एवरेस्ट का रास्ता बंद
२२ अप्रैल २०१४इस फैसले के बाद हजारों विदेशी पर्वतारोहियों को अपनी योजना बदलनी होगी, जो गर्मियों के दौरान दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने की कोशिश करते हैं. इनमें से तो कई बेस कैंप में पहुंच चुके हैं और अब तक लाखों रुपये खर्च भी कर चुके हैं. लगता है कि इस साल उन्हें बैरंग लौटना पड़ेगा.
8,848 मीटर ऊंची सफेद पहाड़ी पर चढ़ते वक्त पर्वतारोहियों के अहम काम शेरपाओं के जिम्मे होता है. वे सामान और खाना ढोते हैं और रास्ते में जरूरत पड़ने पर उपकरणों और सीढ़ियों की मरम्मत भी करते हैं. इससे उनके ग्राहकों का जोखिम तो कम होता है लेकिन खुद उनका जोखिम बढ़ जाता है.
सम्मान में फैसला
नेपाल के गाइड तुलसी गुरुंग ने बताया, "दोपहर में हमने लंबी चौड़ी मीटिंग की, जिसके बाद फैसला किया गया कि इस साल हम अपना काम नहीं करेंगे. हम अपने खोए हुए भाइयों के सम्मान में ऐसा कर रहे हैं. सभी शेरपा इस मुद्दे पर एक राय हैं."
पिछले हफ्ते शुक्रवार को जो हिमस्खलन हुआ था, उसके बाद गुरंग के भाई भी लापता हैं. उनका कहना है, "कुछ शेरपा लौट चुके हैं और बाकी शेरपा हफ्ते भर में अपना सामान बांध कर घर चले जाएंगे." वहीं पसांग शेरपा का कहना है, "चढ़ाई के पहले ही दिन 16 लोगों की मौत हो चुकी है. अब हम इस पर्वत पर कैसे पैर धर सकेंगे."
शेरपाओं ने इससे पहले धमकी दी थी कि अगर सरकार ने उनका मुआवजा नहीं बढ़ाया और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं तय की गई, तो वे अपना काम रोक देंगे. अब उनके ताजा फैसले के बाद विदेशी पर्वतारोही राजधानी काठमांडू की ओर रवाना हो चुके हैं, ताकि मसले का कुछ हल निकल सके. अमेरिकी पर्वतारोही एड मार्केज का कहना है, "ऐसा नहीं लगता कि उन्हें सिर्फ मुआवजा ही चाहिए, लगता है कि उन्होंने तो इस साल साथियों की याद में एवरेस्ट को ही बंद कर दिया है."
बेस कैंप में अफरा तफरी
मार्केज ने बताया कि वे अगले हफ्ते काठमांडू में एक प्रदर्शन करना चाहते हैं और अगर वे पहाड़ पर रहेंगे, तो यह नहीं कर पाएंगे. 67 साल के मार्केज हिमालय की चोटी पर पहुंच कर सबसे ज्यादा उम्र के अमेरिकी बनना चाहते हैं. उनका कहना है कि लोग शेरपाओं को समझाने की कोशिश कर रहे हैं.
टिम रिप्पल नाम के अनुभवी पर्वतारोही भी अपनी टीम के साथ बेस कैंप में हैं. उनका कहना है, "शेरपाओं के जज्बात भड़क रहे हैं. मुश्किल हो रही है. यहां बहुत तनाव है." पिछले साल यूरोप के तीन पर्वतारोहियों के साथ स्थानीय शेरपाओं का झगड़ा हो गया था, जिसके बाद से विदेशियों के साथ उनके रिश्ते खराब हो रहे हैं.
शेरपाओं ने नेपाल सरकार से मांग की है कि मारे गए लोगों के परिवार वालों को 10,000 डॉलर का मुआवजा दिया जाए. यह मुआवजा उन लोगों को भी देने की मांग की गई है, जो हिमस्खलन से प्रभावित हुए हैं और काम नहीं कर सकते. आम तौर पर एक सीजन में शेरपा 3,000 से 6,000 डॉलर कमा लेते हैं लेकिन उनके बीमा की राशि पर्याप्त नहीं होती. नेपाल सराकर ने इस साल 400 गाइडों सहित 743 लोगों को माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का परमिट दिया है.
न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाल के शेरपा तेनजिंग नॉर्गे ने 1953 में पहली बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी की. इसके बाद से हिमालय की सफेद वादियां 300 से ज्यादा लोगों को लील चुकी हैं.
एजेए/एएम (एएफपी)