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केरी का मुश्किल मध्यपूर्व दौरा

२ जनवरी २०१४

अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी मध्यपूर्व का दौरा कर रहे हैं. मध्य पूर्व की समस्या के निदान के लिए इस्राएली और फलीस्तीनी नेताओं के लिए उनके पास सिर्फ एक संदेश है, कुछ कड़े फैसले लेने का वक्त आ गया है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

जॉन केरी फलीस्तीन और इस्राएल के बीच समझौते के लिए कुछ सुझाव लेकर पहुंच रहे हैं लेकिन माना जा रहा है कि इस समझौते में कुछ ऐसी शर्तें होंगी जिन्हें मानना दोनों पक्षों के लिए मुश्किल हो सकता है. इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेतान्याहू को 1967 की लड़ाई से पहले फलीस्तीन के सरहद को बातचीत का आधार मानकर चलना होगा. अब तक नेतान्याहू का रवैया काफी सख्त रहा है और उनके लिए यह शर्त काफी चुनौती भरी हो सकती है. फलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास को भी मानना पड़ेगा कि इस्राएल यहूदियों का देश है लेकिन ऐसा करने से हो सकता है कि फलीस्तीनी शरणार्थियों और उनके परिवारों के अधिकारों का हनन हो.

Israel Entlassung palästinensischer Häftlinge 31.12.2013
फलीस्तीनी बंदियों की रिहाईतस्वीर: Reuters

चार महीनों में समझौता

हालांकि अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि केरी इस यात्रा के दौरान अंतिम जवाबों की खोज में नहीं है लेकिन वह फलीस्तीन और इस्राएल के नेताओं के बीच बहस जरूर शुरू करवाना चाहते हैं. अगले चार महीनों में दोनों देशों को एक फैसले पर एकमत होना होगा. केरी ने समझौते को लेकर काफी सारे सुझावों का खुलासा नहीं किया है लेकिन उनका कहना है कि दो दशकों से चल रही बातचीत को मिलाकर एक ढांचा तैयार किया गया है. अमेरिका दो राष्ट्रों के सिद्धांत के आधार पर 1967 की सीमा में इस्राएल और फलीस्तीनी राष्ट्र का गठन चाहता है.

इसके बाद ही इस्राएल ने पश्चिम तट, गजा पट्टी और पूर्वी यरुशलेम पर कब्जा किया था. फलीस्तीनी इन तीनों इलाकों पर दावा कर रहे हैं लेकिन मौका आने पर इसमें कुछ छूट देने को भी तैयार हैं. अगर फलीस्तीन इस्राएल को यहूदी राष्ट्र के तौर पर मान्यता देता है तो इस्राएल के 17 लाख अरब नागरिक इस्राएल में अपना हक खो बैठेंगे. फलीस्तिनीयों का कहना है कि वे इस्राएल को राष्ट्र मानते हैं और इतना काफी है.

Barack Obama mit Benjamin Netanyahu und Mahmoud Abbas
अमेरिका की मध्यस्थतातस्वीर: picture-alliance/AP

रूढ़िवादियों की परेशानी

अगर इस्राएल 1967 से पहले वाली सीमा को मान्यता देता है तो वह अपने धार्मिक तीर्थस्थानों से हाथ धो बैठेगा. साथ ही वहां रह रहे छह लाख इस्राएली विस्थापित हो जाएंगे. नेतान्याहू की दक्षिणपंथी लिकूद पार्टी के लिए यह सोच से परे है. मध्यमार्गी येश अतीद पार्टी नेतान्याहू की पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल है. उसके नेता ओफर शेला कहते हैं कि नेतान्याहू अब भी सौदा कर रहे हैं.

इस्राएल में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर नेतान्याहू फलीस्तीन के पक्ष में सौदा करते हैं तो उन्हें अपनी पार्टी को अलविदा कहना होगा. लेकिन फलीस्तीनी राष्ट्र के हक में बोलने वाले इस्राएली नेता मानते हैं कि नेतान्याहू बिना राजनीतिक सहारे के भी आगे बढ़ सकते हैं क्योंकि देश के ज्यादातर लोग और संसद उनके पक्ष में होंगे.

एक जनमत सर्वेक्षण से पता चला है कि इस्राएल और फलीस्तीन के ज्यादातर लोग इस्राएल के साथ साथ फलीस्तीनी राष्ट्र के गठन का समर्थन करते हैं लेकिन जब असल मुद्दों पर बात आती है तो समर्थन घटता दिखता है.

एमजी/एमजे(एपी, डीपीए)

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