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एवरेस्ट पर पर्वतारोहियों की वापसी

१३ मई २०१४

करीब एक महीने पहले नेपाल में हिमालय पर्वत पर हुई हिमस्खलन दुर्घटना के बाद से शेरपाओं ने काम रोक दिया. लेकिन इसके बावजूद दो विदेशी पर्वतारोही ने चोटी छूने निकल पड़े हैं. पहला पड़ाव उड़कर पार किया.

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तस्वीर: Buddhabir RAI/AFP/Getty Images

हर साल गर्मियों के मौसम में सैकड़ों लोग माउंट एवरेस्ट तक पहुंचने के इरादे से नेपाल के रास्ते हिमालय पर चढ़ाई शुरू करते हैं. पिछले दिनों हुई दुर्घटनाओं और लंबे समय से हो रही उनकी सेवाओं की नजरअंदाजी से नाराज हो कर शेरपाओं ने पर्वतारोहियों के साथ यात्रा पर जाना बंद कर दिया. शेरपा न सिर्फ चढ़ाई के दौरान भारी वजन उठाते हैं बल्कि क्लाइंबरों को रास्ता दिखाने और कठिन रास्तों में रस्सी या पत्थरों से अस्थाई मार्ग भी तैयार कर देते हैं.

दो विदेशी पर्वतारोहियों ने इरादा कर लिया था कि वे अपनी चढ़ाई की योजना नहीं बदलेंगे. इसके लिए उन्होंने एक हैलीकॉप्टर की मदद ली और हिमालय के एक महत्वपूर्ण कैंप तक उड़ कर पहुंच गए. फिर वहीं से उन्होंने विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने के अपने मकसद को पूरा करने की कोशिश शुरू की. ये पर्वतारोही अमेरिका और चीन से वहां पहुंचे हैं. इन्होंने एक एयर चार्टर कंपनी से हैलीकॉप्टर किराये पर लिया और एवरेस्ट के रास्ते में पड़ने वाले खुम्बु हिम प्रपात के ऊपर से उड़ान भरी. यह वही झरना है जिसके पास 18 अप्रैल को हिमस्खलन में 16 शेरपाओं की मौत हो गई और कई लोग घायल भी हुए. इस बार विदेशी पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट बेस कैंप से कैंप-2 की दूरी के हवाई रास्ते से तय कर दुर्घटना वाली जगह को पार कर लिया.

नेपाल के पर्यटन मंत्रालय के अधिकारी दीपेन्द्र पाउदेल ने समाचार एजेंसी को बताया, "दो पर्वतारोही कैंप-2 से आगे बढ़ रहे हैं." पाउदेल ने आगे कहा कि ऐसे और भी कई पर्वतारोही हैं जो इसी साल एवरेस्ट की यात्रा करना चाहते हैं. माउंट एवरेस्ट की ओर बढ़ने वाले चीनी क्लाइंबर के साथ छह शेरपा हैं जबकि ल्होत्से चोटी की ओर बढ़ रहा अमेरिकी क्लाइंबर अकेला है. एवरेस्ट और ल्होत्से, दोनों चोटियों तक जाने का रास्ता कैंप-3 तक एक ही है. इन पर्वतारोहियों को कैंप-2 तक ले जाने वाले 'फिशटेल एयर' के रमेश शिवकोटी कहते हैं, "ऐसा पहली बार हुआ है जब हम क्लाइंबर्स को कैंप-2 तक ले गए हैं. पहले हम केवल किसी इमरजेंसी की स्थिति में या उपकरण पहुंचाने के लिए हवाई रास्ते का इस्तेमाल करते थे."

अप्रैल की आपदा के बाद करीब 97 फीसदी शेरपाओं ने काम रोक दिया और सरकार से अपनी सुरक्षा की मांग करने लगे. शेरपाओं ने इस साल पर्वतारोहण से जुड़ी तैयारियां रोक दीं लेकिन नेपाल सरकार की ओर से एवरेस्ट पर जाने की कोई आधिकारिक रोक नहीं लगी. इस साल चढ़ाई का सीजन 25 मई तक है. नेपाल के लिए पर्वतारोहियों और पर्यटकों से होने वाली कमाई का काफी महत्व है. हर साल गर्मियों में एवरेस्ट के बेस कैंपों पर हलचल बढ़ जाती है. 1953 में सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नॉर्गे द्वारा चढ़ाई करने के बाद से अब तक 3,000 से अधिक लोग एवरेस्ट की चोटी पर पहुंच चुके हैं. इतने ही वक्त में करीब 300 लोगों की पर्वतारोहण से जुड़े हादसों में मौत हुई है.

आरआर/ओएसजे (एएफपी)