एशिया का नोबेल 'थांग' पुरस्कार
२८ जनवरी २०१३नोबेल को विज्ञान, कला, साहित्य और शांति के क्षेत्र का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है. पुरस्कार स्वीडन की एक अकादमी देती है. ताइवान के कारोबारी सैमुएल यिन एशिया से भी ऐसा ही प्रतिष्ठित पुरस्कार निकालना चाह रहे हैं. इन्हें थांग पुरस्कार कहा जाएगा. 618 ईसवी से 907 ईसवी तक चीन पर राज करने वाले थांग साम्राज्य के नाम पर पुरस्कार का नामकरण किया गया है. यिन लंबे वक्त से ऐसा पुरस्कार शुरू करने का सपना देख रहे थे. कहते हैं कि इच्छा अब जाकर पूरी हुई है. पुरस्कार 2014 से दिये जाएंगे. नोबेल हर साल मिलता हैं, लेकिन थांग पुरस्कार दो साल में एक बार दिए जाएंगे.
थांग पुस्कार का ढांचा
थांग पुरस्कार चार क्षेत्रों में जाएंगे. ये श्रेणियां हैं, टिकाऊ विकास, बायोफॉर्मास्यूटिकल साइंस, साइनोलॉजी (चीन का अध्ययन) और रूल ऑफ लॉ (कानून का नियम). यिन कहते हैं, "मुझे उम्मीद है कि यह पुरस्कार विश्व और मानवता, चीनी संस्कृति को बढ़ाने और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने पर हो रही रिसर्च को फायदा पहुंचाकर बढ़ावा देगा."
विजेता किसी भी देश का हो सकता है. प्रत्येक विजेता को 17 लाख डॉलर की पुरस्कार राशि दी जाएगी. नोबेल पुस्कार विजेता की तुलना में यह पुरस्कार राशि पांच लाख डॉलर ज्यादा है. यिन को उम्मीद है कि थांग पुरस्कार के जरिए विज्ञान के अंतरराष्ट्रीय मंच पर ताइवान की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी. यिन कहते हैं कि 118 साल से दिए जा रहे नोबेल पुरस्कार इन क्षेत्रों में नहीं दिए जाते हैं, इसीलिए उन्होंने इन श्रेणियों को चुना.
पुरस्कार शुरू करने की कोशिश के पहले हिस्से में यिन 10.3 करोड़ डॉलर की राशि दे चुके हैं. थांग पुरस्कार विजेताओं का नामांकन अकाडेमिया सिनिका द्वारा नियुक्त खास समिति करेगी. यह अकादमी ताइवान की सबसे प्रतिष्ठित रिसर्च संस्था है.
कौन हैं सैमुएल यिन
62 साल के यिन रुएटेक्स बिजेनस समूह के मालिक हैं. ताइवान के सबसे अमीर लोगों में शुमार यिन पिछले साल भी सुर्खियों में रहे. 2012 में उन्होंने मौत के बाद अपनी 95 फीसदी संपत्ति दान देने का एलान किया. चीन और ताइवान में यिन की पहचान शिक्षा और पुण्य के कामों में मदद करने वाले दयालु दानदाता की है. ताइवान के मीडिया के मुताबिक 80,000 से ज्यादा चीनी छात्र यिन की मदद से ट्यूशन पढ़ते हैं.
यिन को चीन से प्यार है. कारोबार के अलावा वह देश को आगे बढ़ाने में व्यक्तिगत रूप से मदद करते रहे हैं. 1980 के दशक में जब चीन की आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी, तब यिन ने पूर्वी चीन में 250 किलोमीटर लंबा रेल ट्रैक बनाने के लिए आर्थिक मदद दी थी. बीजिंग यूनिवर्सिटी का गुआनझुआ मैनेजमेंट स्कूल भी उन्हीं की मदद से चल रहा है. चीन सरकार इसी स्कूल से प्रतिभाशाली नए अधिकारी ढूंढती है.
ओएसजे/एमजे (एएफपी, एपी)