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किताबों की बदलती दुनिया का झरोखा

७ अक्टूबर २०१०

किताबों की बदलती दुनिया की झलक दुनिया के सबसे बड़े पुस्तक मेले में बखूबी मिलती है. 111 देशों के 7533 प्रकाशकों का यह विशाल जमावड़ा इस बार पढ़ने लिखने की दुनिया को एक कदम आगे ले जाने की मुहिम में जुटा दिखता है.

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मेले में अर्जेंटीना का मंडपतस्वीर: picture alliance/dpa

दुनिया के इस सबसे बड़े पुस्तक मेले में किताबें हैं लेकिन वे अपनी शक्ल बदलने को बेताब नजर आती हैं. वे कागज के पन्नों की कैद से निकल भागना चाहती हैं. कहीं डिजिटल फॉर्म में तो कहीं चित्रों के रूप में.

फ्रांकफुर्ट पुस्तक मेले में इस बार प्रकाशकों से लेकर विक्रेताओं तक सबका जोर किताबों को वर्चुअल वर्ल्ड में बदल देने का है. जगह जगह ई बुक रीडर, आई पैड, किताबें पढ़ा सकने वाले फोन और इसी तरह की तकनीकी चीजें नजर आती हैं. बहुत सी कंपनियां इसी तरह के उत्पाद लेकर पुस्तक मेले में आई हैं. मिसाल के तौर पर आई पैड के टच स्क्रीन ई बुक रीडर पर अब आप उस किताब के आधार पर बनी टीवी सीरीज के अंश भी देख सकते हैं. कंपनी पेज 74 के मिखाइल कहते हैं कि अब लड़ाई इस बात की है की आप अपने रीडर को किस तरह ज्यादा से ज्यादा और बेहतर अनुभव दे पाते हो.

इस बार मेले में किताबों की डिजिटल दुनिया के लिए एक अलग हिस्सा बनाया गया है. जर्मन प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं के संघ के अध्यक्ष गोडफ्राइड होनेफेल्डर कहते हैं कि यह हिस्सा इस बार 10 फीसदी बाजार पर कब्जा कर सकता है. फिलहाल इसका मार्केट शेयर महज एक फीसदी है. शायद यही वजह है कि बड़े बड़े लेखक अब किताबों की वर्चुअल दुनिया में आने को बेताब हैं. पुस्तक मेले में कहा जा रहा है कि ब्रिटिश लेखक केन फोलेट यहां अपनी मशहूर किताब द पिलर्स ऑफ द अर्थ का मल्टीमीडिया वर्जन पेश कर सकते हैं. हालांकि अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है.

Kindle Lesegerät für elektronische Bücher
जमाना ई-बुक कातस्वीर: picture alliance/dpa

इस मेले में आकर बच्चों की किताबों से गुम शब्दों पर तिलमिलाहट सबसे जादा महसूस होती है. इसलिए वहां सबसे जादा प्रयोग भी किए गए हैं. मसलन एक खास तरह की किताब और पेन आप ले सकते हैं. यह किताब चित्रों से भरपूर है और पेन बोलता है. पेन की निब को किताब में किसी चित्र से छुएं और पेन आपको बताने लगेगा की कहानी क्या है.

इन वजहों से ये सवाल उठाना लाजमी है की क्या पारंपरिक किताबें मर जाने वाली हैं. यह सवाल पुस्तक मेले का उद्घाटन करने आए जर्मनी के विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले के जेहन में भी था. उन्होंने कहा, "जब मैं अपने चारों तरफ देखता हूं तो पता हूं कि पारपंरिक किताबों के लिए जो हाय तौबा मचाई जा रही है, असल में वैसा कहीं है ही नहीं. मुझे तो लगता है की किताबों की सेहत बिलकुल सही है." वेस्टरवेले कहते हैं की हमें उस मनोदशा को बदलने की जरुरत है जो कहती है कि किताबें तो बस जिल्द में बंद पन्नों से ही बनती है. उन्हें नहीं लगता की ईबुक किसी भी तरह प्रकाशित किताबों की जगह खत्म कर पाएंगी.

इस बार मेले का मुख्य मेहमान देश अर्जेंटीना है जिसके पंडाल में जाकर ऐसा महसूस भी होता है. लगता है कि किताबों के जरिए अर्जेंटीना की पूरी तहजीब फ्रांकफुर्ट चली आई है. लेओपोल्ड लुगोनेस जैसे देश के पुराने लेखक एलन पॉल्स, मारियो अरेका, अनेबेल क्रिस्तोबो जैसी नई पीढ़ी के पीछे दीवार की तरह खड़े नज़र आते हैं. ठीक उसी तरह जैसे फ्रांकफुर्ट पुस्तक मेले में आने पर लगता है कि किताबें इंसानी सभ्यता को संभालने की कड़ी हैं.

रिपोर्टः विवेक कुमार, फ्रैंकफर्ट

संपादनः उज्ज्वल भट्टाचार्य