कानून ने बढ़ाई पढ़ी लिखी दुल्हन की मांग
२९ दिसम्बर २०१५और ये इसलिए कि खुद न सही पत्नी ही पंचायत चुनाव लड़ सके. हरियाणा में लड़कों के मुकाबले लड़कियों का अनुपात देश में सबसे कम है. राजस्थान में पहले से ही ऐसा कानून लागू है. हरियाणा में पंचायत चुनाव 10 जनवरी से होने हैं. हरियाणा सरकार ने हाल में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता दसवीं पास कर दी है. यानी इससे कम पढ़े-लिखे लोग इन चुनावों में उम्मीदवारी नहीं कर सकते. इससे खासकर पिछड़े व दलित तबके की ज्यादातर महिलाएं चुनावी रेस से बाहर हो गई हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस महीने सरकार के इस फैसले पर मुहर लगा दी है. हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार अब शहरी निकाय चुनावों में उम्मीदवारी के लिए 12वीं पास होना अनिवार्य करने पर भी विचार कर रही है.
नया फार्मूला
इससे पहले राजस्थान सरकार ने इस साल जनवरी में पंचायत चुनावों में उम्मीदवारी के लिए दसवीं पास होना अनिवार्य कर दिया था. हरियाणा में महिलाओं के लिए यह योग्यता आठवीं पास होना और दलितों के लिए पांचवीं पास होना है. लेकिन राज्य की ज्यादातर आबादी इस पर खरी नहीं उतरती. हरियाणा में साक्षरता की औसत दर दूसरे राज्यों के मुकाबले उतनी बुरी नहीं है. लेकिन साक्षरता का मतलब महज पढ़ना-लिखना है. यानी ज्यादातर आबादी ऐसी है जो चौथी कक्षा तक या उससे कम पढ़ी-लिखी है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि शिक्षा ही जनप्रतिनिधियों को अच्छे-बुरे और सही-गलत के बीच फर्क पता करने की ताकत देती है.
सरकार के साक्षरता वाले नियम के चलते राज्य के पिछड़े इलाकों के लोगों ने अब शादी का एक नया फार्मूला तलाश लिया है. वह पढ़ी-लिखी युवतियों से शादी कर रहे हैं ताकि उनको पंचायत चुनावों में उम्मीदवार बनाया जा सके. कई मामलों में तो लोग इसके लिए दूसरी शादियां भी कर रहे हैं. राज्य के खासकर पिछड़े इलाकों में यह पंचायतें काफी ताकतवर हैं और ज्यादातर मामलों में उनका फैसला ही अंतिम व निर्णायक होता है. कुछ परिवारों का लंबे अरसे से इन पंचायतों पर कब्जा रहा है. लेकिन नए नियमों के तहत उनके घरों की महिलाओं के अयोग्य होने के बाद अब कई मामलों में लोग दूसरी शादियां तक कर रहे हैं. हरियाणा के कुछ जिलों में महिलाओं में साक्षरता की दर 30 फीसदी या उससे भी कम है. ऐसे में पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर कब्जा बरकरार रखने के लिए लोग दूसरी शादियां करने तक से नहीं हिचक रहे हैं.
मिली-जुली प्रतिक्रिया
गुड़गांव संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाला मेवात देश के सबसे पिछड़े और निरक्षर जिलों में शामिल है. वहां इस साल जुलाई से अब तक 50 से ज्यादा शादियां ऐसी हो चुकी हैं जिनमें दुल्हन बाकायदा दसवीं या उससे ज्यादा पढ़ी-लिखी है. जो खुद शादी की उम्र पार कर चुके हैं वे अपने बेटों या भतीजों की शादी पढ़ी-लिखी लड़की से कर रहे हैं ताकि उनको सरपंची मिल सके. मिसाल के तौर पर हुसैनपुर गांव के फतेह मोहम्मद ने अपने बेटे की शादी राजस्थान की एक ग्रेजुएट युवती से कर दी है. बेटा अभी इंजीनियरिंग पढ़ रहा है. फतेह का कहना है कि पंचायत सरपंच के पद पर कब्जा बनाए रखने के लिए इसके अलावा दूसरा कोई चारा नहीं था. उनकी बहू इलाके की अकेली पढ़ी-लिखी महिला है. इसलिए उसका सरपंच बनना तो तय ही है.
नए कानून से राज्य के कई लोग नाखुश हैं. मेवात जिले में नूह के विधायक जाकिर हुसैन कहते हैं, ‘नए नियमों से 90 फीसदी उम्मीदवार चुनावी रेस से बाहर हो गए हैं.' एक जिला पंचायत अध्यक्ष नूर अहमद कहते हैं, ‘सरकार को पहले महिलाओं में साक्षरता दर बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए था. उसके बाद ही इन नियमों को लागू करना था. अब अचानक लिए गए इस फैसले से ज्यादातर लोग चुनाव लड़ने के काबिल नहीं रह गए हैं.' लेकिन दूसरी ओर, इस कानून के चलते इलाके के लोग पढ़ी-लिखी युवतियों से बिना दहेज के शादी कर रहे हैं ताकि उनकी पत्नियां पंचायत चुनाव लड़ सकें. एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता सुनीता टंडन कहती हैं, ‘इस कानून ने वह काम कर दिखाया है जो सरकारी नीतियां तक नहीं कर सकीं. अब समाज में पढ़ी-लिखी युवतियों की कद्र बढ़ रही है और योग्य दुल्हनों के चलते दहेज की मांग घट रही है.'