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कितनी सुरक्षित है हवाई जहाज की हवा?

१९ फ़रवरी २०१६

सालों से एयरक्राफ्ट केबिन में भरी हवा को स्वास्थ्य के लिए खतरा बताया जाता रहा है. हालांकि इसके बारे में पुख्ता सबूत कोई नहीं रहे हैं. लेकिन अब गोएटिंगन में शोधकर्ताओं ने इसकी बारीकी से पड़ताल की है.

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तस्वीर: D. Ott - Fotolia.com

लगभग तीन सालों से आस्ट्रिड हॉयटलबेक और उनकी टीम उन लोगों का परीक्षण कर रही है जिन्हें हवाई जहाज में यात्रा के बाद स्वास्थ्य संबंधी शिकायतें हुई हैं. वैज्ञानिकों ने ऐसे 140 मरीजों के लक्षणों की पड़ताल की है और इनमें से अधिकतर फ्लाइट का स्टाफ ही रहा है. वैज्ञानिकों ने एक नई परिक्षण विधि का इस्तेमाल करते हुए, यात्रा के तुरंत बाद इनमें से कुछ मरीजों के खून और पेशाब के सैंपल लिए.

एन्जाइम में बुरा असर डालने वाले ऑर्गनोफोस्फेट्स के साथ ही वैज्ञानिकों की टीम को इन सैंपलों में वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों वीओसी की मौजूदगी भी दिखाई दी. वीओसी से स्वास्थ्य पर कई तरह का असर हो सकता है. इससे सांस में जलन से लेकर तंत्रिका तंत्र और हृदय पर भी काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है.

शोधकर्ता मानते हैं कि वीओसी हवाई जहाज के इंजन में इस्तेमाल होने वाले कई किस्म के तेलों या फिर एंटीफ्रीज से रिसता हुआ केबिंन की हवा में घुल सकता है. केबिन में आने वाली हवा हवाई जहाज के इंजन से बनती है. 1950 के बाद से ही यह बात दर्ज की जाती ​रही है कि यह इंजन हमेशा ही तेल और एंटीफ्रीज से लगातार दूषित रहते हैं और इसके चलते 'फ्यूम इवेंट्स' यानि दूषित हवा का रिसाव होता है.

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हवाई जहाज का स्टाफ दूषित हवा से ज्यादा प्रभावित होता है.तस्वीर: picture-alliance/dpa

2006 से 2013 के बीच जर्मनी की एयर एक्सीडेंट इनवेस्टिगेशन अथॉरिटी बीएफयू ने इस तरह के 663 फ्यूम इवेंट्स रिकॉर्ड किए हैं. 2010 में जब जर्मन विंग्स कंपनी का एक हवाई जहाज कोलोन में लैंडिंग कर रहा था, तो कुछ जलने की तेज महक के चलते उसके पायलट और सह पायलट को ऑक्सीजन मास्क पहनना पड़ा. हालांकि हवाई जहाज को सुरक्षित नीचे उतार लिया गया.

इस तरह की कई घटनाएं हो जाने के बाद भी अब तक इस ​तरह के कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं थे कि कैबिन की हवा भी बीमारी की वजह हो सकती है. हवाई जहाज में काम करने वाला स्टाफ, सामान्य यात्रियों की तुलना में इससे जयादा प्रभावित होता है.

गोएटिंगन के शोधकर्ताओं का मानना है उनके निष्कर्ष बेहद अहम हैं. आने वाले हफ्तों में वे अपने शोध के परिणामों को वै​ज्ञानिक सम्मेलनों और वैज्ञानिक पत्रिकाओं के जरिए सामने लेकर आएंगे. इन शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनके शोध के निष्कर्ष, एरोटॉक्सिक सिंड्रोम नाम से प्रचलित विवादास्पद विषय को समझने में मददगार होगा.

आरजे/आईबी (डीपीए)