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कानून नहीं समाज बदलो

४ फ़रवरी २०१३

सत्रह साल के युवक पर आरोप है कि दिल्ली बलात्कार कांड में उसकी भूमिका सबसे क्रूर रही. वह सबसे हिंसक था.लड़की को जख्मी करने में भी बड़ा हाथ उसी का था. कानून के कारण यह आरोपी सबसे पहले छूटेगा, तो क्या कानून बदलना चाहिए.

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तस्वीर: Reuters

दिल्ली की चकाचौंध से मीलों दूर इस नाबालिग आरोपी की मां सदमे में है. छह सात साल बाद घर से भागे बेटे का पता चला भी तो कुछ इस तरह. मजदूरी करके रोजी रोटी चलाने वाली मां पढ़ना लिखना तो नहीं जानती और न ही कानून को समझती है लेकिन अपने ही बेटे को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की मांग करते हुए कहती है, "वह मेरा बेटा नहीं."

दिल्ली बलात्कार कांड ने पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया है और इसमें एक नाबालिग के शामिल होने के बाद मामला और भी पेंचीदा हो गया है. कानून बालिग-नाबालिग की परिभाषा दोहराने में लग गया है. अर्जी दी गई है कि कानून में बदलाव की जरूरत है और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया है, "उम्र से जुड़े इस विवाद को जांचा जाना जरूरी है क्योंकि यह कानून का सवाल है."

Indien Gerichtsprozess gegen Vergewaltiger
दिल्ली की विशेष अदालत में मुकदमातस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images

भारत की आबादी का 40 फीसदी हिस्सा 18 साल से कम उम्र का है, लेकिन अपराध में इनकी भागीदारी दो फीसदी भी नहीं है. बाल कल्याण संस्था प्रयास के सचिव और पूर्व आईपीएस अधिकारी आमोद कंठ आंकड़े देते हुए बताते हैं कि दो साल पहले जहां अमेरिका में करीब साढ़े 11 लाख बाल अपराध सामने आए, वहीं भारत में करीब 33000 अपराध बच्चों ने किए, जिनमें मुश्किल से 10 फीसदी जघन्य अपराध थे, यानी 3000 बच्चे, "तो क्या हमारा समाज ऐसी जगह पहुंच गया है कि हम इन 3000 बच्चों की देख रेख भी नहीं कर सकते, उन्हें सुधार नहीं सकते."

क्या है कानून

बच्चों से जुड़े भारत के कानून द जूविनाइल जस्टिस देखभाल, सुरक्षा, इलाज और पुनर्वास के बुनियादी नियमों पर बना है. इसके तहत सात साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे का किया हुआ कोई भी काम अपराध नहीं हो सकता. इसके बाद का नुक्ता कहता है कि "आठ से 12 साल की उम्र के बच्चे का कोई काम अपराध नहीं हो सकता क्योंकि वह इसके परिणाम को समझने की हालत में नहीं होता."

मुश्किल इसके बाद के उम्र की है. 12 से 18 के बीच के बच्चों को बालिग नहीं माना जाता और उनके अपराध पर वयस्कों की तरह न तो मुकदमा चलता है और न ही वे धाराएं लगाई जाती हैं. उनके लिए अलग कोर्ट है. इनका नाम प्रकाशित करना, तस्वीरें छापना प्रतिबंधित है. भारतीय सुप्रीम कोर्ट के वकील अभय मोहन का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रख कर कानून में पिछले दशक में बदलाव किया गया और "अपराध विशेषज्ञों, सामाजिक जानकारों की रिसर्च और दुनिया भर में चल रहे नियम कायदों को ध्यान में रख कर इस उम्र की सीमा को तय किया गया."

दुनिया के कानून

हालांकि दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जहां बालिगों की उम्र अलग है या उनके लिए कानून अलग हैं. मिसाल के तौर पर स्कॉटलैंड में बालिग होने की उम्र 16 है, जबकि कनाडा में 14 से 17 साल तक के बच्चों के जघन्य अपराधों की वजह से उन पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है. 9/11 के आतंकवादी हमले के आरोप में कई नाबालिगों को गिरफ्तार करने और उन्हें दुनिया के सबसे खरतनाक जेल ग्वांतानामो बे में रखने की वजह से अमेरिका भारी विवाद में है. अमेरिका के अलग अलग राज्यों का अपना कानून है और कई राज्यों में 17 साल की उम्र को वयस्क माना जाता है, जबकि केंटकी में 14 साल के उम्र में भी वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है.

Demonstration gegen sexuelle Gewalt gegen Frauen Delhi Indien
विरोध प्रदर्शनतस्वीर: dapd

लगभग 25 साल से बच्चों की सेवा में लगे आमोद कंठ अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं, "जो बच्चे जघन्य अपराध करते हैं, उनमें से करीब 20 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जिनकी सामाजिक पृष्ठभूमि बहुत खराब है. ज्यादातर गरीब परिवारों से आते हैं. अनपढ़ हैं या पढ़ाई बीच में छोड़ दी है. पारिवारिक समस्याएं उनकी जिंदगी का हिस्सा है और वे इसी वजह से अपराध में उतर आए." दिल्ली कांड के बाद नाबालिगों से जुड़े कानून के आकलन की कमेटी के सदस्य कंठ का मानना है कि बालिग होने की उम्र को घटाने की कोई जरूरत नहीं, बल्कि समाज में बदलाव की जरूरत है.

क्या हैं उपाय

सामाजिक संस्थाओं और जानकारों की राय है कि अलग अलग मामलों को अलग अलग तरीके से देखने पर इस मसले का हल हो सकता है. लेकिन मोहन इस बात से इनकार करते हैं. उनका कहना है कि ऐसा होने पर मामले कानून की परिधि से बाहर निकल सकते हैं, "भूगोल और सामाजिक संरचना पर बहुत कुछ निर्भर करता है और इस पर भी कि बच्चे की पृष्ठभूमि क्या है. किसी भी जज के लिए इन सब बातों को तय करना बहुत मुश्किल हो जाएगा."

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः महेश झा

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