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कितना आकर्षक होगा बॉन का जलवायु सम्मेलन?

३ नवम्बर २०१७

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन की दिशा में उठाये गये कदम कारगर साबित हो रहे हैं. ऐसे में, विशेषज्ञों को उम्मीद है कि बॉन में होने वाला कॉप23 इसे और भी प्रोत्साहन देगा. 

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China Emissionen von Kohlendioxid
तस्वीर: Getty Images/K. Frayer

जर्मनी का शहर बॉन इन दिनों विश्व जलवायु सम्मेलन की तैयारी में जोरशोर से जुटा है. अनुमान है कि इस सम्मेलन में दुनिया भर से तकरीबन 20 हजार लोग शामिल होंगे. लेकिन तमाम तैयारियों के बाद भी बॉन में होने वाले इस कॉप23 के लिए वैसी गहमागहमी और उत्साह नजर नहीं आ रहा है जो पेरिस के कॉप21 में था. माना जा रहा है कि यह एक "आम कामकाजी सम्मेलन" हो सकता है जो पेरिस समझौते से जुड़े नियम कायदों को और स्पष्ट करेगा. शायद यही वजह है कि दुनिया भर का मीडिया भी इस सम्मेलन को लेकर थोड़ा उदासीन नजर आ रहा है. लेकिन अब लगता है कि वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट ने कॉप23 के लिए उत्साह दिखाने के कारण दे दिये हैं.

संयुक्त राष्ट्र की हाल में जारी एक रिपोर्ट कहती है, "पेरिस समझौते की तहत तय की गयी प्रतिबद्धताएं भविष्य में कारगर साबित नहीं होंगी." रिपोर्ट मुताबिक, "मौजूदा रुख पर चला जाए तो साल 2050 तक तापमान को 2 फीसदी या इससे कम रखने के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकेगा." इस स्थिति को वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन की भयावह स्थिति मानते हैं.  

Datenvisualisierung HINDI Emissionslücke

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस साल जून में जलवायु समझौते से बाहर होने की घोषणा की. ट्रंप के इस कदम ने जलवायु समझौतों पर सवाल उठाने भी शुरू कर दिये. शायद यही कारण रहा कि कई लोगों को लगने लगा कि बॉन में दुनिया भर से इकट्ठा होने वाले ये प्रतिनिधि कुछ खास नहीं, बस समय बर्बाद करेंगे. कुल मिलाकर सवाल तो यही है कि इस सब का मतलब क्या है और यह किस दिशा में बढ़ रहा है?

बेवजह नहीं प्रयास

विशेषज्ञ मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े ये सम्मेलन इतने भी बेकार नहीं है. इनसे अब तक बहुत कुछ हासिल किया जा चुका है. इनका मानना है कि साल 1992 में रियो में हुए पहले सम्मेलन के बाद से दुनिया ने अब तक कार्बन उत्सर्जन घटाने की दिशा में काफी कुछ हासिल कर लिया है. वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट इन दावों की पुष्टि भी करती है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 1990 में जो 19 देश उत्सर्जन के सर्वोच्च स्तर पर थे उनके उत्सर्जन स्तर में सम्मेलन के आठ साल बाद कमी देखी गयी. यह कमी आज भी बरकरार है. रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2010 तक यह संख्या अमेरिका समेत 48 देशों तक पहुंच गयी. अमेरिका दुनिया के कुल उत्सर्जन में तकरीबन 36 फीसदी का योगदान देता है. रिपोर्ट कहती है कि अगर सभी देश अपने उत्सर्जन लक्ष्यों पर बने रहते हैं तो ऐसे देशों की संख्या साल 2030 तक 52 हो सकती है. इसमें चीन और ब्राजील जैसे देशों को भी शामिल किया गया है.

बढ़ते कारोबारी हित

हालांकि सम्मेलन के दौरान यह लग सकता है कि यहां कम लोग पहुंचे हैं लेकिन असल में इसे सबसे अच्छी उपस्थिति वाला कॉप सम्मेलन माना जा रहा है. ऐसा इसलिए कि अब निजी क्षेत्र, स्थानीय और क्षेत्रीय सरकारें भी अपना योगदान इस दिशा में दे रही हैं. रिपोर्ट के मुताबिक इनकी भागीदारी जलवायु परिवर्तन की दिशा में नाटकीय रूप से बढ़ी हैं. एनवायरमेंटल इनवेस्टमेंट कंपनी नेचुरल कैपिटल पार्टनर्स के योनाथन शोप्ली के मुताबिक, "गैर सरकारी संस्थाएं अमेरिकी सरकार के फैसले के बाद से अधिक प्रेरित हो गयी है और अब वह व्यावहारिक रूप से चीजें आगे बढ़ाना चाहती हैं." उन्होंने कहा कि कॉप23 अब तक का सबसे अधिक आकर्षक जलवायु सम्मेलन होगा. दरअसल इन सम्मेलनों ने अप्रयत्क्ष ढंग से तमाम सेक्टरों के लिए रास्ते खोले हैं मसलन अब कारोबारी, राज्य, शहर समेत सभी स्टेकहोल्डर्स अपने प्रयासों के बारे में बताकर यहां नये साझेदार बनाना चाहते हैं. 

Datenvisualisierung HINDI CO2 Budget

अमेरिकी प्रतिनिधित्व

माना जा रहा है कि अमेरिकी निजी क्षेत्र और यहां की स्थानीय सरकारों का प्रतिनिधिमंडल इस सम्मेलन में वॉशिंगटन से आने वाले प्रतिनिधिमंडल के मुकाबले खासा प्रभावी होगा. अमेरिका आधिकारिक रूप से अब तक इसमें शामिल हैं और साल 2020 तक ऐसी बैठकों में भाग ले सकता है. इन तमाम कोशिशों के बावजूद अब भी व्यावहारिक रूप से बहुत कुछ किया जाना बाकी है. इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि तमाम सकारात्मकताओं के बावजूद उत्सर्जन लक्ष्य तापमान बढ़ने के खतरे से निपटने में सक्षम नहीं है. लेकिन विशेषज्ञों को उम्मीद है कि बॉन सम्मेलन में जुट रहे ये देश अपनी उत्सर्जन प्रतिबद्धताओं में इजाफा करेंगे.

डेव केटिंग/एए