1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कानून की जद में रेहड़ी पटरी कारोबार

२९ अप्रैल २०१४

भारत में कानूनों की कमी नहीं है, बस इन कानूनों का वजूद अक्सर सिर्फ कागज पर दिखता है. आजादी के 65 साल बाद शायद पहली बार किसी कानून को व्यवस्थित तरीके से अमलीजामा पहनाने की पहल हो रही है.

https://p.dw.com/p/1Bqq7
तस्वीर: DW/T. Meyer

वैसे तो रेहड़ी पटरी पर दुनिया भर में कारोबार होता है मगर विकसित देशों में खुदरा व्यापार करने वाले छोटे कारोबारियों को न सिर्फ कानून का संरक्षण मिलता है बल्कि इस प्राचीन कारोबारी प्रणाली को भी कानून की हदों में बांधकर रखा गया है. इस मामले में भारत अब तक अपवाद ही रहा है. भारत में सदियों पुरानी इस कारोबारी परंपरा को नियंत्रित करने का कोई कानून नहीं था. इसके चलते हर दिन रोजी रोटी कमाने खाने वाले ये गरीब व्यापारी पुलिसिया शोषण के शिकार थे तो घर की छोटी मोटी जरुरतें पूरी करने वाली उपभोक्ता वस्तुओं के खरीददार रेहड़ी पटरी वालों की मनमानी से दुखी थे.

भारतीय खुदरा बाजार का आकार दुनिया में सबसे बड़े बाजारों में शामिल होने के बावजूद इसके नियंत्रण और संरक्षण को अब जाकर कानून की चारदीवारी में शामिल किया गया है. वह भी देश भर में मौजूद 15 करोड़ से अधिक रेहड़ी पटरी वालों के सबसे बड़े संगठन नासवी की छत्रछाया में पिछले एक दशक से चल रहे आंदोलन के बाद. हाल ही में 15वीं लोकसभा के अंतिम सत्र के दौरान संसद में रेहड़ी पटरी कारोबार नियंत्रण एवं संरक्षण कानून 2014 पारित हुआ. मगर शायद देश का यह पहला कानून होगा जिसे व्यवस्थित तरीके से लागू करने की पहल जनता और सरकार दोनों की साझा कोशिशों से की गई है.

क्या है पहल

भारत में स्ट्रीट फूड का चलन दुनिया के बाकी मुल्कों की तुलना में कुछ ज्यादा ही है. खानपान की शायद ही कोई ऐसी विधा हो जो सड़क पर न परोसी जा रही हो. दिल्ली तो अपनी चटोरी गलियों के नाम से ही जगतविख्यात है. मगर इसके साथ ही रेहड़ी पटरी पर बिकने वाली खाद्य सामग्री के साथ साफ सफाई का अभाव और सेहत के लिए खतरा चोली दामन के साथ की तरह जुड़ा है. इस खतरे से निपटने के लिए नए कानून में किए गए इंतजामों को व्यावहारिक तौर पर लागू करने का काम मंगलवार को राजधानी दिल्ली से शुरु किया गया.

Fruchtsaft Straßenverkäufer Kalkutta Archiv 2012
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay

इसके तहत दिल्ली में खानपान के लिए मशहूर इलाकों में हाईजीनिक फूड जोन बनाने का फैसला किया गया. इसके लिए दिल्ली में चांदनी चौक, करोल बाग और सरोजनी नगर सहित ऐसे मशहूर आठ इलाकों की पहचान कर इनमें हाईजीनिक फूड जोन बनाए जाएंगे. इस कड़ी की शुरुआत सरोजनी मार्केट से हो गई है. दिल्ली के सरोजनी नगर मार्केट में काफी बड़ा रेहड़ पटरी बाजार है. यहां के लजीज पकवानों की लज्जत यहां आने वालों को बरबस लुभाती है. हालांकि इस लोभ की संतुष्टि के लिए लोगों को सेहत के साथ समझौता करना पड़ता था. मगर अब यहां शुरु हुए पहले हाईजीनिक फूड जोन में यह तस्वीर बदली दिख रही है.

पांच सितारा होटलों की तर्ज पर चाट पकौड़े बनाते हाथों में दस्ताने, सिर पर हेडकवर और गले से टंगा एप्रेन देखकर चौंकना लाजिमी है. खानपान की वस्तुएं बेचने वाले 100 रेहड़ी पटरी वालों को इसके लिए खासतौर पर प्रशिक्षित किया गया है. इससे पहले कानून के मुताबिक इन सभी का सरकार के खाद्य सुरक्षा विभाग में बाकायदा पंजीकरण किया गया है. साथ ही फूड जोन में खाद्य सुरक्षा विभाग के अधिकारियों की टीम औचक निरीक्षण करेगी. वैंडर्स को भी खुद पूरी साफ सफाई का ध्यान रखना होगा. उनके नाखून और बाल कटे होने चाहिए. हाथों में चोट लगने पर वह घाव के ठीक होने तक काम नहीं कर सकेगा, आदि आदि.

भविष्य की तस्वीर

इसका मकसद सिर्फ खानपान ही नहीं बल्कि हर तरह के रेहड़ी पटरी कारोबार में लगे लोगों का पंजीकरण कर कारोबार को व्यवस्थित बनाना है. इसके लिए सिर्फ दिल्ली में ही मौजूद लाखों रेहड़ी पटरी वालों का पंजीकरण चल रहा है. अब तक खाद्य सुरक्षा विभाग में 350 रेहड़ी वालों ने पंजीकरण के लिए आवेदन कर दिया है. इन्हें प्रशिक्षण देने के बाद ही कारोबार का लाइसेंस मिलेगा. इसके आधार पर न सिर्फ इन्हें कानून में सुझाए गए अपने दायित्व पूरे करने होंगे बल्कि बीमा, ऋण और गरीबों के लिए सस्ते सरकारी आवास जैसी सुविधाएं पाने के अधिकार भी इन्हें मिल जाएंगे.

देर आए दुरुस्त आए मगर सरोजनी नगर मार्केट की नई तस्वीर में बदलते वक्त की आहट को महसूस किया जा सकता है. इस एक कानून को व्यावहारिक तौर पर कानून की किताब से जमीन पर उतारने की कवायद प्रत्येक कानून के साथ ऐसा ही किए जाने की तस्दीक करती है. साथ ही हर काम की बेहतर शुरुआत लेकिन अंजाम वही ढाक के तीन पात जैसा होने का अब तक का अनुभव इस पहल को भी शक के चश्मे से देखने को मजबूर करता है. हालांकि उम्मीद पर आसमान टिका है इसलिए हमें भी इस पहल के सहारे बेहतर भविष्य की आस नहीं छोड़नी होगी.

ब्लॉग: निर्मल यादव

संपादन: महेश झा