जिसमें इलाहबाद उच्च न्यायालय को कदम उठाना पड़ा.

लाइब्रेरी का मामला

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद जमीरुद्दीन शाह को लड़कियों को केंद्रीय मौलाना आजाद लाइब्रेरी में मेंबरशिप की मंजूरी देनी पड़ी. न्यायालय ने ये निर्देश पिछले दिनों हुए विवाद और एक जनहित याचिका को निपबते हुए दिए.

अदालत ने कहा कि पुस्तकालय में छात्राओं को प्रवेश से रोकने का विश्वविद्यालय अधिकारियों का फैसला "एकतरफा" और "संविधान" के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करने वाला है. पिछले दिनों अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्राओं के साथ भेदभाव के मुद्दे को लेकर विवादों में घिरा रहा. बहस का मुद्दा था यूनिवर्सिटी की सेंट्रल लाइब्रेरी में लड़कियों को प्रवेश न मिलना. विश्विद्यालय में स्नातक की पढ़ाई करने वाली लड़कियों के लिए अलग कॉलेज है जिसकी अपनी अलग लाइब्रेरी है. सेंट्रल लाइब्रेरी में अब तक उनकी मेंबरशिप नहीं हुआ करती थी. हालांकि जरूरत पड़ने पर वे कॉलेज की लाइब्रेरी के कार्यकर्ताओं से आवश्यक पुस्तक सेंट्रल लाइब्रेरी से मंगवाने के लिए कह सकती थीं.

विवाद तब खड़ा हुआ जब सेंट्रल लाइब्रेरी में लड़कियों के जाने की मांग उठाए जाने पर जमीरुद्दीन शाह ने कहा था कि स्नातक की छात्राओं को अनुमति देने से पुस्तकालय में चार गुना अधिक लड़के आएंगे. हालांकि बाद में अपने इस बयान पर सफाई देते हुए उन्होंने कहा कि लाइब्रेरी में इतनी जगह नहीं है कि एक साथ इतने छात्र वहां बैठ सकें. वैसे भी दिन रात खुली होने के बावजूद लाइब्रेरी किसी समय खाली नहीं होती.

पुस्तकालय में छात्राओं के प्रवेश का विरोध करने वाले विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने अदालत के सामने हलफनामे में कहा कि वे सुनिश्चित करेंगे कि परिसर में लैंगिक भेदभाव नहीं हो और छात्राओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो. न केवल लड़कियों को सेंट्रल लाइब्रेरी में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी, बल्कि उन्हें मेंबरशिप भी दी जाएगी. विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा आश्वासन के बाद मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल की खंडपीठ ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय की एक विधि इंटर्न तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता दीक्षा द्विवेदी की जनहित याचिका को निबटाते हुए यह आदेश पारित किया.