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कैसा हो आचार, खुद तय करेंगे जर्मनी के सर्वोच्च जज

२४ फ़रवरी २०१७

जर्मनी के संवैधानिक अदालत के न्यायाधीश जल्द ही खुद एक आचार संहिता तय करेंगे. उन पर किसी का नियंत्रण नहीं होता.

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Deutschland Karlsruhe Entscheidung des Bundesverfassungsgerichts zu NPD-Verbot
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup

अतिरिक्त कमाई करने की इच्छा किसे नहीं होती. कानून सम्मत समाज में उस पर रोक लगाना मुश्किल है. लेकिन सामाजिक नैतिकता ही तय कर सकती है कि उसकी सीमा क्या हो. जर्मनी के सर्वोच्च जज अपने लिए आचार संहिता तय करेंगे.

मामला संवैधानिक अदालत की एक पूर्व न्यायाधीश का है. रिटायर होने के बाद वह काम करने फोल्क्सवैगन कंपनी में चली गई थीं और उन्हें 13 महीने काम के बाद 1.2 करोड़ यूरो का हर्जाना मिला है. इतना कमाने में एक औसत कर्मचारी को 370 साल लगेंगे. इस हर्जाने पर इतना हंगामा हुआ कि संवैधानिक न्यायालय को भी इस मामले पर विचार करना पड़ा. अब वे औपचारिक रूप से स्पष्ट करना चाहते हैं कि उचित क्या है?

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इस समय उद्योगों में चल रही प्रथा के अनुरूप जर्मनी का उच्चतम न्यायालय भी न्यायाधीशों के लिए एक आचार संहिता तय करना चाहता है जिसका मकसद अतिरिक्त कमाई या रिटायर होने के बाद नई नौकरी लेने जैसे मामलों में स्वैच्छिक कर्तव्य पर सहमति होगी. मुख्य न्यायाधीश आंद्रेयास फोसकूले ने कहा है कि एक कार्यदल इस पर काम कर रहा है. जजों के लिए आचार संहिता के इसी साल बनकर तैयार हो जाने की संभावना है.

जर्मनी में भी संवैधानिक अदालत अपने फैसलों से सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी करता रहता है. यहां संसद में बहुमत द्वारा हर कानून की संवैधानिकता की जांच के लिए विपक्षी सांसद या संसदीय दल अपील कर सकते हैं. ऐसे मामलों के अलावा सरकार और संसद की यूरोपीय जिम्मेदारियां भी अकसर संवैधानिक अदालत के सामने पहुंचती रही है. ग्रीस को कर्ज देने के मामले में या विदेशों में सैनिकों की तैनाती के सवाल पर अदालत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सरकार की सौदेबाजी की स्थिति की परवाह किये बगैर संसद के अधिकारों को बढ़ाया है.

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ऐसे में उच्चतम न्यायालय के जजों का सुर्खियों में न आना न सिर्फ उनके रुतबे के लिए बल्कि समाज में उनके सम्मान के लिए भी जरूरी है. अदालत के सूत्रों का कहना है कि आचार संहिता बनाने की पहल का किसी खास मामले से कोई लेना देना नहीं है बल्कि अदालत समय की भावना के अनुरूप चलना चाहता है. बहस में रिटायर्ड न्यायाधीशों को भी शामिल किया जायेगा.

खासकर संवैधानिक अदालत से रिटायर होने के बाद कहीं काम करने का मुद्दा बहुत ही संवेदनशील है. अदालत के 16 न्यायाधीशों का कार्यकाल 12 साल का होता है और उनकी नियुक्ति 40 से 68 साल की आयु के बीच हो सकती है. हाल के सालों में युवा न्यायाधीशों की नियुक्ति के कारण रिटायर होने के बाद भी वे काम करने की उम्र में होते हैं और अपने अनुभव की बदौलत विभिन्न मुद्दों पर योगदान भी दे सकते हैं. इस काम के लिए मिलने वाला पारिश्रमिक विवादों को आमंत्रित कर सकता है. कार्यदल में एक मुद्दा यह भी है कि रिटायर्ड न्यायाधीश कौन सा काम बिना किसी चिंता के कर सकता है और कौन सा नहीं.

एमजे/एके (डीपीए)