ऑनलाइन पर्यटन का दौर शुरू
४ अप्रैल २०१४अपने कंप्यूटर पर गूगल स्ट्रीट व्यू की वेबसाइट खोलें तो अंकोर वाट मंदिर का सुंदर नजारा आपको दिखेगा. आसपास हरे भरे पेड़ हैं और मंदिर के परिसर में सैकड़ों पर्यटक कैमरे, थैले और पानी की बोतल लिए घूमते दिखते हैं. यह प्रोजेक्ट एक नए ट्रेंड का हिस्सा है. दुनिया भर में ऐसे लाखों लोग हैं जो किसी वजह से विदेशों की यात्रा नहीं कर पाते हैं और इस वजह से दुनिया भर में ऐसी अद्भुत कलाकृतियों को देखने का मौका नहीं मिलता.
गूगल की तकनीक
इसके लिए गूगल ने अंकोर के दस लाख से ज्यादा फोटो लिए और अब अंकोर वाट परिसर के 100 मंदिरों की 90,000 तस्वीरें हैं जो हर तरफ से ली गई हैं. स्ट्रीटव्यू लगाकर यूजर मंदिर के एक हिस्से पर क्लिक कर सकते हैं जो जूम करने पर बड़ा हो जाता है.
गूगल ने इस प्रोजेक्ट के लिए ट्रेकर नाम की तकनीक का इस्तेमाल किया है. इसमें 15 डिजिटल कैमरों को एक लंबे डंडे पर रखा जाता है. डंडे को फिर एक बैकपैक में लगाया जाता है और हर कैमरा ढाई सेकेंड में एक फोटो लेता है जिसका रेसोल्यूशन सात करोड़ पिक्सेल होता है. ट्रेकर को फिर मंदिर में घुमाया जाता है और वह ऐसी जगह की तस्वीरें लेता है जिसे गूगल स्ट्रीट व्यू की गाड़ी देख नहीं पाती.
गूगल मैप्स के प्रोजेक्ट मैनेजर माणिक गुप्ता का कहना है कि उन्होंने ताज महल, ग्रैंड कैन्यन और जापान में फिजी परवत की भी 360 डिग्री वाली तस्वीरें ली हैं, "लेकिन अंकोर वाट को अब तक के सबसे बड़े आयाम पर मैप किया गया है. यह एक प्रतिष्ठित जगह है और लोग कहते हैं है कि यह दुनिया का आठवां अजूबा है और आपको यह एहसास होता है, हर छोटी दरार, हर कोने पर आपको कला मिलेगी." अंकोर आर्कियोलॉजिकल पार्क में ख्मेर शासन के दौरान अलग अलग राजधानियों के अवशेष पाए जाते हैं. 9वीं सदी में शुरू हुए ख्मेर शासन का पतन 15वीं शताब्दी तक हो चुका था.
ऑनलाइन पर्यटन
गूगल ने हाल ही में गूगल आर्ट भी शुरू किया है जो बड़े म्यूजियम और गैलरी का टूअर कराता है. माणिक गुप्ता कहते हैं कि उन्होंने अपने प्रोजेक्ट्स के लिए स्नो मोबाइल से लेकर रेलगाड़ियों का इस्तेमाल किया है. गूगल के सांस्कृतिक धरोहर प्रमुख अमित सूद कहते हैं कि कंबोडिया में इसकी बहुत जरूरत थी क्योंकि यह एक ऐसा देश है जिसके बारे में लोग बहुत कुछ नहीं जानते.
लेकिन क्या पर्यटकों को लगता है कि अंकोर वाट पर जाने के बजाय गूगल में उसकी तस्वीरें देखना असली अनुभव के जैसा बिलकुल नहीं होगा. हॉलैंड की लीसबेथ गेरिटसेन कहती हैं, "मैं वहां जाने से पहले गूगल में उसे नहीं देखूंगी. एक बार देख लिया तो बाद में गूगल में देख सकते हैं." बैंगकॉक में रहने वाले टॉम स्टरक कहते हैं," अंकोर वाट पर जब सूरज उगता है, तो आप जो वहां रहकर महसूस करते हैं, उस अनुभव को आप ऑनलाइन महसूस नहीं कर सकते."
एमजी/आईबी (एएफपी)