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समाज

कानूनों की कमी से फैल रही "रेप की महामारी": रिपोर्ट

६ मार्च २०१७

लेबनान में कोई बलात्कारी अगर पीड़िता से ही शादी कर ले तो वह सजा से बच सकता है. या फिर भारत को ही लें, जहां शादी के भीतर रेप भी वैध है. कई देशों में लागू कई बुरे कानून इस वैश्विक "यौन हिंसा की महामारी" को बढ़ावा देते हैं.

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Demonstration gegen Artikel 522 Strafgesetz in Libanon
तस्वीर: Lama Naja

दुनिया के 73 देशों में हुए एक सर्वे से पता चला है कि कई जगहों पर ऐसे कानून हैं जिनका फायदा उठाकर बलात्कारी सजा से बच निकलते हैं. इराक, फिलीपींस, बहरीन, ताजिकिस्तान और ट्यूनीशिया जैसे कम से कम नौ देशों में अगर बलात्कारी ही बलात्कार की शिकार महिला से शादी कर ले, तो वह सजा से बच सकता है.

भारत समेत दुनिया में कम से दस देश ऐसे हैं, जो कानूनी रूप से शादीशुदा जोड़ों में आपस में यौन हिंसा या बलात्कार को सिरे से खारिज करते हैं. 'इक्वॉलिटी नाऊ' नाम की संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि घाना, ओमान, सिंगापुर और श्रीलंका जैसे चार देशों में तो मैराइटल रेप तब भी स्वीकार्य है जब "पत्नी" एक छोटी बच्ची हो और वो शादी गैरकानूनी हो.

समूह के लीगल इक्वॉलिटी प्रोग्राम के प्रमुख अंतोनिया कर्कलैंड कहते हैं, "हम ऐसी सभी सरकारों को चुनौती दे रहे हैं कि वे अपने ऐसे कानूनों पर गौर करें और देखें कि क्या वे वाकई अपनी लड़कियों को यौन हिंसा से बचाने वाले हैं."  संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों से पता चलता है कि दुनिया की एक तिहाई औरतें किसी ना किसी तरह की यौन या शारीरिक हिंसा झेल चुकी हैं. यूएन के आंकड़े भी दिखाते हैं कि हर 10 में एक लड़की बलात्कार या यौन उत्पीड़न की शिकार बनी है.

'इक्वॉलिटी नाऊ' की कार्यकारी निदेशक यास्मीन हसन कहती हैं, "जब तक सरकारें रेप और यौन उत्पीड़न पर अपने कानून सही नहीं करतीं और उन्हें प्रभावी तरीके से लागू नहीं करतीं.. तब तक हम विश्व भर में महिलाओं और लड़कियों के साथ हो रहे इस दुर्व्यवहार को खत्म होते नहीं देख पाएंगे." यह रिपोर्ट पेश करने वाले समूह का कहना है कि यौन हिंसा के कारण ना केवल लड़कियां अपनी व्यक्तिगत क्षमता को पूरी तरह इस्तेमाल करने से चूक जाती हैं बल्कि इसके कारण पूरे समुदाय और देश की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ता है.

अंतरराष्ट्रीय बार एसोसिएशन ने भी इस रिपोर्ट को तैयार करने में सहयोग किया है. उनका मानना है कि ऐसे सभी कानून जिनमें यौन अपराधी को किसी तरह के समझौते करवा कर आजाद छोड़ दिया जाता है, वे गलत मिसाल देते हैं. जैसे हाल ही में सोमालिया में किशोर लड़कों के एक समूह ने दो लड़कियों का सामूहिक बलात्कार किया और उसका वीडियो बनाकर ऑनलाइन शेयर भी कर दिया. इतना सब करने के बावजूद भी वे कुछ ऊंट देकर जेल से छूट गए.

सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इससे पीड़िता को न्याय नहीं मिलता, साथ ही समाज में यह संदेश भी जाता है कि रेप कोई गंभीर अपराध नहीं है, उसको लेकर मोलभाव किया जा सकता है. कई देशों में तो रेप की शिकायत दर्ज कराने वाली औरत अगर उसे साबित ना कर सकी, तो उल्टे उसे ही शादी के बाहर सेक्स में लिप्त होने के अपराध की सजा हो सकती है.

आरपी/एके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)